लखनऊ : बैचलर ऑफ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी (BHMS) के विद्यार्थियों को अपने विषय का बेसिक ज्ञान बढ़ाने के लिए अधिक समय प्राप्त हो रहा है. दरअसल, बीएचएमएस के स्टूडेंट्स को पहले वर्ष की पढ़ाई के लिए पूरे डेढ़ साल प्राप्त हो रहे हैं, ताकि उनका बेसिक फंडामेंटल अच्छे से तैयार हो सके. लिहाजा स्टूडेंट्स को वार्षिक परीक्षा डेढ़ साल में देनी होगी. इन्हें डिग्री साढ़े पांच साल में ही मिलेगी. जिसमें साढ़े चार साल की ही पढ़ाई होगी. और स्टूडेंट्स को एक साल की इंटर्नशिप करनी पड़ेगी. नेशनल होम्योपैथी कमीशन, नई दिल्ली की नई गाइड लाइन आगामी सत्र 2023-24 में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के लिए लागू होगी. जिसके तहत लखनऊ स्थित राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय में भी बदलाव होगा. नए सत्र के स्टूडेंट्स को साढ़े पांच साल की इस पढ़ाई में नई गाइडलाइन के अनुसार ही डिग्री प्राप्त होगी.
देशभर के होम्योपैथिक कॉलेज में सेवा दे रहें स्टूडेंट्स
नेशनल होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय के प्रिंसिपल डॉ. डीके सोनकर ने बताया कि 'राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय में हर साल 125 नए विद्यार्थी बीएचएमएस यूजी में दाखिला लेते हैं, जबकि पीजी में 23 विद्यार्थियों का दाखिला होता है. नीट के द्वारा यहां पर विद्यार्थियों का चयन होता है. राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय से पास हुए पीजी और यूजी के विद्यार्थी देशभर के किसी भी होम्योपैथिक कॉलेज में जाकर प्रैक्टिस कर सकते हैं और वहां पर अपनी सेवा देते हैं.'
यह है नई गाइडलाइन
उन्होंने बताया कि 'नेशनल होम्योपैथी कमीशन ने तीन साल पूर्व की व्यवस्था फिर से लागू कर दी है. नए नियमानुसार, बीएचएमएस के विद्यार्थियों के प्रवेश के साथ ही 15 दिन विभिन्न विषयों का परिचय पढ़ाया जाएगा. इसके बाद तीन-तीन माह तक सेमेस्टर में विभिन्न विषय पढ़ाये जाएंगे. इस प्रकार शुरूआती साढ़े छह माह तक विद्यार्थियों को सभी विषयों की बेसिक शिक्षा दी जाएगी. इसके बाद प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम की पढ़ाई विधिवत और विस्तार से दी जाएगी. जरूरत पड़ने पर प्रैक्टिकल के लिए विद्यार्थियों को मरीजों के बीच भी पढ़ाया जाएगा.'
नियमों में फेरबदल का ये है कारण
मालूम हो कि तीन साल पहले साढ़े पांच साल की बीएचएमएस की डिग्री प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को प्रथम वर्ष की परीक्षा देने के लिए डेढ़ साल ही पढ़ना पड़ता था, अंतिम वर्ष की परीक्षा एक साल में ही देनी होती थी, लेकिन नेशनल होम्योपैथी कमीशन ने प्रथम वर्ष पाठ्यक्रम पूरा करने की अवधि घटाकर एक साल कर दी थी और चतुर्थ अंतिम वर्ष के लिए फिर से डेढ़ साल निर्धारित किया था. इसके पीछे उद्देश्य था कि अंतिम वर्ष में पढ़ाई ज्यादा होती है, इसलिए समय अवधि अधिक मिलना चाहिए. यह व्यवस्था विद्यार्थियों के लिए ज्यादा सहज नहीं रही है, इसलिए नियमों में फेरबदल किया गया है.
शिक्षकों की कमी होगी दूर
उन्होंने बताया कि 'होम्योपैथिक कॉलेजों में शिक्षकों की कमी होने के चलते स्टूडेंट के कुछ विषय अधूरे ही रह जाते हैं. होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में फिलहाल महिला रोग विशेषज्ञ और सर्जन डॉक्टर की कमी है. जिस कारण स्टूडेंट का कोर्स पूरा नहीं हो पाता है बावजूद इसके स्टूडेंट को खुद ही पढ़कर परीक्षा में पास होना रहता है ऐसे में स्टूडेंट्स को काफी चुनौती का सामना करना पड़ता है. होम्योपैथिक कॉलेजों में नए सत्र की तैयारियां तेज प्रदेश के सभी नौ सरकारी होम्योपैथिक कॉलेजों में नए सत्र को लेकर तैयारी शुरू हो चुकी हैं. शिक्षकों की कमी खत्म करने के लिए जहां निदेशालय द्वारा 130 शिक्षक पदों का अधियाचन भेजा जा चुका है. वहीं नई गाइड लाइन के अनुसार, एनाटॉमी विषय की पढ़ाई के लिए कैडेवर (शव) को सुरक्षित रखने व पढ़ाने के लिए टेबिल आदि के संसाधन जुटाए जा रहे हैं, हालांकि इनमें से तमाम विषयों के शिक्षकों की नियुक्ति पूरी हो चुकी है, जिन्हें शीघ्र ही कॉलेज में ज्वाइनिंग देनी है.'
पहले वर्ष के पाठ्यक्रम की अवधि में बदलाव
उन्होंने बताया कि 'प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम की अवधि कम करने से विद्यार्थियों को बेसिक शिक्षा में कमी पड़ रही थी, जिसकी वजह से डेढ़ वर्ष के अंतिम वर्ष में विद्यार्थियों को अपेक्षित लाभ नहीं हो रहा था. दोबारा पुरानी व्यवस्था लागू होने से छात्र शुरूआती दौर में शरीर और संबन्धित बीमारियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, ताकि आगे की पढ़ाई और मरीजों के इलाज में उन्हें दिक्कत न हो.
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