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लखीमपुर: नेपाली हाथियों को हुआ दुधवा की सरजमीं से प्यार - नेपाली हाथी

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में तराई नेचर कंजर्वेशन सोसायटी के सचिव और वाइल्ड लाइफ के जानकार ने बताया कि नेपाल से 50 से 60 हाथी घूमते हुए दुधवा टाइगर रिजर्व प्रवेश कर गए हैं जो कि अब इस जंगल से जाने का नाम नहीं ले रहे हैं.

हाथियों की जानकारी देते डॉ. वीपी सिंह
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Published : Aug 13, 2019, 10:09 AM IST

लखीमपुर खीरी: यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में नेपाल से आए घुमंतू जंगली हाथियों को दुधवा की सरजमीं से ऐसी मोहब्बत हो गई है कि हाथियों का पूरा कुनबा दुधवा का होकर रह गया है. नेपाली हाथियों में से कोई भी हाथी दुधवा से जाने को राजी नहीं हो रहे हैं. लगभग 50 से 60 हाथियों का परिवार अब दुधवा में ही विचरण कर रहा है.

हाथियों को भा गई दुधवा की सरजमीं.

दुधवा टाइगर रिजर्व में आए हाथी

  • दुधवा टाइगर रिजर्व नेपाल की सीमा से लगा हुआ है.
  • 1996 में इंडियन हाथी को संकटग्रस्त प्रजाति में डाल दिया गया.
  • नेपाल के हाथी अक्सर दुधवा से उत्तराखंड के यूपी कार्बेट टाइगर रिजर्व तक आते-जाते रहते हैं.
  • तराई का यह कारीडोर हाथियों का पुराना रास्ता रहा है.

इसे भी पढ़ें:-लखीमपुर: बाघों की दहाड़ से आबाद हुए यूपी के जंगल

हाथियों के व्यवहार में हो रहा बदलाव

  • इन हाथियों की खास बात यह है कि यह न केवल दुधवा में रहते हैं, बल्कि ब्रीडिंग भी कर रहे है.
  • हाथियों को यहां आवास और खाने-पीने की प्रचुर मात्रा उपलब्धता रहती है, जिससे वह यहीं आकर रहते हैं.
  • कतर्निया घाट से लेकर पीलीभीत टाइगर रिजर्व और कभी-कभी यह उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क तक निकल जाते है.
  • देश में 20 हजार से ज्यादा जंगली हाथी शिकार के अलावा मनुष्यों से संघर्ष, बिजली के करंट से मौत के मुंह में समा जाते हैं.
  • वाइल्ड लाइफ के जानकार कहते हैं कि हाथियों को इंटरनेशनल शिकारियों से भी खतरा रहता है.

लखीमपुर खीरी: यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में नेपाल से आए घुमंतू जंगली हाथियों को दुधवा की सरजमीं से ऐसी मोहब्बत हो गई है कि हाथियों का पूरा कुनबा दुधवा का होकर रह गया है. नेपाली हाथियों में से कोई भी हाथी दुधवा से जाने को राजी नहीं हो रहे हैं. लगभग 50 से 60 हाथियों का परिवार अब दुधवा में ही विचरण कर रहा है.

हाथियों को भा गई दुधवा की सरजमीं.

दुधवा टाइगर रिजर्व में आए हाथी

  • दुधवा टाइगर रिजर्व नेपाल की सीमा से लगा हुआ है.
  • 1996 में इंडियन हाथी को संकटग्रस्त प्रजाति में डाल दिया गया.
  • नेपाल के हाथी अक्सर दुधवा से उत्तराखंड के यूपी कार्बेट टाइगर रिजर्व तक आते-जाते रहते हैं.
  • तराई का यह कारीडोर हाथियों का पुराना रास्ता रहा है.

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हाथियों के व्यवहार में हो रहा बदलाव

  • इन हाथियों की खास बात यह है कि यह न केवल दुधवा में रहते हैं, बल्कि ब्रीडिंग भी कर रहे है.
  • हाथियों को यहां आवास और खाने-पीने की प्रचुर मात्रा उपलब्धता रहती है, जिससे वह यहीं आकर रहते हैं.
  • कतर्निया घाट से लेकर पीलीभीत टाइगर रिजर्व और कभी-कभी यह उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क तक निकल जाते है.
  • देश में 20 हजार से ज्यादा जंगली हाथी शिकार के अलावा मनुष्यों से संघर्ष, बिजली के करंट से मौत के मुंह में समा जाते हैं.
  • वाइल्ड लाइफ के जानकार कहते हैं कि हाथियों को इंटरनेशनल शिकारियों से भी खतरा रहता है.
Intro:हाथियों के विजुअल wrap से भेज रहे। कोई फोटो लगा दीजिएगा हाथियों की।।
लखीमपुर-यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में नेपाल से आए घूमंतू जँगली हाथियों को दुधवा की सरजमीं से ऐसी मोहब्बत हो गई कि हाथियों का पूरा कुनबा दुधवा का होकर रह गया है। दुधवा की आबोहवा नेपाली हाथियों को ऐसी भाई कि हाथी अब दुधवा से जाने को राजी नहीं। करीब 50-60 हाथियों का ये परिवार अब दुधवा में ही विचरण कर रहा। दुधवा के अफसर कहते हैं,हाथियों को दुधवा में सुरक्षा मिल रही,पानी और मनपसन्द भरपूर खाना भी इससे ज्यादा किसी को और क्या चाहिए एक सुरक्षित घरके लिए। ये सुखद खबर है।


Body:दुधवा टाइगर रिजर्व से नेपाल की खुली सीमा सटी हुई है। ऐसे में नेपाल के हाथी अक्सर दुधवा से लेकर उत्तराखंड के यूपी के दुधवा से लेकर उत्तराखंड के कार्बेट टाइगर रिजर्व तक आते जाते रहते हैं। तराई का ये कारीडोर हाथियों का पुराना रास्ता रहा है। हाथी चूंकि घुमंतू जानवर होता है ऐसे में नेपाल से लेकर उत्तराखंड के तराई आर्क के इन जँगलों मे जंगली हाथियों का ये कुनबा बरसों से आता जाता रहा है। पर पिछले कुछ सालों से नेपाल से आने वाले घुमंतू हाथियों का ये बड़े कुनबे को दुधवा की आबोहवा ऐसी भाई है कि हाथियों का दिल यहीं अटक के रह गया है। दुधवा में रह रहे इन जंगली घुमंतू हाथियों की खास बात ये है कि ये न केवल दुधवा में रह रहे यहाँ ब्रीडिंग भी कर रहे। बच्चे भी इस कुनबे में खूब है।
दुधवा टाइगर रिजर्व के बहराइच जिले में पड़ने वाले कतर्निया घाट से लेकर पीलीभीत टाइगर रिजर्व और कभी कभी ये हाथी उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क और कार्बेट तक निकल जाते। पर दुधवा में पिछले कुछ सालों से एक जंगली हाथियों का परिवार यहीं का होकर रह गया है। करीब 50 के इनकी तादात है। कभी कभी ये अलग अलग झुंडों में आसपास के खेतों में भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं।
दुधवा के पूर्व फील्ड डायरेक्टर रमेश पाण्डेय कहते हैं,कि जो हाथी आने की खबरें होती थी अब ई। हाथियों का बिहेवियर कुछ चेंज हो रहा। अब ये दुधवा में ही परमानेंटली रह रहे। वजह हाथियों को मिला सुरक्षित पर्यावास और खाने पीने की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता ही है।


Conclusion:देश भर में जंगली हाथियों की तादात तेजी से कम हो रही। 1996 में इंडियन हाथी को भी संकटग्रस्त प्रजाति में डाल दिया गया है। इस वक्त देश मे 20 हजार से ज्यादा जंगली हाथी जँगलों में हैं पर हाथी दांत के लिए शिकार के अलावा मनुष्यों से संघर्ष,बिजली के करंट और जँगलों से निकली रेल लाइनों से हर साल कई हाथी मौत के मुँह में समा जाते हैं।
तराई नेचर कंजर्वेशन सोसायटी के सचिव और वाइल्ड लाइफ के जानकार डॉ वीपी सिंह कहते हैं,हाथियों को भी इंटरनेशनल शिकारियों से खतरा रहता है। दुधवा में नेपाल की खुली सीमा हमेशा शिकारियों के लिए फायदेमंद रही है। ऐसे में हाथियों को बचाने की चुनातियाँ भी बहुत है। सबसे ज्यादा तो मानव वन्य जीव संघर्ष से खतरा है।
दुधवा के भादी ताल,भदरौला ताल और सठियाना इलाके का नकौवा नाला नेपाली माइग्रेटरी हाथियों का पसंदीदा स्थान है। यहाँ भरपूर पानी की उपलब्धता है। हाथियों को चूंकि पानी बहुत पसंद है ऐसे में वो हमेशा पानी के पास ही रहते। दुधवा के बड़े बड़े ग्रास लैंड भी हाथियों को खाने को घास उपलब्ध कराते हैं। हाथी जँगल में रहें ऐसे ही फलें फूलें,हम इंसान की भी जिम्मेदारी है कि विश्व के इस सबसे बड़े मैमल रूपी थाती को हम बचाकर रखें।
विश्व हाथी दिवस पर दुधवा से आई इस सुखद खबर पर ईटीवी की भी बधाई। हाथियों को बचाना भी हमारी आपकी ही जिम्मेदारी है।
बाइट-डॉ वीपी सिंह(वाइल्ड लाइफ़र)टोपी वाले
बाइट-रमेश पाण्डेय(पूर्व डायरेक्टर दुधवा टाइगर रिजर्व)
पीटीसी-प्रशान्त पाण्डेय
984152598
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