लखनऊ/इटावा: होली का त्योहार दुश्मनों को भी करीब ले आता है और बात रही चाचा-भतीजे की तो फिर उनके बीच दूरियां कैसी. इस होली मुलायम कुनबे की दूरियां कम हुई हैं. सैफई में होली कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस मंच पर यादव परिवार के सभी दिग्गज जुटे. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ परिवार से नाराज चल रहे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव इस मंच पर नजर आये.
इतना ही नहीं शिवपाल ने मंच पर बड़े भाई मुलायम के पैर छुए तो भतीजे अखिलेश कैसे पीछे रहते. उन्होंने भी सभी गिले शिकवे भुला कर चाचा शिवपाल के पैर छूकर आशीर्वाद लिया. इस दौरान चाचा-भतीजा जिंदाबाद के नारे भी लगे.
यादव परिवार के इस मेल मिलाप को देखकर जो सवाल सभी के मन में उठ रहा है वो ये है कि होली के मौके पर परिवार का जो मिलन हुआ क्या वो 2022 के चुनावों में भी देखने को मिलेगा. वैसे चाचा शिवपाल चुनाव में गठबंधन के लिए सपा को अपनी पहली प्राथमिकता बताकर इस बात के संकेत पहले ही दे दिए हैं.
कहा जाता है कि शिवपाल को पार्टी रामगोपाल की वजह से छोड़नी पड़ी, लेकिन शिवपाल होली के मौके पर इस तल्खी को भुलाते नजर आए. उन्होंने बड़े भाई मुलायम के साथ-साथ रामगोपाल यादव के भी पैर छुए, इस बीच जिस बात ने सभी को चौंका दिया वो ये कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपल यादव के मंच पर पहुंचने से पहले, वहां से चले गए.
ऐसी चर्चाएं हैं कि मुलायम सिंह यादव आज भी यादव परिवार में हुई सियासी जंग को भूल नहीं पाये हैं. वो इसके लिए आज भी रामगोपाल यादव को ही जिम्मेदार मानते हैं. हालांकि, मुलायम के मंच से जाने के बाद रामगोपाल यादव जब मंच पर पहुंचे तो अखिलेश ने उन्हें अपने बगल में उसी कुर्सी पर बैठाया जहां मुलायम सिंह यादव बैठे हुए थे.
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इस पारिवारिक मेल मिलाप के बीच बात अगर सियासत की करें तो लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन का दांव उल्टा पड़ने के बाद सपा कार्यकर्ताों मे जोश की कमी देखने को मिल रही है. पार्टी काफी कमजोर स्थिति में नजर आ रही है. ऐसे में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी नये साथी की तलाश है. हालांकि, वो 2022 चुनाव में अकेले लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. राज्य में जिस तरह के राजनीतिक समीकरण देखने को मिल रहे हैं. उसे ये साफ जाहिर होता है कि सपा की स्थिति पहले के मुकाबले काफी कमजोर है, जो क्षेत्र कभी सपा के गढ़ माने जाते थे आज वहां भी वोट बैंक कमजोर नजर आता था. ऐसे में अखिलेश को एक कंधे की जरूरत है. शायद इस बार वो सहार उन्हें उनके चाचा शिवपाल दे सकते हैं.
जाने इस मिलाप से पहले की कहानी:
2017 में हुए विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच ही शिवपाल और अखिलेश के बीच मन मुटाव हुआ. रामगोपाल यादव और शिवपाल की आपस में अनबन इसकी वजह मानी गई. शिवपाल जहां मुलायम सिंह के खेमे में रहे हैं तो वहीं रामगोपाल यादव कई मौकों पर अखिलेश के सलाहकार के तौर पर नजर आए हैं. पारिवारिक झगड़ों के बीच सपा बुरी तरह विधानसभा चुनाव हार गई. बीजेपी की ऐतिहासिक जीत हुई और योगीआदित्यनाथ सीएम बने.
सपा छोड़ने के बाद शिवपाल ने 29 अगस्त 2018 में अपनी पार्टी का गठन किया, जिसका नाम समाजवादी सेक्यूलर पार्टी है. लोकसभा चुनावों में शिवपाल सिंह यादव की पार्टी ने भाग लिया और 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन कोई भी सीट हासिल न कर सके.
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बता दें, लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन भी काम नहीं आया. कई इलाकों में सपा को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. इसका सीधा ठीकरा अखिलेश के सिर फूटा. कहा गया कि उन्होंने पार्टी के दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर दिया, जिसके चलते ये हश्र देखना पड़ा. खबरों की माने तो चुनाव खत्म होने के साथ ही सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को फटकार लगाते हुए नेताओं को पार्टी में वापस लाने की बात कही थी. इस सबके बाद मुलायम ने शिवपाल से बात भी की, लेकिन हल नहीं निकला.
कुछ दिन पूर्व अपने एक बयान में शिवपाल ने सपा के साथ गठबंधन के संकेत दिए थे, जिसके बाद वे होली के अवसर पर आयोजित सपा के कार्यक्रम में भी भाग लेने पहुंचे. इससे लगता है कि पारिवारिक कलह अब खत्म हो गई है और एक बार फिर चाचा-भतीजे की जोड़ी दिखने वाली है.