कुशीनगर: जनपद में एक किनारे से होकर संकट के दौर के बीच बहने वाली रामायण कालीन बांसी नदी के दिन अब बहुरने वाले हैं. इसी नदी किनारे कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले के बारे मे एक कहावत है कि 'सौ काशी तो एक बांसी' बिहार और यूपी की सीमा पर इस ऐतिहासिक मेले को लेकर बुधवार को क्षेत्रीय सांसद के साथ जिला प्रशासन ने दौरा किया.
बांसी नदी के दिन बहुरने की लगी आस
जिले के मुख्यालय पडरौना से आठ किमी. दूर बिहार सीमा पर स्थित बांसी नदी के घाट पर लगने वाले ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा मेले की तैयारियाँ शुरू हो गयी हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जनकपुर से अयोध्या लौटने के दौरान की कहानी में भी इस स्थान का ज़िक्र आने से इस स्थान की महत्ता अधिक है. इसी कारण यहां कहा जाता है कि 'सौ काशी तो एक बांसी' मेले के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा यहां नदी किनारे होता है. उस दिन भोर से ही लोग नदी में स्नान कर पुण्य का लाभ कमाते हैं, मेला स्थल के निकट से होकर बहने वाली नदी के बारे में प्रधान प्रतिनिधि विनय कन्नौजिया ने बताया कि नदी संकट के दौर से गुजर रही है. इसकी आवाज सांसद और मंत्री तक कई बार पहुंचाई गई, लेकिन कुछ भी आज तक नही हुआ. अव्यवस्था के कारण संकट के दौर से गुजर रही बांसी नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जिला प्रशासन ने तैयारियाँ शुरु कर दी हैं. घाटों की साफ-सफाई के साथ ही नदी में जमे शिल्ट को निकालने का काम लगा दिया गया है. इसी क्रम में इस ऐतिहासिक स्थल पर बुधवार को क्षेत्रीय भाजपा सांसद विजय दूबे ने जिला प्रशासन के साथ मेला क्षेत्र का दौरा किया.
नदी में जलबहाव का संकट है, उसे दूर करने के लिए सम्बन्धित विभागों को लगाया गया है.
-डॉ.अनिल कुमार सिंह, जिलाधिकारी