कुशीनगर: दीपावली दीपों का त्योहार है. इसमें कुम्हारों के चाक पर निर्मित मिट्टी के दीयों का बड़ा महत्व है. इन्हीं कुम्हारों के चाक से बने मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाने की पुरानी परंपरा है. यही कारण है कि दीवाली के पहले कुम्हार मिट्टी, लकड़ी आदि जरूरी चीजों की व्यवस्था करके मिट्टी के दिये और खिलौने बनाता हैं. साल में एक बार लोगों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों की जिंदगी अंधेरे में गुजरती है. इन्हें सरकार द्वारा किए जाने वाले वादे हर ग्रामीण इलाकों में बिजली, शौचालय और आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं की दरकार है.
तहसील के ठीक पीछे रहने वाले लोगों को सरकारी योजनाओं की दरकार
कुशीनगर जिले के नगर पंचायत कप्तानगंज वार्ड नम्बर 7 में रहने वाले जगरोपन प्रजापति एक बुजुर्ग कुम्हार हैं. इनके तीन बेटे हैं, जो सभी अपना हिस्सा लेकर अलग रहकर चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं. सरकार लोगों को ग्रामीण इलाकों में सभी परिवारों तक आवास, शौचालय और अन्य सरकारी योजनाओं के पहुंचाने का दावा करती है. इतना ही नहीं लोगों को मिलने वाला केरोसिन तेल भी इस तर्क के साथ सरकार ने बन्द कर दिया कि हर परिवार को मुफ्त विद्युत कनेक्शन उपलब्ध करा दिया गया है, लेकिन कुशीनगर जिले के नगर पंचायत में तहसील के ठीक पीछे रहने वाले जगरोपन और उनके तीन बेटों का लगभग 17 लोगों का परिवार आवास, शौचालय एवं विद्युत जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है.
मजदूरी निकाल पाना भी है मुश्किल
जगरोपन प्रजापति ने बताते हैं कि वह मिट्टी का सामान बनाने वाले कारीगर हैं और इसी से उनके परिवार का पालनपोषण होता है. नगर पंचायत में घर होने के बाद भी कोई सुविधा नहीं मिली है. किसी तरह गुजर बसर हो रहा है. इनका कहना है कि वह जब मिट्टी लेने जाते हैं तो लोग गाली देते हैं और कभी-कभी तो मार भी खानी पड़ जाती है, पर हम गरीबों की सुनने वाला कौन है बस किसी तरह जिंदगी काटी जा रही है. कारीगरी भी ऐसी हो गई कि मजदूरी भी निकाल पाना बहुत मुश्किल है, लागत निकल जाए वही बहुत है. सरकार अगर सुविधाएं देती तो हमारा भी गुजारा हो सकता.
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जब तक पैसे नहीं देंगे तब तक कुछ नहीं मिलेगा
गौरीशंकर बताते हैं हमें मिट्टी भी नहीं मिल रही, लकड़ी भी महंगी है सब खरीदना ही है. साल में हमारी बिक्री रहती नहीं है, त्योहारों के समय भी महंगाई कमर तोड़ रही है. उन्होंने कहा न तो हमारा घर सही है और न ही आवास मिला, लाइट तक नहीं लगवाई गई है क्योंकि कनेक्शन का पैसा नहीं है तो हम कनेक्शन कहां से लाएं. उन्होंने कहा कि जब तक हम आवास के लिए पैसे नहीं देंगे तब तक हम गरीबों को कहां से कुछ मिलेगा. गौरीशंकर ने बताया कि उनके 5 बच्चे हैं, जिनका वह किसी तरह से मेहनत मजदूरी करके गुजारा कर रहे हैं.
जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा
कुम्हार गणेश ने बताया कि हमें इलेक्ट्रॉनिक चाक मिला पर घर में बिजली ही नहीं है. मुफ्त में कनेक्शन तो होता नहीं है क्योंकि अधिकारी कह रहे हैं कि हम नगर में रहते हैं, इसलिए मुफ्त कनेक्शन नहीं दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि 7000 रुपये कर्ज लेकर कनेक्शन लगवाने के लिए दिए हैं, पर सरसों के तेल की महंगाई की वजह से दिये भी लोग कम ही खरीद रहे हैं. ऐसे में हमारी लागत ही निकल जाए तो बहुत है. उन्होंने कहा कि चिंता इसी बात की है कि अब जो कर्ज लिया गया है, वह कहां से दिया जाएगा. बहुत दौड़ने भागने पर हमारा आवास तो आया पर उसके लिए पहले ही 15,000 रुपये घूस दे चुका हूं और अभी भी 5000 रुपये और मांगे जा रहे हैं, वह भी देना ही पड़ेगा. हम लोगों की जिंदगी में अंधेरा ही अंधेरा है.
जिम्मेदार मौन
इस संबंध में जब भाजपा के नगर पंचायत अध्यक्ष से बात करने की कोशिश की गई तो वह इससे बचते नजर आए और कुछ भी बोलने से मना कर दिया. नगर पंचायत के EO विनय मिश्रा ने मामले पर अब जानकारी होने की बात कहते हुए सभी सरकारी सुविधाओं को दिलाने की बात कही.
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गूंगे बहरों की सरकार मूलभूत सुविधाएं भी देने में असफल
समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक शंभू चौधरी ने कुम्हारों के मामले पर सरकार को घेरते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि सरकार जुमले की सरकार हो गई है. सबके घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों के घर ही अंधेरा छाया हुआ है पर गूंगे बहरों की सरकार लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी देने में असफल है. एक तो उनके घरों में बिजली नहीं हैं, उन्हें बिजली के कनेक्शन तो दिए नहीं गए और इलेक्ट्रॉनिक चाक थमा दिया गया है, वह उनको लेकर क्या करेंगे. सरकार ने मिट्टी का तेल देना भी बंद कर दिया है. ऐसे में गरीबों के घर में रोशनी की जगह अंधेरा है और सरकार लोकल फॉर वोकल का दावा कर रही है.