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देखिए कैसे जंगल में पिंजरे से निकलकर भागी बाघिन - दुधवा टाइगर रिजर्व

29 नवंबर को पलिया रेंज के नगला गांव के पास से पकड़ी गई बाघिन को बुधवार को दुधवा टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया. बाघिन को रेडियो कॉलर लगाकर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद छोड़ा गया.

पिंजरे से निकलकर भागी बाघिन
पिंजरे से निकलकर भागी बाघिन
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Published : Dec 1, 2022, 7:21 AM IST

Updated : Dec 13, 2022, 2:26 PM IST

लखीमपुर खीरी: पकड़ी गई बाघिन को दुधवा टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया है. बाघिन को रेडियो कॉलर लगाकर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद दुधवा टाइगर रिजर्व में प्राकृतिक पर्यावास में छोड़ा गया. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि बाघिन को 29 नवंबर को पलिया रेंज के नगला गांव के पास से पकड़ा गया था. ट्रेंकुलाइज करने के बाद टाइग्रेस को पिंजरे में कैदकर दुधवा टाइगर रिजर्व लाया गया था. बाघिन पूर्णतया स्वस्थ है और करीब ढाई साल की है.

पिंजरे से निकलकर भागी बाघिन

दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि बाघिन का स्वास्थ्य परीक्षण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के डॉक्टर संजीव रंजन, दुधवा के पशु चिकित्सक डॉक्टर दयाशंकर और संपूर्णानगर के पशु चिकित्सक डॉक्टर अरविंद ने किया. डॉक्टरों ने जब बाघिन को ठीक पाया तो उसे जंगल में रिलीज किया गया. डिप्टी डायरेक्टर दुधवा रंगा राजा टी, बफर जोन डीडी सुन्दरेशा और डब्लूडब्लूएफ के कोआर्डिनेटर मुदित गुप्ता की देखरेख में बाघिन को छोड़ा गया.

क्यों लगाया जाता है रेडियो कॉलर

जंगली जानवरों को रेडियो कॉलर इसलिए लगाया जाता है कि उनकी लोकेशन ट्रेस होती रहे. वर्ल्ड लाइफ सेक्टर में उन हिंसक जानवरों को जो अपना व्यवहार धीरे-धीरे बदल देते हैं या इंसानों पर हमला करने लगते हैं. उनको पकड़कर दूसरी जगह छोड़ा जाता है. इसके लिए उनको रेडियो कॉलर लगाया जाता है. रेडियो कॉलर पहनाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ से परमिशन के बाद ही यह प्रक्रिया अपनाई जाती है.

यह भी पढ़ें: सीएम योगी बोले-औद्योगिक विकास के लिए यूपी में अब अपराध मुक्त माहौल, खुलकर निवेश करें उद्यमी

रेडियो कॉलर के बाद बाघ हो या कोई भी जंगली जानवर उसकी लोकेशन पता चलती है. जंगली जानवरों के व्यवहार के अध्ययन में भी रेडियो कॉलरिंग से मदद मिलती है. रेडियो कॉलरिंग में अमेरिका से इसको एक्टिवेट कराया जाता है. ब्रिटेन से भी सहयोग लिया जाता है. एक रेडियो कॉलर लगाने में लाखों रुपये का खर्च आता है. डब्लूडब्लूएफ और वाइल्डलाइफ में सहयोग करने वाली एनजीओ इसको लगाने में सरकार की मदद करती हैं.

लखीमपुर खीरी: पकड़ी गई बाघिन को दुधवा टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया है. बाघिन को रेडियो कॉलर लगाकर स्वास्थ्य परीक्षण करने के बाद दुधवा टाइगर रिजर्व में प्राकृतिक पर्यावास में छोड़ा गया. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि बाघिन को 29 नवंबर को पलिया रेंज के नगला गांव के पास से पकड़ा गया था. ट्रेंकुलाइज करने के बाद टाइग्रेस को पिंजरे में कैदकर दुधवा टाइगर रिजर्व लाया गया था. बाघिन पूर्णतया स्वस्थ है और करीब ढाई साल की है.

पिंजरे से निकलकर भागी बाघिन

दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि बाघिन का स्वास्थ्य परीक्षण वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के डॉक्टर संजीव रंजन, दुधवा के पशु चिकित्सक डॉक्टर दयाशंकर और संपूर्णानगर के पशु चिकित्सक डॉक्टर अरविंद ने किया. डॉक्टरों ने जब बाघिन को ठीक पाया तो उसे जंगल में रिलीज किया गया. डिप्टी डायरेक्टर दुधवा रंगा राजा टी, बफर जोन डीडी सुन्दरेशा और डब्लूडब्लूएफ के कोआर्डिनेटर मुदित गुप्ता की देखरेख में बाघिन को छोड़ा गया.

क्यों लगाया जाता है रेडियो कॉलर

जंगली जानवरों को रेडियो कॉलर इसलिए लगाया जाता है कि उनकी लोकेशन ट्रेस होती रहे. वर्ल्ड लाइफ सेक्टर में उन हिंसक जानवरों को जो अपना व्यवहार धीरे-धीरे बदल देते हैं या इंसानों पर हमला करने लगते हैं. उनको पकड़कर दूसरी जगह छोड़ा जाता है. इसके लिए उनको रेडियो कॉलर लगाया जाता है. रेडियो कॉलर पहनाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ से परमिशन के बाद ही यह प्रक्रिया अपनाई जाती है.

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रेडियो कॉलर के बाद बाघ हो या कोई भी जंगली जानवर उसकी लोकेशन पता चलती है. जंगली जानवरों के व्यवहार के अध्ययन में भी रेडियो कॉलरिंग से मदद मिलती है. रेडियो कॉलरिंग में अमेरिका से इसको एक्टिवेट कराया जाता है. ब्रिटेन से भी सहयोग लिया जाता है. एक रेडियो कॉलर लगाने में लाखों रुपये का खर्च आता है. डब्लूडब्लूएफ और वाइल्डलाइफ में सहयोग करने वाली एनजीओ इसको लगाने में सरकार की मदद करती हैं.

Last Updated : Dec 13, 2022, 2:26 PM IST
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