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ओडीओपी योजना को है प्रचार प्रसार की जरूरत, सर्वे में आई चौंकाने वाली हकीकत - लखनऊ समाचार

लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) की प्रोफेसर सोमेश शुक्ला की देखरेख में यह सर्वे कराए गया. इस सर्वे में सामने आया है कि हस्तशिल्प कला से जुड़े 50 फीसदी से ज्यादा कलाकारों को तो इस योजना के बारे में ही जानकारी उपलब्ध नहीं है.

लखनऊ विश्वविद्यालय
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Published : Oct 14, 2021, 6:14 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 6:56 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की 'वन डिस्ट्रिक्ट एक प्रोडक्ट' योजना है तो अच्छी, लेकिन जिसको इसकी जरूरत है उन तक इसका फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. कुछ महीने पहले ही राजधानी में हस्तशिल्प कलाओं को लेकर हुए हॉट मेले में किए गए एक सर्वे में यह सामने आया है कि हस्तशिल्प कलाकारों को इसके बारे में तो जानकारी ही नहीं है. लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सोमेश शुक्ला की देखरेख में यह सर्वे कराए गया. इस सर्वे में सामने आया है कि हस्तशिल्प कला से जुड़े 50 फीसदी से ज्यादा कलाकारों को तो इस योजना के बारे में ही जानकारी उपलब्ध नहीं है.


लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से भाऊराव शोधपीठ की स्थापना की गई है. इसकी अंतर्गत सरकार की तरफ से 2 करोड़ रुपये का सीड मनी दिया गया है. प्रोफेसर सोमेश शुक्ला इस शोधपीठ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. बीते फरवरी माह में लखनऊ के अंदर हुनर हॉट का आयोजन किया गया था. इसमें उत्तर प्रदेश समेत देश भर के अलग-अलग कोने से हस्तशिल्प कलाकार अपनी कला को लेकर यहां आए थे. इस दौरान प्रोफेसर सोमेश शुक्ला की देखरेख में सर्वे किया गया. इन कलाकारों से हुनर हॉट से संबंधित सवाल पूछे गए. हालांकि, इन सवालों के जवाब और नतीजे जो आए हैं वह काफी चौकाने वाले हैं.

जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफसर सोमेश शुक्ला .
80 प्रतिशत से ज्यादा कलाकारों ने स्वीकारा कि उन्हें यह कला उनके पुरखों से मिली. पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है. प्रोफ़ेसर सोमेश शुक्ला ने निष्कर्ष के तौर पर निकाला कि यदि इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था और तकनीकी को शामिल किया जाए तो ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए रोजगार तैयार किया जा सकता है. सर्वे में यह सामने आया है कि इनकी ओर से मार्केटिंग के लिए किसी भी तरह की कोई व्यवस्था विकसित नहीं की गई है. यह गांव शहरों में लगने वाले बाजारों में जाकर अपने उत्पादन बेचते हैं. प्रोफेसर सोमेश शुक्ला ने यह सुझाव प्रस्तुत किया है कि सरकार की तरफ से मार्केटिंग के लिए व्यवस्था की जा सकती है. सर्वे में शामिल 50 परसेंट से अधिक हस्तशिल्प कलाकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना की बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसके प्रचार प्रसार की बहस जरूरत है.

इसे भी पढे़ं-राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तराखंड में स्वामी चिदानंद सरस्वती से की मुलाकात, समसामयिक विषयों पर हुई चर्चा




पहले भी ODOP को प्रभावी बनाने के आए थे सुझाव
यह पहली बार नहीं है जब प्रदेश में ओडीओपी योजना को और प्रभावी बनाने के सुझाव आ रहे हैं. इससे पहले लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉक्टर रोली मिश्रा और डॉ नगेंद्र कुमार मौर्य ने केंद्र सरकार के लिए देश के पूर्वी जिलों में इस योजना की भूमिका को लेकर अध्यन किया था. इस अध्ययन में पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार जिले श्रावस्ती बलरामपुर बहराइच और सिद्धार्थ नगर को चुनाव गया था.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार की 'वन डिस्ट्रिक्ट एक प्रोडक्ट' योजना है तो अच्छी, लेकिन जिसको इसकी जरूरत है उन तक इसका फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. कुछ महीने पहले ही राजधानी में हस्तशिल्प कलाओं को लेकर हुए हॉट मेले में किए गए एक सर्वे में यह सामने आया है कि हस्तशिल्प कलाकारों को इसके बारे में तो जानकारी ही नहीं है. लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सोमेश शुक्ला की देखरेख में यह सर्वे कराए गया. इस सर्वे में सामने आया है कि हस्तशिल्प कला से जुड़े 50 फीसदी से ज्यादा कलाकारों को तो इस योजना के बारे में ही जानकारी उपलब्ध नहीं है.


लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से भाऊराव शोधपीठ की स्थापना की गई है. इसकी अंतर्गत सरकार की तरफ से 2 करोड़ रुपये का सीड मनी दिया गया है. प्रोफेसर सोमेश शुक्ला इस शोधपीठ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. बीते फरवरी माह में लखनऊ के अंदर हुनर हॉट का आयोजन किया गया था. इसमें उत्तर प्रदेश समेत देश भर के अलग-अलग कोने से हस्तशिल्प कलाकार अपनी कला को लेकर यहां आए थे. इस दौरान प्रोफेसर सोमेश शुक्ला की देखरेख में सर्वे किया गया. इन कलाकारों से हुनर हॉट से संबंधित सवाल पूछे गए. हालांकि, इन सवालों के जवाब और नतीजे जो आए हैं वह काफी चौकाने वाले हैं.

जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफसर सोमेश शुक्ला .
80 प्रतिशत से ज्यादा कलाकारों ने स्वीकारा कि उन्हें यह कला उनके पुरखों से मिली. पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है. प्रोफ़ेसर सोमेश शुक्ला ने निष्कर्ष के तौर पर निकाला कि यदि इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था और तकनीकी को शामिल किया जाए तो ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए रोजगार तैयार किया जा सकता है. सर्वे में यह सामने आया है कि इनकी ओर से मार्केटिंग के लिए किसी भी तरह की कोई व्यवस्था विकसित नहीं की गई है. यह गांव शहरों में लगने वाले बाजारों में जाकर अपने उत्पादन बेचते हैं. प्रोफेसर सोमेश शुक्ला ने यह सुझाव प्रस्तुत किया है कि सरकार की तरफ से मार्केटिंग के लिए व्यवस्था की जा सकती है. सर्वे में शामिल 50 परसेंट से अधिक हस्तशिल्प कलाकारों ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट योजना की बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसके प्रचार प्रसार की बहस जरूरत है.

इसे भी पढे़ं-राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तराखंड में स्वामी चिदानंद सरस्वती से की मुलाकात, समसामयिक विषयों पर हुई चर्चा




पहले भी ODOP को प्रभावी बनाने के आए थे सुझाव
यह पहली बार नहीं है जब प्रदेश में ओडीओपी योजना को और प्रभावी बनाने के सुझाव आ रहे हैं. इससे पहले लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉक्टर रोली मिश्रा और डॉ नगेंद्र कुमार मौर्य ने केंद्र सरकार के लिए देश के पूर्वी जिलों में इस योजना की भूमिका को लेकर अध्यन किया था. इस अध्ययन में पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार जिले श्रावस्ती बलरामपुर बहराइच और सिद्धार्थ नगर को चुनाव गया था.

Last Updated : Oct 14, 2021, 6:56 PM IST
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