लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव खत्म होते ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का 'यादव' प्रेम जागृत हो गया है. जो प्रदेश में विधान परिषद चुनाव के घोषित टिकटों में यह साफ साफ दिख रहा है. अभी तक सपा की ओर से घोषित 20 में से 15 प्रत्याशी यादव हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अखिलेश यादव अपने परिवार और अपनी जाति बिरादरी के लोगों को दूर रखते हुए नजर आ रहे थे. अखिलेश यादव ने अपने परिवार में सिर्फ गठबंधन के अंतर्गत चाचा शिवपाल सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा था वह भी गठबंधन धर्म के अंतर्गत. इसके अलावा परिवार के किसी भी व्यक्ति को अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया था. जिससे लग रहा था कि अखिलेश यादव एक नई तरह की राजनीति शुरू कर रहे हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिल पाने की वजह से अब एक बार फिर अखिलेश यादव अपने पुराने ढर्रे पर लौटते हुए नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश विधान परिषद के चुनाव के लिए घोषित उम्मीदवारों के टिकटों में इसकी बानगी साफ-साफ दिख रही है. इसमें ज्यादातर टिकट यादव बिरादरी से आने वाले नेताओं को दिए गए हैं. यह नेता वह हैं, जो पहले से अखिलेश यादव के साथ हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अगर यादव बिरादरी को ही बढ़ावा देना है तो नए चेहरों को भी बढ़ावा दिया जा सकता है.
विधान परिषद में बहुमत के लिए जोर आजमाइश
वहीं दूसरी तरफ विधान परिषद सदन में बहुमत के लिए भारतीय जनता पार्टी प्रयासरत है. फिलहाल 36 सीटों पर चल रही निर्वाचन की प्रक्रिया से पहले तक समाजवादी पार्टी का विधान परिषद सदन में बहुमत था. अब 36 सीटों पर निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी जोर आजमाइश कर रही है कि विधानसभा के साथ-साथ उसके पास विधान परिषद में भी बहुमत हो जाए. फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के पास सर्वाधिक विधान परिषद के सदस्य हैं. अब और अधिक विधान परिषद सदस्य बनाने को लेकर चल रही निर्वाचन प्रक्रिया के अंतर्गत भारतीय जनता पार्टी तेजी से प्रयास कर रही है. सत्तारूढ़ पार्टी होने की वजह से विधान परिषद चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बढ़त भी बना सकती है. पंचायत चुनाव की तरह भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में हुई बढ़त बनाती हुई नजर आ रही है. इसके पीछे की वजह लोकल बॉडी एमएलसी चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की हमेशा चुनाव जीत रही है.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने तमाम लोकलुभावन वादों को लेकर जनता के बीच गई थी. माहौल भी ठीक था लेकिन जनता भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने का मन बना चुकी थी. अब भाजपा की सरकार बनने वाली है. उन्होंने कहा कि पिछले काफी समय से जब भाजपा की सरकार पूर्ण बहुमत की दोबारा बनी है. चुनाव में हार के बावजूद भी समाजवादी पार्टी आत्म चिंतन के बजाय ईवीएम में दोष और तमाम तरह के आरोप लगाती है. दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि अब जब विधान परिषद के चुनाव हो रहे हैं तो एक जाति विशेष यानी यादव बिरादरी के लोगों को अधिक टिकट दिए गए हैं. जो राजनीतिक दल के मुखिया की सोच को आगे बढ़ाते हैं. यह आरोप उनके ऊपर पहले भी लगते रहे हैं. अब उसी सोच पर वह आगे बढ़ रहे हैं. जिससे तमाम तरह के सवाल भी उठ रहे हैं. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद और अपनी जाति नेताओं को बढ़ावा देने के खिलाफ बात कर रहे हैं तो अखिलेश यादव एक वर्ग विशेष को बढ़ावा देने की अपनी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जो देश समाज देख और समझ रहा है.