लखीमपुर खीरीः यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा को लेकर टाइगर लांग पेट्रोलिंग मार्च निकाला जाएगा. दुधवा टाइगर रिजर्व का फील्ड स्टॉफ पैदल साइकिल, बाईक और गाड़ियों से पूरे टाइगर रिजर्व की पेट्रोलिंग करेंगे. ये पूरी कवायद ग्लोबल टाइगर डे (Global Tiger Day) के मद्देनजर बाघों के आशियाने की सुरक्षा की मॉनिटरिंग के लिए होगी. दुधवा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय कुमार कहते हैं. हम कोशिश करेंगे कि पिछली बार की लॉंग पेट्रोलिंग का रिकार्ड हम तोड़ें. ज्यादा से ज्यादा टाइगर रिजर्व एरिया कवर हो. ये सब बाघों के सुरक्षित पर्यावास के लिए किया जाएगा.
रात 12 बजे से लगातार 24 घण्टे पेट्रोलिंग
बुधवार यानि 28 जुलाई की रात 12 बजे से दुधवा टाइगर रिजर्व, किशनपुर वन्य जीव विहार, बफर जोन और कर्तनियाघाट में एक साथ लांग रूट पेट्रोलिंग शुरू होगी. दुधवा टाइगर रिजर्व के हर रेंज में रेंजर के नेतृत्व में लांग रूट पेट्रोलिंग शुरू होगी. हर रेंज में 20 से तीस टीमें प्रतिभाग करेंगी. जिन्हें करीब 50 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय करनी है. हर टीम में एक फारेस्टर, दो फारेस्ट गार्ड और एक वाचर होगा. सुनिश्चित किया जाएगा कि हर टीम में चार से पाँच फील्ड स्टॉफ हो. पिछले साल ग्लोबल टाइगर डे पर दुधवा में करीब आठ हजार किलोमीटर की पेट्रोलिंग की गई थी. इस बार इस रिकार्ड को तोड़ने की कोशिश होगी. फील्ड डायरेक्टर संजय कुमार कहते है करीब 10 हजार किलोमीटर लांग पेट्रोलिंग का लक्ष्य हम लेकर चलेंगे. ये पेट्रोलिंग पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल और फोरव्हीलर से होगी.
STPF और SSB के जवान भी देंगे साथ
दुधवा टाइगर में बाघों की सुरक्षा के लिए बनाई गई स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स और इंडो नेपाल बॉर्डर पर देश की सुरक्षा में लगी सशस्त्र सीमा बल के जवान भी बाघों को बचाने के लिए इस लांग पेट्रोलिंग मार्च में शामिल होंगे. इंडो नेपाल बॉर्डर पर खजुरिया, संपूर्णानगर, गौरीफंटा, चंदनचौकी, बेला परसुआ और तिकोनियां से लेकर कर्तनियाघाट के जंगल में नेपाल सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल (SSB) के जवान देश के बाघों की सुरक्षा और बाघों को बचाने के इस अभियान में शामिल होंगे. वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व में तैनात स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के जवान भी मार्च में शिरकत करेंगे.
ग्लोबल टाइगर डे 2010 में शुरू किया गया था. रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में बाघों की घटती आबादी पर विश्व समुदाय ने चिंता जाहिर करते हुए 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी करने का प्रण लिया था. 2006 की टाइगर सेंसस में भारत में बाघों की आबादी 1,411 रह गई थी. वहीं उत्तर प्रदेश में ये तादात 109 थी. 2010 में भारत में बाघों की कुल संख्या घटकर 1,706 रह गई थी. जो 2014 में भारत मे हुए कंजर्वेशन कार्यों की बदौलत बढ़कर 2,226 हो गई. वहीं आखिरी बाघ सर्वे में 2018 में भारत में बाघों की ये तादात बढ़कर 2,967 हो गई. उत्तर प्रदेश में 2018 में बाघों की संख्या बढ़कर 173 हो गई. 2018 के बाद अब अगले साल 2022 में फिर भारत मे बाघों की गणना होनी है. बाघों के संरक्षण के लिए ही 29 जुलाई को विश्व टाइगर दिवस के रूप में घोषित किया गया था. बाघों की आबादी भारत मे संरक्षण कार्यों के चलते लगातार बढ़ रही है. गौरतलब है कि बाघों को यूरोप और विश्व में बाघों के देश के रूप में जाना जाता है. भारत में विश्व की कुल आबादी के 70 फीसदी बाघ जंगलों में रहते हैं.
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तराई के जंगल बाघों की है पसंदीदा जगह
इंडो नेपाल बॉर्डर पर बसे तराई के दुधवा टाइगर रिजर्व के साखू के जंगल बाघों की पसंदीदा जगह रहे हैं. बाघों की एक पीढ़ी यहांं पनप रही है इसके साथ प्रजनन भी हो रहा है. तराई के जंगलों से सटे गन्ने के खेत भी बाघों की पसंदीदा रिहायश हैं. बाघों को गन्ने के खेत नरकुल या टाइगर ग्रास की तरह ही सुरक्षित पर्यावास देते. बाघ इन गन्ने के खेतों में प्रजनन भी करते हैं. जिसमे कभी कभी मानव वन्य जीवों का संघर्ष भी हो जाता है. दुधवा टाइगर रिजर्व किशनपुर सेंचुरी और कर्तनियाघाट वन्यजीव विहार के जंगलों से निकलकर अक्सर बाघ गन्ने के खेतों में अपना आशियाना बनाते हैं.