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प्रदेश के कई शहर का बढ़ा प्रदूषण स्तर, वाहनों के धुएं बन रहे अधिक खतरनाक

उत्तर प्रदेश के आगरा, नोएडा, लखनऊ, मेरठ, कानपुर, वाराणसी व मुरादाबाद जैसे कई जिलों का प्रदूषण स्तर काफी चरम पर है. आइए जानते हैं वायु प्रदूषण कितना खतरनाक है.

उत्तर प्रदेश में प्रदूषण.
उत्तर प्रदेश में प्रदूषण.
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Published : Jan 22, 2022, 8:24 PM IST

लखनऊ: प्रदेश में कई जिलों में प्रदूषण स्तर बेहद खराब है. सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक आगरा, नोएडा, लखनऊ, मेरठ, कानपुर, वाराणसी व मुरादाबाद जैसे कई जिलों का प्रदूषण स्तर काफी चरम पर है. शनिवार को लखनऊ का प्रदूषण स्तर 346 दर्ज किया गया. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी को लखनऊ शहर का एक्यूआई 360 के पार था.

यूपी के टॉप 10 शहर ऐसे हैं जहां की ठण्ड के बाद से प्रदूषण स्तर तेजी से बढ़ा है. राजधानी के तालकटोरा इंडस्ट्री सेंटर का एक्यूआई 393, सेंट्रल स्कूल का एक्यूआई 377, लालबाग का एक्यूआई 359, गोमतीनगर का एक्यूआई 262, भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी क्षेत्र का एक्यूआई 293 और कुकरेल पिकनिक स्पॉटस्पॉट-1 का एक्यूआई 226 है. राजधानी लखनऊ के यह क्षेत्र इंडस्ट्रियल एरिया में शामिल हैं.

सीपीसीबी की एयर क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित शहर में आगरा भी शामिल है. रिपोर्ट के मुताबिक आगरा की एक्यूआई 343 पहुंच गया है. नोएडा के बाद गाजियाबाद, गोरखपुर, गुरुग्राम, ग्वालियर, हापुर, कानपुर, कुरुक्षेत्र, मेरठ, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, मुजफ्फरपुर और प्रयागराज खराब एक्यूआई की लिस्ट में शामिल हैं.

सी कार्बन संस्था के अध्यक्ष बीपी श्रीवास्तव ने बताया कि आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे उपकरण, यातायात और फैक्ट्री बढ़ रही हैं. मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर पेड़ पौधों को काटकर विकास करने का प्रयास कर रहा है. इसी के चलते देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. तमाम तरीके की फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें या ग्रीन गैसें कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं. इन गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है.

वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली आवाजें ध्वनि प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 21,23, 813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है.

केजीएमयू के प्रो. सूर्यकांत बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है, उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव 2.5 माइक्रोन पार्टिकल दूसरा 10 माइक्रोन पार्टिकल के दुष्परिणामों से होती है. पूरे शरीर में कोई ऐसा अंग अछूता नहीं है जिसमें कोई भी नुकसान वायु प्रदूषण से न होता हो. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होता है. वायु प्रदूषण से अस्थमा, टीबी, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े का कैंसर के साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारियां हो सकती हैं.

इसे भी पढ़ें-भतीजे अखिलेश के टिकट पर जसवंतनगर से ताल ठोकेंगे चाचा शिवपाल...जानिए आखिर यही सीट क्यों चुनी

उन्होंने बताया कि सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स फेफड़ों के अंदर की जो क्षमता है वह प्रभावित होगी और कैंसर जैसी बीमारी होंगी. जब आपकी शारीरिक क्षमता गिरेगी तो आप जिस क्षेत्र में कार्य कर रहे होंगे इसका असर उस पर भी पड़ेगा. ऐसा अक्सर देखा गया है. अगर इसको भारतीय राज्यों के परिपेक्ष में देखा जाय तो 2019 का जो आंकड़ा दिखता है कि 1.67 मिलियन जो मृत्यु हुई है, वह पूरे भारतवर्ष में वायु प्रदूषण से हुई है. इसके पीछे जो कारण था वो सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर का ऑडिशन था, जिसे एसपीएम कहते हैं.

एक्यूआई गुणवत्ता
0-50 अच्छी
51-100 संतोषजनक
101-200 मध्यम
201-300 खराब
301-400 बेहद खराब
401-500 खतरनाक


शहर का नाम और एक्यूआई स्थिति
गाजियाबाद 363 (बेहद खराब)
बुलंद शहर 331 (बेहद खराब)
आगरा 327 (बेहद खराब)
लखनऊ 319 (बेहद खराब)
गोरखपुर 342 (बेहद खराब)
नोएडा 392 (बेहद खराब)
हापुड़ 243 (बेहद खराब)
कानपुर 375 (बेहद खराब)
मेरठ 321 (बेहद खराब)
मुरादाबाद 313 (बेहद खराब)
मुजफ्फरनगर 276 (बेहद खराब)
प्रयागराज 307 (बेहद खराब)
वाराणसी 242 (बेहद खराब)

लखनऊ: प्रदेश में कई जिलों में प्रदूषण स्तर बेहद खराब है. सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक आगरा, नोएडा, लखनऊ, मेरठ, कानपुर, वाराणसी व मुरादाबाद जैसे कई जिलों का प्रदूषण स्तर काफी चरम पर है. शनिवार को लखनऊ का प्रदूषण स्तर 346 दर्ज किया गया. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी को लखनऊ शहर का एक्यूआई 360 के पार था.

यूपी के टॉप 10 शहर ऐसे हैं जहां की ठण्ड के बाद से प्रदूषण स्तर तेजी से बढ़ा है. राजधानी के तालकटोरा इंडस्ट्री सेंटर का एक्यूआई 393, सेंट्रल स्कूल का एक्यूआई 377, लालबाग का एक्यूआई 359, गोमतीनगर का एक्यूआई 262, भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी क्षेत्र का एक्यूआई 293 और कुकरेल पिकनिक स्पॉटस्पॉट-1 का एक्यूआई 226 है. राजधानी लखनऊ के यह क्षेत्र इंडस्ट्रियल एरिया में शामिल हैं.

सीपीसीबी की एयर क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित शहर में आगरा भी शामिल है. रिपोर्ट के मुताबिक आगरा की एक्यूआई 343 पहुंच गया है. नोएडा के बाद गाजियाबाद, गोरखपुर, गुरुग्राम, ग्वालियर, हापुर, कानपुर, कुरुक्षेत्र, मेरठ, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, मुजफ्फरपुर और प्रयागराज खराब एक्यूआई की लिस्ट में शामिल हैं.

सी कार्बन संस्था के अध्यक्ष बीपी श्रीवास्तव ने बताया कि आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे उपकरण, यातायात और फैक्ट्री बढ़ रही हैं. मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर पेड़ पौधों को काटकर विकास करने का प्रयास कर रहा है. इसी के चलते देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. तमाम तरीके की फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें या ग्रीन गैसें कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं. इन गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है.

वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली आवाजें ध्वनि प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 21,23, 813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है.

केजीएमयू के प्रो. सूर्यकांत बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है, उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव 2.5 माइक्रोन पार्टिकल दूसरा 10 माइक्रोन पार्टिकल के दुष्परिणामों से होती है. पूरे शरीर में कोई ऐसा अंग अछूता नहीं है जिसमें कोई भी नुकसान वायु प्रदूषण से न होता हो. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होता है. वायु प्रदूषण से अस्थमा, टीबी, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े का कैंसर के साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारियां हो सकती हैं.

इसे भी पढ़ें-भतीजे अखिलेश के टिकट पर जसवंतनगर से ताल ठोकेंगे चाचा शिवपाल...जानिए आखिर यही सीट क्यों चुनी

उन्होंने बताया कि सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स फेफड़ों के अंदर की जो क्षमता है वह प्रभावित होगी और कैंसर जैसी बीमारी होंगी. जब आपकी शारीरिक क्षमता गिरेगी तो आप जिस क्षेत्र में कार्य कर रहे होंगे इसका असर उस पर भी पड़ेगा. ऐसा अक्सर देखा गया है. अगर इसको भारतीय राज्यों के परिपेक्ष में देखा जाय तो 2019 का जो आंकड़ा दिखता है कि 1.67 मिलियन जो मृत्यु हुई है, वह पूरे भारतवर्ष में वायु प्रदूषण से हुई है. इसके पीछे जो कारण था वो सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर का ऑडिशन था, जिसे एसपीएम कहते हैं.

एक्यूआई गुणवत्ता
0-50 अच्छी
51-100 संतोषजनक
101-200 मध्यम
201-300 खराब
301-400 बेहद खराब
401-500 खतरनाक


शहर का नाम और एक्यूआई स्थिति
गाजियाबाद 363 (बेहद खराब)
बुलंद शहर 331 (बेहद खराब)
आगरा 327 (बेहद खराब)
लखनऊ 319 (बेहद खराब)
गोरखपुर 342 (बेहद खराब)
नोएडा 392 (बेहद खराब)
हापुड़ 243 (बेहद खराब)
कानपुर 375 (बेहद खराब)
मेरठ 321 (बेहद खराब)
मुरादाबाद 313 (बेहद खराब)
मुजफ्फरनगर 276 (बेहद खराब)
प्रयागराज 307 (बेहद खराब)
वाराणसी 242 (बेहद खराब)

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