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11 साल बाद लखनऊ में दिखेगा सूर्यग्रहण, सीधी आंख से न देखें सूरज

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Published : Jun 21, 2020, 6:26 AM IST

यूपी की राजधानी लखनऊ में रविवार को यानी 21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा. इससे पहले 22 जुलाई 2009 को लखनऊ में सूर्य ग्रहण दिखा था. इंदिरा गांधी नक्षत्रशाला के वैज्ञानिक अधिकारी के अनुसार लखनऊ में अगला सूर्य ग्रहण 2034 में दिखाई पड़ेगा.

लखनऊ में सूर्यग्रहण
लखनऊ में सूर्यग्रहण

लखनऊ: 21 जून को राजधानी में 11 वर्षों बाद सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ने जा रहा है. यह सूर्य ग्रहण रविवार को सुबह 10:17 से शुरू होकर 2:02 तक रहेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके बाद 14 वर्ष बाद ही लखनऊ में सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ेगा.

इंदिरा गांधी नक्षत्रशाला के वैज्ञानिक अधिकारी सुमित श्रीवास्तव कहते हैं कि लखनऊ में 22 जुलाई 2009 को सूर्य ग्रहण देखने को मिला था. 26 दिसंबर 2019 को आंशिक सूर्य ग्रहण जरूर था, लेकिन इसकी अवधि इतनी लंबी नहीं थी जितनी इस सूर्य ग्रहण की होगी.

लखनऊ में 2034 में दिखाई पड़ेगा अगला सूर्य ग्रहण .

लखनऊ में 2034 में दिखाई पड़ेगा अगला सूर्य ग्रहण

ग्रहण के बारे में सुमित ने बताया कि 84.24% तक इसका एक्लिप्स दिखाई पड़ेगा. यानी जब चंद्रमा सूर्य का 84.24% भाग तक ढक लेगा. वैज्ञानिक कहते हैं कि पिछले 11 वर्षों से हम इस सूर्य ग्रहण के जैसी खगोलीय घटना के घटित होने का इंतजार कर रहे थे. इसके बाद ऐसा सोलर एक्लिप्स जो भारत में दिखाई पड़ेगा वह 2031 में होगा. लखनऊ में अगला सूर्य ग्रहण 2034 में दिखाई पड़ेगा. इस वजह से इस सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना हमारे लिए बेहद जरूरी है.

लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए सूर्यगृहण को दिखाने की तैयारी

सुमित ने बताया कि पिछले कई महीनों से हम इस सूर्य ग्रहण को देखने और इसे समझने की कई तैयारियां कर रहे थे. लेकिन कोविड-19 के संक्रमण और लॉकडाउन के चलते हमारी यह तैयारियां मूल रूप नहीं ले पाई. हम लाइव स्ट्रीमिंग और कुछ अन्य तैयारियां कर चुके हैं. इसके अलावा कुछ अन्य लोग भी इस सूर्य ग्रहण की लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे हैं. फेसबुक, यूट्यूब और तमाम अन्य प्लेटफार्म पर सूर्यग्रहण का नजारा लोगों को दिखाने की कोशिश की जा रही है.

सीधी आंखों से न देखें सूर्य ग्रहण

सुमित ने बताया कि यदि आप किसी भी तरह से लाइव स्ट्रीमिंग का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं और सूर्य ग्रहण को देखना चाहते हैं तो सामान्य दर्पण से सूर्य की इमेज फॉर दीवार पर प्रक्षेपित करके इसे देखा जा सकता है. सूर्य को कभी भी सीधी और नग्न आंखों से नहीं देखना चाहिए, और सूर्य ग्रहण में ऐसा करने से हमेशा बचना चाहिए.

सुमित कहते हैं कि सूर्य ग्रहण के समय इंफ्रारेड किरणें निकलती हैं जो हमारे लिए काफी हानिकारक होती हैं. सामान्य तौर पर तो व्यक्ति सीधी आंखों से सूर्य को नहीं देखता लेकिन सूर्य ग्रहण के समय उत्सुकता और कौतूहल वश लोग सूर्य को सीधी आंखों से देखने लगते हैं. ऐसे में मेरी अपील है कि वह ऐसा न करें क्योंकि इस दौरान आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव परमानेंट होता है. यानी उसका कोई भी इलाज संभव नहीं है.

3 घंटे 45 का होगा सूर्य ग्रहण

इंफ्रारेड किरणें सूर्य ग्रहण के दौरान 52% तक की अवरक्त किरणें होती हैं जो आंखों को स्थाई रूप से क्षति पहुंचा सकती हैं. इसके अलावा सूर्य ग्रहण के दौरान सन गॉगल, नार्मल गॉगल्स या फिर किसी भी तरह की एक्सरे फिल्म या नेगेटिव फिल्म के द्वारा भी न देखें.

21 जून को दिखने वाला सूर्य ग्रहण 3 घंटे 45 मिनट की अवधि का होगा, और इस सूर्य ग्रहण की चरम अवधि 12:11 से 12:12 यानी लगभग 45 सेकेंड पर होगी. जब चंद्रमा 84.24% भाग सूर्य को ढक लेगा. सुमित के अनुसार एक निश्चित स्थान पर जब पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ता है तो उसके लगभग 360 वर्षों के बाद उस जगह पर दोबारा पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ेगा. यह एक वैज्ञानिक और खगोलीय तथ्य है.

ये भी पढ़ें: 885 वर्षों बाद लग रहा पूर्ण सूर्य ग्रहण, जानिए क्या कहते हैं अयोध्या के संत और धर्माचार्य

लखनऊ: 21 जून को राजधानी में 11 वर्षों बाद सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ने जा रहा है. यह सूर्य ग्रहण रविवार को सुबह 10:17 से शुरू होकर 2:02 तक रहेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके बाद 14 वर्ष बाद ही लखनऊ में सूर्य ग्रहण दिखाई पड़ेगा.

इंदिरा गांधी नक्षत्रशाला के वैज्ञानिक अधिकारी सुमित श्रीवास्तव कहते हैं कि लखनऊ में 22 जुलाई 2009 को सूर्य ग्रहण देखने को मिला था. 26 दिसंबर 2019 को आंशिक सूर्य ग्रहण जरूर था, लेकिन इसकी अवधि इतनी लंबी नहीं थी जितनी इस सूर्य ग्रहण की होगी.

लखनऊ में 2034 में दिखाई पड़ेगा अगला सूर्य ग्रहण .

लखनऊ में 2034 में दिखाई पड़ेगा अगला सूर्य ग्रहण

ग्रहण के बारे में सुमित ने बताया कि 84.24% तक इसका एक्लिप्स दिखाई पड़ेगा. यानी जब चंद्रमा सूर्य का 84.24% भाग तक ढक लेगा. वैज्ञानिक कहते हैं कि पिछले 11 वर्षों से हम इस सूर्य ग्रहण के जैसी खगोलीय घटना के घटित होने का इंतजार कर रहे थे. इसके बाद ऐसा सोलर एक्लिप्स जो भारत में दिखाई पड़ेगा वह 2031 में होगा. लखनऊ में अगला सूर्य ग्रहण 2034 में दिखाई पड़ेगा. इस वजह से इस सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना हमारे लिए बेहद जरूरी है.

लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए सूर्यगृहण को दिखाने की तैयारी

सुमित ने बताया कि पिछले कई महीनों से हम इस सूर्य ग्रहण को देखने और इसे समझने की कई तैयारियां कर रहे थे. लेकिन कोविड-19 के संक्रमण और लॉकडाउन के चलते हमारी यह तैयारियां मूल रूप नहीं ले पाई. हम लाइव स्ट्रीमिंग और कुछ अन्य तैयारियां कर चुके हैं. इसके अलावा कुछ अन्य लोग भी इस सूर्य ग्रहण की लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे हैं. फेसबुक, यूट्यूब और तमाम अन्य प्लेटफार्म पर सूर्यग्रहण का नजारा लोगों को दिखाने की कोशिश की जा रही है.

सीधी आंखों से न देखें सूर्य ग्रहण

सुमित ने बताया कि यदि आप किसी भी तरह से लाइव स्ट्रीमिंग का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं और सूर्य ग्रहण को देखना चाहते हैं तो सामान्य दर्पण से सूर्य की इमेज फॉर दीवार पर प्रक्षेपित करके इसे देखा जा सकता है. सूर्य को कभी भी सीधी और नग्न आंखों से नहीं देखना चाहिए, और सूर्य ग्रहण में ऐसा करने से हमेशा बचना चाहिए.

सुमित कहते हैं कि सूर्य ग्रहण के समय इंफ्रारेड किरणें निकलती हैं जो हमारे लिए काफी हानिकारक होती हैं. सामान्य तौर पर तो व्यक्ति सीधी आंखों से सूर्य को नहीं देखता लेकिन सूर्य ग्रहण के समय उत्सुकता और कौतूहल वश लोग सूर्य को सीधी आंखों से देखने लगते हैं. ऐसे में मेरी अपील है कि वह ऐसा न करें क्योंकि इस दौरान आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव परमानेंट होता है. यानी उसका कोई भी इलाज संभव नहीं है.

3 घंटे 45 का होगा सूर्य ग्रहण

इंफ्रारेड किरणें सूर्य ग्रहण के दौरान 52% तक की अवरक्त किरणें होती हैं जो आंखों को स्थाई रूप से क्षति पहुंचा सकती हैं. इसके अलावा सूर्य ग्रहण के दौरान सन गॉगल, नार्मल गॉगल्स या फिर किसी भी तरह की एक्सरे फिल्म या नेगेटिव फिल्म के द्वारा भी न देखें.

21 जून को दिखने वाला सूर्य ग्रहण 3 घंटे 45 मिनट की अवधि का होगा, और इस सूर्य ग्रहण की चरम अवधि 12:11 से 12:12 यानी लगभग 45 सेकेंड पर होगी. जब चंद्रमा 84.24% भाग सूर्य को ढक लेगा. सुमित के अनुसार एक निश्चित स्थान पर जब पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ता है तो उसके लगभग 360 वर्षों के बाद उस जगह पर दोबारा पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ेगा. यह एक वैज्ञानिक और खगोलीय तथ्य है.

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