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लखीमपुर खीरी: नहीं खत्म हो रहा पलायन, पैदल चलने को मजबूर हैं मजदूर

लखीमपुर खीरी जिले में दिनभर सैकड़ों मजदूर पैदल ही अपने गृह जनपद पहुंच रहे हैं. नेशनल हाईवे 24 पर हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. कोई साइकिल तो कोई ठेले पर ही बैठकर यहां पहुंच रहा है.

lakhimpur kheri
प्रवासी मजदूर
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Published : May 23, 2020, 2:23 PM IST

लखीमपुर खीरी: जिले में प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. कोई पैदल चल रहा है तो कोई साइकिल से और कोई ठेले से चला आ रहा है. कुछ मजदूर तो ट्रकों और टेम्पों पर लटककर अपने गृह जनपद पहुंच रहे हैं. नेशनल हाईवे 24 पर हजारों की संख्या में रोज दिल्ली से लखनऊ, बंगाल तक जाने वाले प्रवासी मजदूर आ रहे हैं.

जिले के रहने वाले राम दरस अपने बेटे के साथ पैदल ही घर जाने के लिए निकल पड़े हैं. बताते हैं कि वह लॉकडाउन के दौरान चंदौसी में अपने रिश्तेदारी में फंस गए थे. दो महीने से लॉकडाउन नहीं खत्म हुआ तो पैदल ही बेटे के साथ चल दिए. राम दरस सिर पर एक बोरा लादे पैदल घर की तरफ चलते चले जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि रास्ते में कुछ लोगों ने खाना खिला दिया था. मुरादाबाद जिले के चंदौसी से पैदल चलकर रामदरस तीन दिन में मैगलगंज आ पाए हैं. वहीं बोरी लादे फिरोज बागी कासिमपुर से लखनऊ के लिए निकले हैं. ट्रक वालों को देने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं बचे. इसीलिए पैदल चलने को मजबूर हैं.

लखीमपुर खीरी: जिले में प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. कोई पैदल चल रहा है तो कोई साइकिल से और कोई ठेले से चला आ रहा है. कुछ मजदूर तो ट्रकों और टेम्पों पर लटककर अपने गृह जनपद पहुंच रहे हैं. नेशनल हाईवे 24 पर हजारों की संख्या में रोज दिल्ली से लखनऊ, बंगाल तक जाने वाले प्रवासी मजदूर आ रहे हैं.

जिले के रहने वाले राम दरस अपने बेटे के साथ पैदल ही घर जाने के लिए निकल पड़े हैं. बताते हैं कि वह लॉकडाउन के दौरान चंदौसी में अपने रिश्तेदारी में फंस गए थे. दो महीने से लॉकडाउन नहीं खत्म हुआ तो पैदल ही बेटे के साथ चल दिए. राम दरस सिर पर एक बोरा लादे पैदल घर की तरफ चलते चले जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि रास्ते में कुछ लोगों ने खाना खिला दिया था. मुरादाबाद जिले के चंदौसी से पैदल चलकर रामदरस तीन दिन में मैगलगंज आ पाए हैं. वहीं बोरी लादे फिरोज बागी कासिमपुर से लखनऊ के लिए निकले हैं. ट्रक वालों को देने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं बचे. इसीलिए पैदल चलने को मजबूर हैं.

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