कानपुर: कहा जाता है कि जल है तो जीवन है. जल के बिना जीवन न के बराबर है. हमारे शरीर को पानी की बहुत अधिक जरूरत होती है. देश में नदियों का सूखना बहुती ही चिंतनीय विषय है. पद्मश्री से सम्मानित उमाशंकर पांडेय ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि पुराने समय में गांव में जल स्रोत तरह-तरह के होते थे और गांव का पानी गांव में ही बना रहता था. लेकिन अब गांव-गांव में पानी का संकट खड़ा हो गया है.
उमाशंकर पांडेय ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को लेकर कहा कि यह कारण बहुत ही चिंतनीय है. गांव-गांव में पानी का संकट बना हुआ है. अगर वर्षा की बूंदें जहां गिरें, वहीं रुकें तो आने वाले समय में जल संकट बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि पानी को लोगों को खुद बचाना होगा. पानी को बना नहीं सकते हैं लेकिन उसे बर्बाद होने से जरूर बचा सकते हैं.
उमाशंकर पांडेय ने कहा कि गंगा और दूसरी नदियों का जल आज दूषित है. उन्होंने बताया कि लोग जागरूक नहीं हैं. इसलिए गंगाजल आचमन लायक नहीं बचा है. सरकार के साथ ही हमें जागरूक होना होगा. गंगा व अन्य नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए नदियों में फल-फूल पत्ती, कूड़ा फेंकना बंद करना किया जाना चाहिए. पशुओं को नदियों के बाहर नहलाना चाहिए. इसके साथ ही शवों को प्रवाहित होने से रोकना चाहिए. इससे नदियों को दूषित होने से बचाया जा सकता है. लोगों को सरकार के प्रयास से साथ खड़ा होकर नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है.
उमाशंकर पांडेय ने कहा पानी को बचाने के लिए हमें आगे आने वाली पीढ़ी को इसके लिए तैयार करना होगा. उन्हें बताना होगा कि कई सौ साल पहले हमारे पूर्वज पानी का बचाव कैसे करते थे. इसके लिए हमें उन्हें जागृत कर गांव के नालों को ठीक करना होगा. इसके साथ ही तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए बारिश की हर बूंद को रोकना होगा. जिससे जल संकट से छुटकारा मिल सकता है. उन्होंने कहा कि लोगों को यह संकल्प लेना होगा, कि जल ही जीवन है और जल में जीवन है.
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