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प्लास्टिक फ्री अभियान के बाद लौट रहे कुम्हारों के अच्छे दिन...

उत्तर प्रदेश में प्लास्टिक पूरी तरह बैन हो चुकी है. प्लास्टिक के बैन होने से कुम्हारों के दिन फिर से लौट रहे हैं. सरकार के इस फैसले से अस्तित्व खोते मिट्टी के बर्तन फिर से चलन में लौट रहे हैं. जमीनी हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत ने कासगंज जिले में कुम्हारों से बातचीत की. देखिए रिपोर्ट...

लौट रहे कुम्हारों के अच्छे दिन
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Published : Oct 13, 2019, 11:37 AM IST

कासगंज: कहते हैं न 'दिन सबके वापस आते हैं' और कुछ ऐसा ही सच होता दिख रहा है. अतीत की गर्त में खो चुके उन कुम्हारों के दिन अब लौट रहे हैं. प्लास्टिक से बने सामान के बढ़ते चलन से कुम्हारों का व्यवसाय अतीत की गाथा बन रहा था, लेकिन सरकार की एक सराहनीय पहल से अपना अस्तित्व खोते मिट्टी के बर्तन एक बार फिर अपने चलन में लौट रहे हैं, जिनकी पूछ सिर्फ दीपावली के दियों तक सीमित होती थी, अब वह बाजार में वापस आ रहे हैं, जिनका परिवार सिर्फ चाक के धंधे पर ही पूरी तरह निर्भर करता था, अब उनकी भी आस जगी है.

लौट रहे कुम्हारों के अच्छे दिन.

ईटीवी भारत पहुंचा कुम्हारों के घर
यूपी में 15 जुलाई से पॉलिथीन पर बैन लगा दिया गया है. कई कुम्हारों ने बताया कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद से हमारे चाक, जो चलना बंद हो गए थे फिर से शुरू हो गए हैं. सबसे ज्यादा बाजारों में मांग चाय के कुल्हड़ की आ रही है. अब तो मांग इतनी ज्यादा है कि हम लोग पूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं. जहां पहले दिन भर में हम 20 प्रतिशत तक ही मिट्टी के बर्तन बेच पाते थे, वहीं अब 80 प्रतिशत तक मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं.

इसे भी पढ़ें - फसलों के दुश्मन बने अन्ना पशु, खौफ में जी रहे किसान

वहीं एक कुम्हार हजारीलाल ने बताया कि मिट्टी के ज्यादा बर्तनों की बिक्री के चलते हमारी आमदनी भी बढ़ गई है, जिससे हमारी आर्थिक स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार आ रहा है. बाजार में हमारा चाय का कुल्लड़ 100 रुपये सैकड़ा तक जा रहा है.

कुम्हार कैलाश ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी इस समय मिट्टी की आ रही है. हम लोगों के पास जो पट्टे हैं, उनसे हम लोग मिट्टी नहीं ले पा रहे हैं. उन पट्टों पर दूसरे लोगों का कब्जा है, जो हमें मिट्टी नहीं उठाने देते हैं. अगर सरकार मिट्टी की परेशानी दूर कर दे तो हमारे जीवन में खुशहाली आ जाएगी.




कासगंज: कहते हैं न 'दिन सबके वापस आते हैं' और कुछ ऐसा ही सच होता दिख रहा है. अतीत की गर्त में खो चुके उन कुम्हारों के दिन अब लौट रहे हैं. प्लास्टिक से बने सामान के बढ़ते चलन से कुम्हारों का व्यवसाय अतीत की गाथा बन रहा था, लेकिन सरकार की एक सराहनीय पहल से अपना अस्तित्व खोते मिट्टी के बर्तन एक बार फिर अपने चलन में लौट रहे हैं, जिनकी पूछ सिर्फ दीपावली के दियों तक सीमित होती थी, अब वह बाजार में वापस आ रहे हैं, जिनका परिवार सिर्फ चाक के धंधे पर ही पूरी तरह निर्भर करता था, अब उनकी भी आस जगी है.

लौट रहे कुम्हारों के अच्छे दिन.

ईटीवी भारत पहुंचा कुम्हारों के घर
यूपी में 15 जुलाई से पॉलिथीन पर बैन लगा दिया गया है. कई कुम्हारों ने बताया कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद से हमारे चाक, जो चलना बंद हो गए थे फिर से शुरू हो गए हैं. सबसे ज्यादा बाजारों में मांग चाय के कुल्हड़ की आ रही है. अब तो मांग इतनी ज्यादा है कि हम लोग पूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं. जहां पहले दिन भर में हम 20 प्रतिशत तक ही मिट्टी के बर्तन बेच पाते थे, वहीं अब 80 प्रतिशत तक मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं.

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वहीं एक कुम्हार हजारीलाल ने बताया कि मिट्टी के ज्यादा बर्तनों की बिक्री के चलते हमारी आमदनी भी बढ़ गई है, जिससे हमारी आर्थिक स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार आ रहा है. बाजार में हमारा चाय का कुल्लड़ 100 रुपये सैकड़ा तक जा रहा है.

कुम्हार कैलाश ने बताया कि सबसे बड़ी परेशानी इस समय मिट्टी की आ रही है. हम लोगों के पास जो पट्टे हैं, उनसे हम लोग मिट्टी नहीं ले पा रहे हैं. उन पट्टों पर दूसरे लोगों का कब्जा है, जो हमें मिट्टी नहीं उठाने देते हैं. अगर सरकार मिट्टी की परेशानी दूर कर दे तो हमारे जीवन में खुशहाली आ जाएगी.




Intro:2 अक्टूबर से देश में प्लास्टिक बैन होने के बाद अपना अस्तित्व खो चुके कुम्हारों के दिन अब बहुरने लगे हैं। जो मिट्टी के कुल्हड़ बीते जमाने की बात हो गए थे। अब फिर से उनके चलन में आने से कुम्हारों को उनके रोजगार में प्रबल सम्भावनाएं नज़र आने लगीं हैं। क्योंकि प्लास्टिक बैन होने के बाद बाजारों में अचानक मिट्टी के कुल्हड़ों की मांग बढ़ी है। ईटीवी भारत ने प्लास्टिक बैन से कुम्हारों पर पड़ने वाले प्रभाव की पड़ताल की।


Body:वीओ-1-प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के चलते कुम्हारों पर इसके सीधे असर को जानने ईटीवी भारत कुम्हारों के घर पहुंचा और हकीकत जानी। कई कुम्हारों ने बताया के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद से हमारे चाक जो चलना बंद हो गए थे फिर से शुरू हो गए हैं। सबसे ज्यादा बाजारों में मांग चाय के कुल्हड़ की आ रही है । और अब तो मांग इतनी ज्यादा है कि हम लोग पूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं। जहां पहले दिन भर में हम 20 प्रतिशत तक ही मिट्टी के बर्तन बेच पाते थे वही अब 80% तक मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं। जिनमें में सबसे ज्यादा चाय के कुल्लड़ बिक रहे हैं।


वीओ-2- वही एक कुम्हार हजारीलाल ने बताया मिट्टी के ज्यादा बर्तनों की बिक्री के चलते हमारी आमदनी भी बढ़ गई है जिससे हमारी आर्थिक स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार आ रहा है।बाजार में हमारा चाय का कुल्लड़ ₹100 सैकड़ा तक जा रहा है।

वहीं एक कुम्हार कैलाश ने बताया कि कि सबसे बड़ी परेशानी इस समय मिट्टी की आ रही है। हम लोगों को मिट्टी नहीं मिल पा रही है ।हम लोगों के पास जो पट्टे हैं उनसे हम लोग मिट्टी नहीं ले पा रहे हैं। उन पट्टों पर दूसरे लोगों का कब्जा है जो हमें मिट्टी नहीं उठाने देते हैं। जिस से ज्यादा मात्रा में मिट्टी के बर्तन नहीं बना पा रहे हैं। अगर सरकार मिट्टी की परेशानी और दूर कर दे तो हमारे जीवन में खुशहाली आ जाएगी।

वीओ-3- वहीं जहां एक तरफ प्लास्टिक पर पूर्णतया पाबंदी की बात चल रही है तो वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि कासगंज में अभी भी काफी हद तक प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा है।

एक कुम्हार रामनिवास ने बताया की शादी ब्याह में और गांव में प्लास्टिक के ग्लासों का प्रयोग पाबन्दी के बावजूद अभी भी किया जा रहा है अगर इनका प्रयोग और बंद हो जाए तो हम कुम्हारों का बहुत फायदा होगा और आमदनी कई गुना बढ़ जाएगी। प्रशासन को प्लास्टिक प्रयोग करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।


(क्रमशः)

वन टू वन-1-हज़ारी लाल -कुम्हार
बाइट-2-कैलाश -कुम्हार
बाइट-3-राम निवास -कुम्हार
बाइट-4-दयाराम -कुम्हार
बाइट-5-मुक़ीम -चाय विक्रेता


Conclusion:कुल मिलाकर प्लास्टिक पर काफी हद तक पाबंदी से कुम्हारों के सुनहरे दिन के आने की दस्तक सुनने को साफ मिल रही है। उनके चारक जो जाम हो गए थे फिर से चलना शुरू हो गए हैं। देर सवेर ही सही प्लास्टिक बंदी के बहाने उनके रोजगार को भी पंख लगने शुरू हो गए हैं। जिससे कुम्हारों के चेहरे पर रौनक वापस लौट आई है। इस दिवाली सरकार के द्वारा कुम्हारों के लिए यह सबसे बड़ा तोहफा है।
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