लखनऊ: भारत में राजनीति का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है. एक वक्त था जब देशहित के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक साथ खड़े होते थे. लेकिन अब समय बदल गया है. अब विपक्ष, सत्ता पक्ष का विरोध केवल इसलिए करता है क्यूंकि वह विपक्ष में है और विरोध करना ही उसका एकमात्र काम रह गया है. फिर चाहे मुद्दा देशहित का हो या पार्टी हित का, विरोध करना है तो करना है.
ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है जहां पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शनिवार को एक बयान देकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास किया. इस प्रयास में वे काफी हद तक सफल भी हो गए. लेकिन उनके द्वारा दिया गया बयान आदर्श राजनीति के लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता.
अखिलेश यादव का बयान...
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, "मैं कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं लगवाऊंगा, क्योंकि मुझे बीजेपी पर भरोसा नहीं है."
अखिलेश यादव ने ये बयान देकर भले ही वाहवाही बटोरनी चाही हो, लेकिन इस बयान का राजनीतिक संदेश क्या जाएगा, इस बारे में उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.
सवाल ये है कि क्या कोरोना वैक्सीन भारतीय जनता पार्टी बना रही है. जिसका विरोध अखिलेश कर रहे हैं. कोरोना महामारी एक वैश्विक समस्या है जिससे हम सभी को मिलकर लड़ना है. फिर ये लड़ाई सपा या भाजपा की कैसे हो गई.
अखिलेश यादव की गिनती एक बड़े राजनेताओं के रूप में होती है. देश में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रहने का गौरव उन्हें हासिल है. बड़ी संख्या में लोग उनकी बातों का अनुसरण करते हैं. अब ऐसे में वे खुद ही कोरोना वैक्सीन पर इस प्रकार से सवालिया निशान लगाएंगे, तो अन्य लोगों का इस पर क्या असर पड़ेगा.
अखिलेश का बयान स्वास्थ्यकर्मियों पर पत्थर फेंकने जैसा...
एक बारगी आपको सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन क्या अखिलेश यादव का बयान उस घटना की पुनरावृति नहीं लगता जिसमें कोरोना जांच के लिए गए स्वास्थ्यकर्मियों पर लोगों ने पत्थर फेंके थे. स्वास्थ्यकर्मियों का उद्देश्य था कि लोगों की जांच हो, जिससे अगर वे कोरोना संक्रमित हैं तो इसकी पुष्टि हो सके और उन्हें समय रहते उन्हें उचित इलाज मिल सके.
अब बात करते हैं कि अखिलेश का बयान उस घटना जैसा ही क्यूं लगता है. कोरोना वैक्सीन पर अविश्वास जताकर अखिलेश उन वैज्ञानिकों की मेहनत पर एक तरह से पानी फेरने का काम कर रहे हैं जिन्होंने दिन-रात मेहनत कर कोरोना वैक्सीन तैयार की है. वैक्सीन को तैयार करने के लिए कितने ही दिनों तक उन्हें अपने परिवारों से दूर तक रहना पड़ा. पत्थर फेंकने वालों और अखिलेश यादव में फर्क सिर्फ इतना है कि उन्होंने पत्थर 'हाथ' से फेंके थे और ये 'जुबान' से फेंक रहे हैं.
कोरोना को हल्के में लेना कितना सही?
अब अगर अखिलेश की राह पर चलते हुए अन्य नेता या उनके समर्थक कोरोना वैक्सीन लगाने से मना कर देंगे तो क्या हम कोरोना को हरा पाएंगे. कोरोना किसी पार्टी या किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं है. ये ऐसी गंभीर समस्या है जिसने करोड़ों मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर कर दिया. जिसने दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगा दिया. कोरोना ने ही दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले देश को घुटनों पर ला दिया. ऐसे में इस वैश्विक समस्या को इतना हल्के में लेना क्या सही होगा?
अखिलेश का बयान वोट बैंक को खुश करने का प्रयास तो नहीं...
समाजवादी पार्टी का बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समाज भी है. पिछले विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समाज ने 'साइकिल की सवारी' करने से इनकार कर दिया था. मुस्लिम समाज का यूं सपा से दूर होना उसके लिए बड़ा नुकसान भी साबित हो चुका है. ऐसे में अपने जनाधार को फिर से मजबूत करना अखिलेश का 'प्रयास' ही नहीं 'मजबूरी' भी है. यही वजह है कि अखिलेश यादव का यह बयान मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
इस्लामिक धर्मगुरु कोरोना वैक्सीन को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं. इस्लामिक धर्मगुरुओं द्वारा लगातार बयान दिए जा रहे हैं कि कोरोना वैक्सीन में पशु के मांस का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि इस दावे में कोई दम नहीं है और न ही इस बारे में अब तक कोई पुष्टि हुई है, लेकिन इतना अवश्य है कि धर्मगुरुओं और अखिलेश जैसे नेताओं द्वारा कोरोना वैक्सीन पर सवाल उठाना इसके वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को जरूर प्रभावित कर सकता है. जो लोग कोरोना जांच करवाने का विरोध कर सकते हैं वही लोग अगर वैक्सीन लगाने से मना कर दें तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए.
कोरोना जांच का भी विरोध करते रहे हैं मुस्लिम धर्मगुरु :
इससे पूर्व तबलीगी जमात से जुड़े लोगों द्वारा कोरोना वॉरियर्स पर थूकने/पत्थर फेंकने/मारपीट की भी खबरें सामने आ चुकी हैं. ऐसी तस्वीरें केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के कई राज्यों में देखने को मिली थी. स्वास्थ्यकर्मियों के साथ ऐसा व्यवहार हैरान करने वाला था.
कोरोना वॉरियर्स की सुरक्षा के लिए यूपी सरकार ने बनाया कानून:
कोरोना वारियर्स के साथ लगातार हो रहे अपमानजनक व्यवहार से तंग आकर उत्तर प्रदेश सरकार ने तो कानून तक बना दिया था. गत वर्ष मई में यूपी सरकार ने 'उत्तर प्रदेश लोक स्वास्थ्य एवं महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश 2020' पास किया था. इसका उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों के साथ ही सफाईकर्मियों, सुरक्षाकर्मियों और प्रत्येक कोरोना वॉरियर को सुरक्षा प्रदान करना था. इस कानून के तहत छह माह से लेकर सात साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया.