कासगंज: कहते हैं न 'दिन सबके वापस आते हैं' और कुछ ऐसा ही सच होता दिख रहा है. अतीत की गर्त में खो चुके उन कुम्हारों के दिन अब लौट रहे हैं. प्लास्टिक से बने सामान के बढ़ते चलन से कुम्हारों का व्यवसाय अतीत की गाथा बन रहा था, लेकिन सरकार की एक सराहनीय पहल से अपना अस्तित्व खोते मिट्टी के बर्तन एक बार फिर अपने चलन में लौट रहे हैं, जिनकी पूछ सिर्फ दीपावली के दियों तक सीमित होती थी, अब वह बाजार में वापस आ रहे हैं, जिनका परिवार सिर्फ चाक के धंधे पर ही पूरी तरह निर्भर करता था, अब उनकी भी आस जगी है.
ईटीवी भारत पहुंचा कुम्हारों के घर
यूपी में 15 जुलाई से पॉलिथीन पर बैन लगा दिया गया है. कई कुम्हारों ने बताया कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद से हमारे चाक, जो चलना बंद हो गए थे फिर से शुरू हो गए हैं. सबसे ज्यादा बाजारों में मांग चाय के कुल्हड़ की आ रही है. अब तो मांग इतनी ज्यादा है कि हम लोग पूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं. जहां पहले दिन भर में हम 20 प्रतिशत तक ही मिट्टी के बर्तन बेच पाते थे, वहीं अब 80 प्रतिशत तक मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं.
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वहीं एक कुम्हार हजारीलाल ने बताया कि मिट्टी के ज्यादा बर्तनों की बिक्री के चलते हमारी आमदनी भी बढ़ गई है, जिससे हमारी आर्थिक स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार आ रहा है. बाजार में हमारा चाय का कुल्लड़ 100 रुपये सैकड़ा तक जा रहा है.
कुम्हार कैलाश ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी इस समय मिट्टी की आ रही है. हम लोगों के पास जो पट्टे हैं, उनसे हम लोग मिट्टी नहीं ले पा रहे हैं. उन पट्टों पर दूसरे लोगों का कब्जा है, जो हमें मिट्टी नहीं उठाने देते हैं. अगर सरकार मिट्टी की परेशानी दूर कर दे तो हमारे जीवन में खुशहाली आ जाएगी.