लखनऊ: यूपी में दलगत नेताओं की बढ़ी सक्रियता के बीच अब सियासी पार्टियों के चुनावी एजेंडे भी स्पष्ट होने लगे हैं. लेकिन विचित्र स्थिति यह है कि यहां जनहित के मुद्दों को छोड़कर अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और जिन्ना पर बातें हो रही हैं. वहीं, सत्ताधारी भाजपा राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने और हिन्दुत्व कार्ड खेलकर सीटों की समीकरण को दुरुस्त करना चाहती है. लेकिन अब प्रियंका गांधी से लेकर केजरीवाल तक ने मंदिर के मुद्दे में सेंध लगा दिया है.
सियासी विश्लेषक व रणनीतिकार विभाष बंद्योपाध्याय कि मानें तो सूबे में सीएम योगी अब मनोवैज्ञानिक रूप से मतदाताओं को प्रभावित करने के अलावा पूरी योजना के साथ मैदान में उतारे हैं. हालांकि, उत्तर प्रदेश में वोट किसी एक मुद्दे पर नहीं मिलता. यहां विकास के अलावा जाति, धर्म और क्षेत्रीयता को वोटर अधिक तरजीह देते रहे हैं.
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वहीं, राम मंदिर निर्माण का भाजपा को कथित तौर पर होने वाले सियासी लाभ पर विभास ने कहा कि राम मंदिर लोगों की आस्था का प्रतीक है. लेकिन मंदिर के नाम पर एक पक्षीय मतदान संभव नहीं है. वहीं, सत्ताधारी भाजपा के साथ ही अन्य पार्टियों को भी भितरघात का डर है. साथ ही हवाई बातों से वोट पाना भी मुश्किल है.
इतना ही नहीं सूबे में पिछले दिनों 'अब्बाजान' और 'तालिबान' का जिक्र भी खूब हुआ. इधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अफगानिस्तान को एयर स्ट्राइक का भय दिखा देते हैं तो असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी चुनावी समीकरण बदलने की कोशिश कर रही है.
हालांकि, भाजपा को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से खासा उम्मीद है तो वहीं, कांग्रेस को भी भरोसा है कि यूपी में प्रियंका गांधी का जादू चलेगा. महिलाओं को 40 फीसद टिकट देने की घोषणा कर प्रियंका गांधी ने साढ़े पांच करोड़ महिला वोटरों को अपने पक्ष में साधने का बड़ा सियासी दांव चला है. वहीं, सोशल इंजीनियरिंग के प्लेटफार्म पर कमजोर पड़ रही भाजपा को मंत्रिमंडल विस्तार के लिए मजबूर होना पड़ा.
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विभास की मानें तो सपा और बसपा सरीखी पार्टियों की भूख बढ़ी है और धर्म के भीतर भी अंतर्विरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई है. इस बीच अगर जाति समीकरण की बात करें तो सभी पार्टियों के अपने-अपने दावे के जरिए दांव खेल रखे हैं. सपा व बसपा, यादव, मुस्लिम, पिछड़ों व दलितों को अपना बता रही हैं.
कांग्रेस पार्टी, जिसके झंडे तले पहले अधिकांश वर्ग रहे हैं, अब वैसे ही चमत्कार की उम्मीद कर रही है. वहीं, कुछ छोटी पार्टियां हैं, जो पिछड़े वर्गों के वोटरों में सेंध लगाने का दावा कर रही हैं.
इधर, गैर जाट और गैर यादव के मामले में योगी के पास केवल राजपूत वर्ग ही बचा दिख रहा है. शेष अन्य भी किसी न किसी कारण से नाखुश हैं. हालांकि इन सभी बातों से परे, योगी को न केवल हिंदुओं, बल्कि मुस्लिम समुदाय से भी कुछ वोट मिलने का भरोसा है, जो पार्टियां यह मान रही हैं कि किसी दल से समझौता होने के बाद उनके वोट आपस में शिफ्ट हो जाएंगे तो ये बड़ा मुश्किल है.
वहीं, बसपा और सपा को इसका पहले से अनुभव है. बसपा के वोटरों ने सपा को वोट दे दिया, मगर सपा के लोग बसपा के पक्ष में मतदान करने का साहस नहीं दिखा पाए. किसानों का मुद्दा पश्चिम यूपी में असर दिखा सकता है.
यही कारण है कि विपक्ष उसे भुनाने में लगा है. यूपी में सरकारी कर्मी, बड़ी तादाद में हैं, जो फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं.
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