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लखनऊ: पुत्र की कामना के लिए महिलाएं रखेंगी अहोई अष्टमी का व्रत - अहोई अष्टमी 2020

आठ नवंबर को पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रखकर संतान प्राप्ति या संतान की लंबी आयु के लिए उपवास करती हैं. कहा जाता है कि अहोई माई महिलाओं की इस मनोकामना को अवश्य पूर्ण करती हैं. इस व्रत को करने के बाद महिलाएं चंद्रमा को अर्घ देकर अपना व्रत पूरा करती हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.
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Published : Nov 7, 2020, 11:49 PM IST

लखनऊ: कल यानि आठ नवम्बर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा. पुत्र की कामना के लिए महिलाएं इस व्रत को करती हैं. यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है. इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रहकर रात को चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत पूरा करतीं हैं.

जानकारी देते आचार्य.

स्याऊ माता की कहानी का होता है गुणगान
अहोई माता के चित्र में स्याऊ माता और उनके बच्चों का महिलाएं चित्रांकन करती हैं. इस पूजा में पूड़ी, गुलगुला, चंदिया और अन्य चीजें चढ़ाई जाती हैं. इसके बाद कहानी कही जाती है और अंत में चंद्रमा को अर्घ देकर पूजा पूर्ण की जाती है. उसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. आध्यत्म एवं ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पंडित राधेश्याम शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में इस व्रत को विशेष स्थान है. यह व्रत संतानों की रक्षा के लिए किया जाता है.

व्रत की कथा
इस व्रत के बारे में कथा प्रचलित है कि चम्पा नाम की महिला का विवाह हुए 5 वर्ष व्यतीत हो गए थे, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी. एक दिन किसी वृद्धा ने उसे अहोई व्रत रखने की सलाह दी. चम्पा की पड़ोसन ने भी उसको देखकर अहोई व्रत रखना शुरू किया. चम्पा श्रद्धा से व्रत रखती थी, वहीं चमेली स्वार्थ की भावना से व्रत रखती थी. एक दिन देवी ने प्रकट होकर इनसे पूछा की तुम्हे क्या चाहिए. तब चमेली ने झट से अपने लिए एक पुत्र मांग लिया, लेकिन चम्पा ने विनम्र भाव से कहा देवी आप तो सर्वज्ञ हैं, क्या आपको अपनी इच्छा बतानी होगी. तब देवी ने चम्पा और चमेली से कहा कि उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं. वहां तुम्हे जो मन भाए, उसे ले आना. यदि बच्चा न ला सकीं तो संतान नहीं होगी. दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगीं. बच्चे रोने और चिल्लान लगे. चम्पा से उनका रोना नहीं देखा गया. उसने कोई भी बच्चा नहीं पकड़ा पर चमेली ने एक बच्चे को बालों से कसकर पकड़ लिया. तब देवी ने चम्पा की दयालुता देखकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया. देवी ने चमेली को मां बनने के अयोग्य सिद्ध कर दिया. चम्पा को नौ माह बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई पर चमेली नि:संतान ही रह गई. तब से पुत्रेच्छा के लिए यह व्रत किया जाता है.

लखनऊ: कल यानि आठ नवम्बर को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा. पुत्र की कामना के लिए महिलाएं इस व्रत को करती हैं. यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है. इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रहकर रात को चंद्रमा को अर्घ देकर व्रत पूरा करतीं हैं.

जानकारी देते आचार्य.

स्याऊ माता की कहानी का होता है गुणगान
अहोई माता के चित्र में स्याऊ माता और उनके बच्चों का महिलाएं चित्रांकन करती हैं. इस पूजा में पूड़ी, गुलगुला, चंदिया और अन्य चीजें चढ़ाई जाती हैं. इसके बाद कहानी कही जाती है और अंत में चंद्रमा को अर्घ देकर पूजा पूर्ण की जाती है. उसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. आध्यत्म एवं ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पंडित राधेश्याम शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में इस व्रत को विशेष स्थान है. यह व्रत संतानों की रक्षा के लिए किया जाता है.

व्रत की कथा
इस व्रत के बारे में कथा प्रचलित है कि चम्पा नाम की महिला का विवाह हुए 5 वर्ष व्यतीत हो गए थे, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी. एक दिन किसी वृद्धा ने उसे अहोई व्रत रखने की सलाह दी. चम्पा की पड़ोसन ने भी उसको देखकर अहोई व्रत रखना शुरू किया. चम्पा श्रद्धा से व्रत रखती थी, वहीं चमेली स्वार्थ की भावना से व्रत रखती थी. एक दिन देवी ने प्रकट होकर इनसे पूछा की तुम्हे क्या चाहिए. तब चमेली ने झट से अपने लिए एक पुत्र मांग लिया, लेकिन चम्पा ने विनम्र भाव से कहा देवी आप तो सर्वज्ञ हैं, क्या आपको अपनी इच्छा बतानी होगी. तब देवी ने चम्पा और चमेली से कहा कि उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं. वहां तुम्हे जो मन भाए, उसे ले आना. यदि बच्चा न ला सकीं तो संतान नहीं होगी. दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगीं. बच्चे रोने और चिल्लान लगे. चम्पा से उनका रोना नहीं देखा गया. उसने कोई भी बच्चा नहीं पकड़ा पर चमेली ने एक बच्चे को बालों से कसकर पकड़ लिया. तब देवी ने चम्पा की दयालुता देखकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया. देवी ने चमेली को मां बनने के अयोग्य सिद्ध कर दिया. चम्पा को नौ माह बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई पर चमेली नि:संतान ही रह गई. तब से पुत्रेच्छा के लिए यह व्रत किया जाता है.

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