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मनाया गया उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का 44वां स्थापना दिवस - संस्कृत भाषा का महत्व

साल के आखिरी दिन राजधानी लखनऊ में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का का 44वां स्थापना दिवस मनाया गया. इस दौरान संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र ने संस्कृत भाषा के महत्व के बारे में बताया.

वर्चुअल तरीके से मनाया गया स्थापना दिवस.
वर्चुअल तरीके से मनाया गया स्थापना दिवस.
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Published : Dec 31, 2020, 8:01 PM IST

लखनऊ: प्रदेश की राजधानी में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का 44वां स्थापना दिवस गुरुवार को ममनाया गया. कोविड-19 को देखते हुए स्थापना दिवस वर्चुअल तरीके से मनाया गया. इस अवसर पर व्याख्यान कवि गोष्ठी संस्कृत और पाली में आयोजित की गई.

डॉ. वाचस्पति मिश्र ने किया संबोधित

इस दौरान संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र ने अध्यक्षीय भाषण दिया. उन्होंने अपने सम्बोधन में बताया कि यहां की गतिविधियों से प्रभावित होकर दूसरे राज्य भी अपने यहां संस्कृत अकादमी की स्थापना करना चाहते हैं. गुजरात राज्य में संस्कृत अकादमी स्थापित हो भी चुकी है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि शिक्षा दो प्रकार की होती है औपचारिक और अनौपचारिक. औपचारिक शिक्षा तो विद्यालयों में दी जाती है लेकिन अनौपचारिक शिक्षा के जरिये सामान्य व्यक्ति भी अपनी रुचि से शिक्षा ग्रहण कर सकता है.

संस्कृत है सभी भाषाओं की जननी

इससे पहले संस्थान के निदेशक पवन कुमार ने कहा कि जितने भी पौराणिक ग्रन्थ लिखे गए हैं, वे सभी संस्कृत में लिखे गए हैं. संस्कृत मात्र भाषा ही नहीं बल्कि सभी भाषाओं की जननी है.

आयोजित हुआ वर्चुअल कवि सम्मेलन

व्खायान के बाद ऑनलाईन कवि सम्मेलन आयोजित हुआ. जिसमे शिमला से प्रो. अभियान राजेन्द्र मिश्र, राजधानी लखनऊ से प्रो. राम सुमेर यादव, लखीमपुर से डॉ. सुरचना त्रिवेदी, हापुड़ से डॉ वागीश दिनकर, सुल्तानपुर से डॉ. अरुण निषाद, दिल्ली से डॉ अनेकान्त जैन के अलावा डॉ दीनानाथ शर्मा, डॉ बलराम शुक्ल, पालि कवि डॉ प्रफुल्ल गडवाल , प्रो. हर प्रसाद दीक्षित ने भाग लिया.

ये लोग भी थे उपस्थित

इस कार्यक्रम में उपाध्याय शोभन लाल, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी दिनेश कुमार मिश्र सहित अन्य कर्मचारी भी उपस्थित थे.

लखनऊ: प्रदेश की राजधानी में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान का 44वां स्थापना दिवस गुरुवार को ममनाया गया. कोविड-19 को देखते हुए स्थापना दिवस वर्चुअल तरीके से मनाया गया. इस अवसर पर व्याख्यान कवि गोष्ठी संस्कृत और पाली में आयोजित की गई.

डॉ. वाचस्पति मिश्र ने किया संबोधित

इस दौरान संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र ने अध्यक्षीय भाषण दिया. उन्होंने अपने सम्बोधन में बताया कि यहां की गतिविधियों से प्रभावित होकर दूसरे राज्य भी अपने यहां संस्कृत अकादमी की स्थापना करना चाहते हैं. गुजरात राज्य में संस्कृत अकादमी स्थापित हो भी चुकी है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि शिक्षा दो प्रकार की होती है औपचारिक और अनौपचारिक. औपचारिक शिक्षा तो विद्यालयों में दी जाती है लेकिन अनौपचारिक शिक्षा के जरिये सामान्य व्यक्ति भी अपनी रुचि से शिक्षा ग्रहण कर सकता है.

संस्कृत है सभी भाषाओं की जननी

इससे पहले संस्थान के निदेशक पवन कुमार ने कहा कि जितने भी पौराणिक ग्रन्थ लिखे गए हैं, वे सभी संस्कृत में लिखे गए हैं. संस्कृत मात्र भाषा ही नहीं बल्कि सभी भाषाओं की जननी है.

आयोजित हुआ वर्चुअल कवि सम्मेलन

व्खायान के बाद ऑनलाईन कवि सम्मेलन आयोजित हुआ. जिसमे शिमला से प्रो. अभियान राजेन्द्र मिश्र, राजधानी लखनऊ से प्रो. राम सुमेर यादव, लखीमपुर से डॉ. सुरचना त्रिवेदी, हापुड़ से डॉ वागीश दिनकर, सुल्तानपुर से डॉ. अरुण निषाद, दिल्ली से डॉ अनेकान्त जैन के अलावा डॉ दीनानाथ शर्मा, डॉ बलराम शुक्ल, पालि कवि डॉ प्रफुल्ल गडवाल , प्रो. हर प्रसाद दीक्षित ने भाग लिया.

ये लोग भी थे उपस्थित

इस कार्यक्रम में उपाध्याय शोभन लाल, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी दिनेश कुमार मिश्र सहित अन्य कर्मचारी भी उपस्थित थे.

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