लखनऊ : उत्तर प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में लगातार प्रदेश सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन कोशिशें को निजी अस्पतालों के प्रति स्वास्थ्य विभाग का रवैया तार-तार कर रहा है. उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भले ही फर्जी अस्पतालों का संचालन बंद कराने के लिए लगातार मीडिया में बयान जारी करते हों, लेकिन स्वास्थ्य विभाग है कि उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगता. स्वास्थ्य विभाग तो वर्षों से एक ही ढर्रे पर फर्जी अस्पतालों का संचालन करवा रहा है. जांच में जिन अस्पतालों के संचालन फर्जी होने की स्वास्थ्य विभाग खुद पुष्टि करता है, उनका संचालन बंद करवाने के बजाय नोटिस देकर खानापूर्ति कर ले रहा है. इस साल स्वास्थ्य विभाग की ओर से 38 अस्पताल चिन्हित किए गए, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस दी गई है.
विधायक ने मामला उठाया तब शुरू हुई जांच : इटौंजा के मानपुर स्थित जीवक अस्पताल में महिला की इलाज में हुई लापरवाही के बाद बीते 7 अप्रैल को उसकी केजीएमयू में मौत हो गई. केजीएमयू के डॉक्टरों ने निजी अस्पताल में इलाज में लापरवाही की पुष्टि भी की थी. पीड़ित परिवार की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने जांच की तो अस्पताल बिना पंजीकरण के संचालित होना पाया गया. इसके बावजूद भी अस्पताल को सील करने की कार्रवाई नहीं की गई. इस मामले में बीकेटी के विधायक योगेश शुक्ल ने विधानसभा सत्र में मामले को उठाया था. जिसके बाद जिलाधिकारी की ओर से नगर मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया है. समिति द्वारा पूरे प्रकरण की जांच की जा रही है.
सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल ने बताया कि अस्पतालों को कुछ दिन का समय दिया जाता है. अगर वह अपने समय पर कागजात उपलब्ध नहीं कराते हैं तो उनके संचालन को बंद कराया जाएगा. उन्होंने कहा कि जब भी किसी को लेकर कोई शिकायत आती है उसे आधार पर कार्रवाई की जाती है. नोटिस भेजी जाती है उसे पर स्पष्टीकरण मांगा जाता है उसके बाद अगर स्पष्टीकरण आने में देरी होती है या फिर स्पष्टीकरण नहीं आता है तब उसके बाद कड़ी कार्रवाई होती है ज्यादातर मामलों में स्पष्टीकरण आने पर दोनों पक्ष की बात सुनने पर मामले की आखिरी सुनवाई होती है कई मामलों में दोनों पक्ष समझौता हो जाता हैं. कई मामलों में शिकायत होती है तो उस पर कार्रवाई होती है.