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लखीमपुर खीरी में बापू को चंदे में मिले थे 3146 रुपये पांच आने! - गांधी जयंती

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. महात्मा गांधी 1929 में खीरी जिले में आए थे. यहां बापू को आजादी की मशाल जलाए रखने के लिए यहां के लोगों ने 3146 रुपये पांच आने का चंदा इकठ्ठा कर दान दिया था.

महात्मा गांधी.
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Published : Oct 1, 2019, 11:14 PM IST

Updated : Oct 1, 2019, 11:43 PM IST

लखीमपुर खीरी: लखीमपुर-इंडो नेपाल बॉर्डर के सुदूर खीरी जिले से भी महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. खीरी में आम जनता से लेकर अधिवक्ताओं, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों में महात्मा गांधी का जादू सिर चढ़कर बोलता था. गांधी 1929 में खीरी जिले में आए, जहां बापू को आजादी की मशाल जलाए रखने को लोगों ने 3146 रुपये पांच आने इकट्ठे कर दान दिया था. इस दान की गवाह बनी थी खीरी जिले की दत्ता कोठी. दत्ता कोठी में महात्मा गांधी के साथ आजादी की मशाल थामे ऐसा कोई बड़ा लीडर नहीं बचा था, जो न आया हो.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.


मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित है दत्ता कोठी
शहर के कलेक्ट्रेट के पूर्वी गेट के करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित दत्ता कोठी आज सुनसान पड़ी है. लेकिन इसकी दरो दीवार पर आज भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों की झलक दिखती है. बापू खीरी में कस्तूरबा गांधी के साथ आए थे.


स्टेशन पर लोगों ने किया जोरदार स्वागत
वरिष्ठ वकील और जिला कांग्रेस फाउंडर प्रेसिडेंट स्व. सीताराम दत्ता की कोठी पर ट्रेन से महात्मा गांधी लखनऊ से पहुंचे थे. लोगों ने बापू का स्टेशन पर जोरदार स्वागत किया था. अंग्रेजी हुकूमत से महात्मा गांधी लोहा ले चुके थे. पोरबंदर से निकल गांधी देश के कोने-कोने में जाकर जनमानस में देश की आजादी का जज्बा भरने लगे थे. स्वदेशी और अहिंसा बापू के बड़े औजार थे, जिसकी चोट अंग्रेजों को भारी पड़ने लगी थी.

ये भी पढ़ें- गांधी @ 150 : रामोजी ग्रुप के चेयरमैन रामोजी राव ने लॉन्च किया बापू का प्रिय भजन


कस्तूरबा गांधी भी आईं थीं साथ
गांधी जी दत्ता कोठी में अकेले नहीं आए थे. उनके साथ कस्तूरबा गांधी, आचार्य कृपलानी, मीराबेन समेत कई नेता थे. जिले में कांग्रेस की कमान उस वक्त पंडित बंशीधर मिश्र को दी गई थी. पंडित बंशीधर मिश्र आजादी के दीवानों को एक कर आजादी की मशाल की लौ को बढ़ा रहे थे. गांधी जी भी उस लौ को और बढ़ाने के लिए जिले में आकर कांग्रेसियों से मिले.


बापू ने हरिजनोत्थान का उठाया बीड़ा
गांधी अहिंसा और स्वदेशी के रास्ते देश को आजादी के रास्ते पर आगे ले जा रहे थे. उन्हें पता था कि छुआछूत, जातिवाद, सम्प्रदायवाद देश की आजादी की लड़ाई में बड़ा रोड़ा है और सामाजिक समरसता में सबसे बड़ी बाधा. इसके लिए गांधी जी ने हरिजनोत्थान का बीड़ा उठाया. गांधी आजादी की लड़ाई के साथ देश की इस बड़ी बीमारी से भी साथ-साथ लड़ रहे थे.

ये भी पढ़ें- 'गांधी के आदर्शों को अपनाने से खत्म होगी हिंसा' : स्कूली छात्रों से शिक्षा मंत्री निशंक


लोगों ने बापू को दिया चंदा
वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले एनके मिश्रा बताते हैं कि 'गांधी जी दत्ता कोठी में आए थे. शहर के एक दो वकीलों के यहां भी बापू गए थे. लोगों ने बापू को उस वक्त 3146 रुपये और पांच आने दान स्वरूप चंदा इकट्ठा कर पोटली में दिया था.


छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे बापू
शहर में ही बापू पर शोध कर चुके आलोक बाजपेई बताते हैं कि 'बापू उन दिनों हरिजन उत्थान का काम भी कर रहे थे. वो हमेशा सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे. बापू का मानना था कि जब तक ये बड़े दुश्मन देश में रहेंगे हम आजादी पाकर भी मानसिक आजादी नहीं पा सकेंगे'.


कस्तूरबा गांधी ने भी लोगों को किया प्रेरित
खीरी जिले की दत्ता कोठी में बापू के साथ कस्तूरबा गांधी भी आई थीं. कस्तूरबा गांधी ने जिले की महिलाओं की एक मीटिंग कर उन्हें भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था. कस्तूरबा गांधी ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने और स्वदेशी अपनाने की भी अपील की थी. कहा जाता है कि खीरी में लोगों का प्यार और समर्थन पाकर बापू गदगद हो गए थे.

जिस दत्ता कोठी की दीवारों में बापू की यादों को संजोकर रखा गया है, वो आज देखरेख के अभाव में भले ही जर्जर हो गई है. लेकिन बापू के आदर्श, उनके देश की आजादी के संघर्ष और विचारों की कहानी आज भी इस कोठी में रचती बसती है.

लखीमपुर खीरी: लखीमपुर-इंडो नेपाल बॉर्डर के सुदूर खीरी जिले से भी महात्मा गांधी का गहरा नाता रहा है. खीरी में आम जनता से लेकर अधिवक्ताओं, शिक्षकों, बुद्धिजीवियों में महात्मा गांधी का जादू सिर चढ़कर बोलता था. गांधी 1929 में खीरी जिले में आए, जहां बापू को आजादी की मशाल जलाए रखने को लोगों ने 3146 रुपये पांच आने इकट्ठे कर दान दिया था. इस दान की गवाह बनी थी खीरी जिले की दत्ता कोठी. दत्ता कोठी में महात्मा गांधी के साथ आजादी की मशाल थामे ऐसा कोई बड़ा लीडर नहीं बचा था, जो न आया हो.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.


मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित है दत्ता कोठी
शहर के कलेक्ट्रेट के पूर्वी गेट के करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर मोहल्ला नौरंगाबाद में स्थित दत्ता कोठी आज सुनसान पड़ी है. लेकिन इसकी दरो दीवार पर आज भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों की झलक दिखती है. बापू खीरी में कस्तूरबा गांधी के साथ आए थे.


स्टेशन पर लोगों ने किया जोरदार स्वागत
वरिष्ठ वकील और जिला कांग्रेस फाउंडर प्रेसिडेंट स्व. सीताराम दत्ता की कोठी पर ट्रेन से महात्मा गांधी लखनऊ से पहुंचे थे. लोगों ने बापू का स्टेशन पर जोरदार स्वागत किया था. अंग्रेजी हुकूमत से महात्मा गांधी लोहा ले चुके थे. पोरबंदर से निकल गांधी देश के कोने-कोने में जाकर जनमानस में देश की आजादी का जज्बा भरने लगे थे. स्वदेशी और अहिंसा बापू के बड़े औजार थे, जिसकी चोट अंग्रेजों को भारी पड़ने लगी थी.

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कस्तूरबा गांधी भी आईं थीं साथ
गांधी जी दत्ता कोठी में अकेले नहीं आए थे. उनके साथ कस्तूरबा गांधी, आचार्य कृपलानी, मीराबेन समेत कई नेता थे. जिले में कांग्रेस की कमान उस वक्त पंडित बंशीधर मिश्र को दी गई थी. पंडित बंशीधर मिश्र आजादी के दीवानों को एक कर आजादी की मशाल की लौ को बढ़ा रहे थे. गांधी जी भी उस लौ को और बढ़ाने के लिए जिले में आकर कांग्रेसियों से मिले.


बापू ने हरिजनोत्थान का उठाया बीड़ा
गांधी अहिंसा और स्वदेशी के रास्ते देश को आजादी के रास्ते पर आगे ले जा रहे थे. उन्हें पता था कि छुआछूत, जातिवाद, सम्प्रदायवाद देश की आजादी की लड़ाई में बड़ा रोड़ा है और सामाजिक समरसता में सबसे बड़ी बाधा. इसके लिए गांधी जी ने हरिजनोत्थान का बीड़ा उठाया. गांधी आजादी की लड़ाई के साथ देश की इस बड़ी बीमारी से भी साथ-साथ लड़ रहे थे.

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लोगों ने बापू को दिया चंदा
वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक रखने वाले एनके मिश्रा बताते हैं कि 'गांधी जी दत्ता कोठी में आए थे. शहर के एक दो वकीलों के यहां भी बापू गए थे. लोगों ने बापू को उस वक्त 3146 रुपये और पांच आने दान स्वरूप चंदा इकट्ठा कर पोटली में दिया था.


छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे बापू
शहर में ही बापू पर शोध कर चुके आलोक बाजपेई बताते हैं कि 'बापू उन दिनों हरिजन उत्थान का काम भी कर रहे थे. वो हमेशा सम्प्रदायवाद, जातिवाद, छुआछूत के खिलाफ लड़ते रहे. बापू का मानना था कि जब तक ये बड़े दुश्मन देश में रहेंगे हम आजादी पाकर भी मानसिक आजादी नहीं पा सकेंगे'.


कस्तूरबा गांधी ने भी लोगों को किया प्रेरित
खीरी जिले की दत्ता कोठी में बापू के साथ कस्तूरबा गांधी भी आई थीं. कस्तूरबा गांधी ने जिले की महिलाओं की एक मीटिंग कर उन्हें भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था. कस्तूरबा गांधी ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने और स्वदेशी अपनाने की भी अपील की थी. कहा जाता है कि खीरी में लोगों का प्यार और समर्थन पाकर बापू गदगद हो गए थे.

जिस दत्ता कोठी की दीवारों में बापू की यादों को संजोकर रखा गया है, वो आज देखरेख के अभाव में भले ही जर्जर हो गई है. लेकिन बापू के आदर्श, उनके देश की आजादी के संघर्ष और विचारों की कहानी आज भी इस कोठी में रचती बसती है.

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gandhi ji


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Last Updated : Oct 1, 2019, 11:43 PM IST
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