लखनऊ : आवासीय योजनाओं के रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) में पंजीकृत होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में निवेशकों को खास राहत नहीं मिल रही है. उनकी समस्याओं का निस्तारण तो जरूर हो रहा है, लेकिन आवास या उनका बकाया धन नहीं मिल पा रहा है. जिसकी वजह से प्रदेश के हजारों निवेशक करीब 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान झेल चुके हैं. रेरा का दावा है कि धीरे-धीरे समस्याएं निस्तारित हो रही हैं. पिछले 5 साल में काफी निवेशकों को उनका धन वापस कराया गया है. साथ ही प्रशासन के सहयोग से उनको आवास भी दिलाए जा रहे हैं.
वर्ष 2022 के द्वितीय छमाही में उत्तर प्रदेश रेरा में लगभग 90 नवीन आवासीय, व्यावसायिक व मिश्रित वर्ग की रियल एस्टेट परियोजनाओं का पंजीकरण हुआ है. प्रथम छमाही में रेरा में 125 नए आवासीय, व्यावसायिक व मिश्रित वर्ग की परियोजनाओं का पंजीकरण हुआ था. इस प्रकार वर्ष 2022 में लगभग 215 नई परियोजनाओं का पंजीयन हुआ है और यह वर्ष 2018 एवं 2019 में हुए 258 एवं 216, के बाद सर्वाधिक परियोजनाओं के पंजीकरण किया गया है. रेरा अधिनियम 2016 लागू होने के बाद 500 वर्ग मीटर (5382 वर्ग फुट) या 8 से अधिक इकाई वाला कोई भी निर्माण जो अधिसूचित योजना क्षेत्र के दायरे में आता है, उनका उत्तर प्रदेश रेरा पोर्टल पर पंजीकृत होना अनिवार्य है. बिना पंजीकरण इनका किसी भी माध्यम से प्रचार, प्रसार, विपणन, विक्रय या विक्रय नहीं किया जा सकता है. इन सारे आंकड़ों के इतर सच्चाई यह है कि उत्तर प्रदेश में रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी पर 50 हजार शिकायतों का बोझ है. जिनमें से 33 हजार एनसीआर क्षेत्र औऱ बाकी पूरे उत्तर प्रदेश की हैं. बिल्डर आम लोगों के करीब 20 हजार करोड़ रुपये पर शिकंजा कसे बैठा है. वहीं रेरा में समस्याओं के निस्तारण की दर इतनी तेज नहीं है, जितनी होनी चाहिए.
रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन वर्ष 2017 में पूरे देश में किया गया था. इसके बाद में किसी भी आवासीय योजना को लांच करने के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन जरूरी हो गया. आवासीय समस्याओं से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाने लगी. लखनऊ और नोएडा में दो अलग-अलग कार्यालय बनाए गए. जहां रेरा के अधिकारी लोगों की समस्याओं को सुनने लगे. अब तक एनसीआर क्षेत्र के उपभोक्ताओं की 33825 शिकायतें तथा प्रोमोटर्स की 103 शिकायतों सहित कुल 33928 शिकायतें धारा-31 के अंतर्गत पंजीकृत हुई हैं. एनसीआर के बाहर के जनपदों के आवंटियों की 10741 शिकायतें पंजीकृत हुई हैं. इस प्रकार एनसीआर तथा नॉन एनसीआर में पंजीकृत शिकायतों का अनुपात 75:25 का है. धारा-31 के अंतर्गत शिकायतों की सुनवाई के साथ-साथ प्राधिकरण के आदेशों का कार्यान्वयन भी उतना ही महत्वपूर्ण है. रेरा का दावा है कि करीब 90 फ़ीसदी समस्याओं का निस्तारण किया जा चुका है. हालांकि वास्तविकता यह है कि यह केवल निस्तारण है समाधान नहीं है. लोगों को न्याय नहीं मिला है, केवल मामले समाप्त हुए हैं.
लखनऊ जन कल्याण महासमिति के अध्यक्ष उमाशंकर दुबे का कहना है कि निश्चित तौर पर रेरा का काम उतना अच्छा नहीं हो सका है, जितने की उम्मीद थी. केवल आदेश कर देने भर से ही लोगों की समस्या का समाधान नहीं हो जाता है. उसका कार्यान्वयन भी बहुत जरूरी है. सामाजिक कार्यकर्ता और सृष्टि अपार्टमेंट रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य विवेक शर्मा का कहना है कि रेरा केवल निस्तारित कर रहा है. समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है. आदेशों का पालन करने में हीलाहवाली की जाती है. इस बारे में रेरा के चेयरमैन राजीव कुमार ने बताया कि निश्चित तौर पर कुछ जगह पर परेशानियां हैं. रेरा पिछले कुछ सालों से लगातार मेहनत कर रहा है. जिसकी वजह से हजारों परेशानियों का समाधान भी हुआ है. ना केवल लोगों का आवास मिले हैं बल्कि उनकी धन वापसी भी हुई है. हमारे यह प्रयास लगातार जारी रहेंगे. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संजय चौधरी का कहना है कि सरकार और हम मिलकर रियल एस्टेट क्षेत्र में बेहतर कर रहे हैं. बीच में कोरोना महामारी के चलते 2 साल तक कुछ परेशानियां सामने आई थीं, लेकिन अब बेहतर परिणाम आने लगे हैं और दिन पर दिन सुधार होगा.
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