लखनऊ: ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीआईएफ) ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित पावर सेक्टर पैकेज को निजी बिजली उत्पादन घरानों के लिए राहत पैकेज बताया है. केंद्र सरकार से फेडरेशन की मांग है कि राज्यों की बिजली वितरण और उत्पादन कंपनियों को इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार कर्ज के बजाय अनुदान दे, तभी बिजली कम्पनियां कोविड-19 संकट में कार्य कर सकेंगी.
94 हजार करोड़ रुपये है केंद्रीय बिजली उत्पादन का बकाया
फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि केंद्र सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों को जो 90 हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने का एलान किया है, उसमें साफ लिखा है कि यह धनराशि निजी बिजली उत्पादन घरों, निजी पारेषण कंपनियों और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का बकाया अदा करने के लिए दी जा रही है. राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां इसका कोई और उपयोग नहीं कर सकेंगी. इससे स्पष्ट है कि यह रिलीफ पैकेज निजी घरानों के लिए है न कि राज्य की सरकारी बिजली कंपनियों के लिए. इतना ही नहीं, राज्य की वितरण कम्पनियां इस धनराशि का उपयोग राज्य के सरकारी बिजली उत्पादन घरों से खरीदी गई बिजली का भुगतान करने हेतु भी नहीं कर सकती हैं जिनसे राज्यों को सबसे सस्ती बिजली मिलती है.
चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि निजी बिजली उत्पादन घरों और केंद्रीय क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों का कुल बकाया 94 हजार करोड़ रुपये है और केंद्र सरकार ने 90 हजार करोड़ रुपये दिए हैं. अगर केंद्र सरकार यह धनराशि राज्य सरकारों के गारंटी देने पर कर्ज के रूप में दे रही है, तो इस लॉकडाउन में भारी नुकसान उठा रहीं बिजली कम्पनियां इतनी बड़ी रकम कैसे अदा करेंगी. इस मुश्किल घड़ी में यदि केंद्र सरकार मदद करना चाहती है, तो कर्ज के बजाय उसे अनुदान देना चाहिए.
केंद्र सरकार बकाया देती है तो बिजली वितरण कंपनियों को कर्ज लेने जरुरत नहीं
चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र व राज्य के सरकारी विभागों पर बिजली वितरण कंपनियों का 70 हजार करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व बकाया है. अकेले उत्तर प्रदेश में ही सरकारी विभागों का बकाया 13 हजार करोड़ रुपये से अधिक है. यदि सरकार अपना बकाया दे दे, तो राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को केंद्र सरकार से कोई कर्ज लेने की जरूरत नहीं रहेगी. उन्होंने कहा कि इस संकट की घड़ी में निजी घरानों की चिता के साथ सरकारों को अपने बिजली राजस्व के बकाये का भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिए अन्यथा 90 हजार करोड़ रुपये के इस कर्ज तले दबी वितरण कम्पनियां कैसे और कब तक अपने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर सकेंगी.