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ओ री चिरैया, अंगना में फिर से कब चहचहाएगी - लखीमपुर खीरी ताजा समाचार

घरों को अपनी चहचहाट से भर देनी वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती है. गौरैया की घटती संख्या को देखते हुए इसके संरक्षण के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य लोगों को गौरैया के प्रति जागरुक करना और उसे संरक्षित करना है.

गौरैया
गौरैया
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Published : Mar 21, 2021, 6:07 PM IST

Updated : Mar 21, 2021, 10:45 PM IST

लखीमपुर खीरी: गौरैया... वह छोटी सी चिड़िया जो हमारे कच्चे घरों में छतों की मुंडेर के ऊपर फुदकती रहती थी, आज बहुत कम दिखती है. कंक्रीट के जंगलों का विकास करते-करते हमने कुदरत की उस नेमत को खो दिया है. कथाकार डॉ. देवेंद्र कहते हैं कि आदमी का इतिहास जब लिखा जाएगा, उसमें गौरैया का जिक्र जरूर आएगा. गौरैया हमारे घर-आंगन, कच्चे घरों, छप्परों को अपना आशियाना बनाती थी. जब से लोगों के घर पक्के होने लगे तो गौरैया के घर उजड़ने लगे. हमारे आपके बीच से करीब 50 फीसदी से ज्यादा गौरैया गायब हो गई.

गौरैया के कम होने का सबसे बड़ा कारण पेस्टिसाइड्स का बहुतायत में प्रयोग है. आज भी गौरैया उन स्थानों में दिख जाएगी, जिनमें अभी पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल कम होता है. इससे कुछ चिड़िया सर्वाइव कर ले गईं पर बायोलॉजिकल मैग्नीफिकेशन ने गौरैया पर बुरा असर डाला है. लखीमपुर खीरी जिले में आज भी गौरैया बहुतायत में दिखती है. इसका कारण बताते हुए बायोलॉजिस्ट के. के. मिश्रा कहते हैं कि अभी भी तराई के इस जिले में तमाम जगहों पर पेस्टिसाइड का प्रयोग कम किया जा रहा है, इसलिए गौरेया दिख जाती हैं.

गौरैया को बचाने के लिए इस संस्था ने महिलाओं को बांटे मिट्टी के बर्तन
बाराबंकी की ग्रीनगैंग और आंखें फाउंडेशन संस्था लुप्त होती जा रही गौरैया को बचाने की मुहिम में लगी है. इस संस्था ने विश्व गौरैया दिवस के मौके पर महिलाओं को बर्तन बांटकर उनसे अपील की कि इसमें रोजाना अपने घरों में पानी और दाना दें, ताकि गौरैया को फिर से आंगन तक लाया जा सके. बता दें कि देश भर में इसको बचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है.

गौरैया
गौरैया

पीलीभीत में गौरैया के लिए बनवाए गए घोंसले
पीलीभीत में कलेक्ट्रेट परिसर में जिलाधिकारी पुलकित खरे ने विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर वन विभाग द्वारा कई पेड़ों पर घोंसले लगवाए. जिलाधिकारी पुलकित खरे का कहना है कि गौरैया की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. उन्होंने कहा कि प्रकृति के नायाब तोहफे को संरक्षण की आवश्यकता है. बढ़ते प्रदूषण और शोरगुल के वजह से गौरैया विलुप्त होने की कगार पर है. गौरैया को संरक्षित करने के उद्देश्य से कलेक्ट्रेट परिसर में पेड़ों पर ट्री हाउस रखने की शुरुआत की गई है, साथ ही जिलाधिकारी पुलकित खरे ने जनपद वासियों से भी गौरैया के संरक्षण के लिए अपील की है.

पेड़ों पर ट्री हाउस
पेड़ों पर ट्री हाउस

यह परिवार गौरैया को फिर से आंगन का रास्ता दिखा रहा है
मिर्जापुर में एक ऐसा परिवार है जो गौरैया को आंगन में फिर से लौटाने का रास्ता दिखा रहा है. यह परिवार गौरैया को 1990 से आधुनिक तरीके से संरक्षित करने का कार्य कर रहा है. अब यह घर गौरैया की शरणस्थली बन चुका है. पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे तीर्थपुरोहित मिट्ठू मिश्रा ने बताया कि एक गौरैया पंछी की पंख टूट गयी थी, उसी को देखकर उनके पिता ने गौरैया का सरंक्षण करना शुरू कर दिया. तब से सरंक्षण किया जा रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस घर में गौरैया आशियाना बनाती हैं वहां कभी दुख नहीं होता है.

आंगन में गौरैया.
आंगन में गौरैया.

पक्षियों के संरक्षण हेतु बांटे मिट्टी के सकोरे
अयोध्या में विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर यूनीक एकेडमी बेनीगंज और उदया चौराहे पर सवेरा परिवार द्वारा पक्षियों के संरक्षण हेतु मिट्टी के सकोरों का वितरण किया गया. सवेरा परिवार पक्षियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए पिछले 7 वर्षों से निरंतर 'थोड़ा सा दाना थोड़ा सा पानी' कार्यक्रम चला रहा है. पक्षियों के संरक्षण हेतु सवेरा परिवार द्वारा कई जगहों पर नवग्रह वाटिका, पीपल, पाकड जैसे वृक्षों का रोपण सहित घोसलों के वितरण के कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं. सवेरा परिवार द्वारा अभी तक लगभग 5000 पौधों का वितरण किया जा चुका है.

गौरैया का संरक्षण.
गौरैया का संरक्षण.

लखीमपुर खीरी: गौरैया... वह छोटी सी चिड़िया जो हमारे कच्चे घरों में छतों की मुंडेर के ऊपर फुदकती रहती थी, आज बहुत कम दिखती है. कंक्रीट के जंगलों का विकास करते-करते हमने कुदरत की उस नेमत को खो दिया है. कथाकार डॉ. देवेंद्र कहते हैं कि आदमी का इतिहास जब लिखा जाएगा, उसमें गौरैया का जिक्र जरूर आएगा. गौरैया हमारे घर-आंगन, कच्चे घरों, छप्परों को अपना आशियाना बनाती थी. जब से लोगों के घर पक्के होने लगे तो गौरैया के घर उजड़ने लगे. हमारे आपके बीच से करीब 50 फीसदी से ज्यादा गौरैया गायब हो गई.

गौरैया के कम होने का सबसे बड़ा कारण पेस्टिसाइड्स का बहुतायत में प्रयोग है. आज भी गौरैया उन स्थानों में दिख जाएगी, जिनमें अभी पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल कम होता है. इससे कुछ चिड़िया सर्वाइव कर ले गईं पर बायोलॉजिकल मैग्नीफिकेशन ने गौरैया पर बुरा असर डाला है. लखीमपुर खीरी जिले में आज भी गौरैया बहुतायत में दिखती है. इसका कारण बताते हुए बायोलॉजिस्ट के. के. मिश्रा कहते हैं कि अभी भी तराई के इस जिले में तमाम जगहों पर पेस्टिसाइड का प्रयोग कम किया जा रहा है, इसलिए गौरेया दिख जाती हैं.

गौरैया को बचाने के लिए इस संस्था ने महिलाओं को बांटे मिट्टी के बर्तन
बाराबंकी की ग्रीनगैंग और आंखें फाउंडेशन संस्था लुप्त होती जा रही गौरैया को बचाने की मुहिम में लगी है. इस संस्था ने विश्व गौरैया दिवस के मौके पर महिलाओं को बर्तन बांटकर उनसे अपील की कि इसमें रोजाना अपने घरों में पानी और दाना दें, ताकि गौरैया को फिर से आंगन तक लाया जा सके. बता दें कि देश भर में इसको बचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है.

गौरैया
गौरैया

पीलीभीत में गौरैया के लिए बनवाए गए घोंसले
पीलीभीत में कलेक्ट्रेट परिसर में जिलाधिकारी पुलकित खरे ने विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर वन विभाग द्वारा कई पेड़ों पर घोंसले लगवाए. जिलाधिकारी पुलकित खरे का कहना है कि गौरैया की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. उन्होंने कहा कि प्रकृति के नायाब तोहफे को संरक्षण की आवश्यकता है. बढ़ते प्रदूषण और शोरगुल के वजह से गौरैया विलुप्त होने की कगार पर है. गौरैया को संरक्षित करने के उद्देश्य से कलेक्ट्रेट परिसर में पेड़ों पर ट्री हाउस रखने की शुरुआत की गई है, साथ ही जिलाधिकारी पुलकित खरे ने जनपद वासियों से भी गौरैया के संरक्षण के लिए अपील की है.

पेड़ों पर ट्री हाउस
पेड़ों पर ट्री हाउस

यह परिवार गौरैया को फिर से आंगन का रास्ता दिखा रहा है
मिर्जापुर में एक ऐसा परिवार है जो गौरैया को आंगन में फिर से लौटाने का रास्ता दिखा रहा है. यह परिवार गौरैया को 1990 से आधुनिक तरीके से संरक्षित करने का कार्य कर रहा है. अब यह घर गौरैया की शरणस्थली बन चुका है. पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे तीर्थपुरोहित मिट्ठू मिश्रा ने बताया कि एक गौरैया पंछी की पंख टूट गयी थी, उसी को देखकर उनके पिता ने गौरैया का सरंक्षण करना शुरू कर दिया. तब से सरंक्षण किया जा रहा है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस घर में गौरैया आशियाना बनाती हैं वहां कभी दुख नहीं होता है.

आंगन में गौरैया.
आंगन में गौरैया.

पक्षियों के संरक्षण हेतु बांटे मिट्टी के सकोरे
अयोध्या में विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर यूनीक एकेडमी बेनीगंज और उदया चौराहे पर सवेरा परिवार द्वारा पक्षियों के संरक्षण हेतु मिट्टी के सकोरों का वितरण किया गया. सवेरा परिवार पक्षियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए पिछले 7 वर्षों से निरंतर 'थोड़ा सा दाना थोड़ा सा पानी' कार्यक्रम चला रहा है. पक्षियों के संरक्षण हेतु सवेरा परिवार द्वारा कई जगहों पर नवग्रह वाटिका, पीपल, पाकड जैसे वृक्षों का रोपण सहित घोसलों के वितरण के कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं. सवेरा परिवार द्वारा अभी तक लगभग 5000 पौधों का वितरण किया जा चुका है.

गौरैया का संरक्षण.
गौरैया का संरक्षण.
Last Updated : Mar 21, 2021, 10:45 PM IST
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