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जब अटल जी ने कहा- 'कानपुर का फैसला हम करेंगे' - कानपुर ताजा समाचार

अटल बिहारी वाजपेयी अपने सहज और सरल व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं. कानपुर से भी उनका खास लगाव था. कानपुर के सांसद सत्देव पचौरी से जब अटल जी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अटल जी से जुड़ी कई यादों को हमसे साझा किया.

सत्यदेव पचौरी
सत्यदेव पचौरी
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Published : Dec 25, 2020, 1:04 AM IST

कानपुर: अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में सिद्धान्तों को जितनी तवज्जो देते थे, उतनी ही तवज्जो वह उन्होंने अपने जीवन में संबंधों को भी देते थे. अटल जी अगर एक बार किसी से मिल लें, तो जीवन भर उसको भूलते नहीं थे. वह अटल बिहारी थे, जो हजारों की भीड़ में भी अपने परिचितों को न सिर्फ पहचान लेते थे, बल्कि उनको नाम से बुलाकर उनका हाल जानते थे. संबंधों की मर्यादा का भान अटल जी को हमेशा रहा है.

सत्यदेव पचौरी ने साझा की अटल जी से जुड़ी यादें.

अपने गुरु को लेने खुद गेट पर आए थे अटल जी

एक बार कानपुर के एक शिक्षक उनसे मिलने पहुंचे. अटल जी को जैसे ही इस बात का पता चला तो पीएम होते हुए भी उन्होंने न सिर्फ खुद गेट पर आकर उनको रिसीव किया, बल्कि उनके पैर छूकर अपने साथ ले गए. यह दृश्य देखकर पूरा पीएमओ और खुद वह शिक्षक चकित रह गए. जब उन्होंने देखा कि देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसा व्यवहार है. इस पर अटल जी ने कहा कि मैं देश के लिए तो प्रधानमंत्री हूं, लेकिन आपके लिए मैं सिर्फ आपका शिष्य हूं और आप मेरे गुरु हैं. आपका सम्मान मेरे लिए सर्वोपरि है. अटल जी की यह सहजता उन्हें राजनीति का आदर्श बनाती है. यह कहना है कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी का. जिनको अटल जी ने 2004 में न सिर्फ लोकसभा का टिकट दिया था, बल्कि दोस्त के छोटे भाई होने के नाते उस संबंध को जिंदगी भर माना भी.

बड़े भाई के साथ डीएवी में की पढ़ाई

सांसद सत्यदेव पचौरी ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी जब पढ़ने के लिए कानपुर आए थे, तो उस दौरान उन्होंने मेरे बड़े भाई श्रीनिवास शास्त्री के साथ पढाई पूरी की. इस दौरान उनके पिताजी भी साथ पढ़ने आये थे. वह यहां पर एमए इन पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर रहे थे, जबकि उनके पिताजी यहां से एलएलबी कर रहे थे. इस दौरान दोनों एक ही कमरे में रहते थे, लेकिन अटल जी कभी असहज नहीं हुए. उन्होंने हमेशा अपने पिताजी का ध्यान रखा और वह उनके लिए खुद खाना बनाते थे.

प्रधानमंत्री बनने के बाद बिना बताए आ गए थे घर

सत्यदेव पचौरी आगे बताते हैं कि अटल जी की सहजता और अपने संबंधियों का ख्याल कितना था, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब अटल जी प्रधानमंत्री हुए और उन्होंने 13 दिन और 13 माह की सरकार चलाई. उसके बाद जब प्रधानमंत्री नहीं रहे तो वह लखनऊ आकर रहने लगे थे. एक बार वह बिना किसी को बताए रामप्यारे पांडे के साथ शुक्लागंज मेरे घर चले आए. वह घर के कमरे में आकर लेट गए. कहने लगे श्रीनिवास जी को बुलाओ. जब भाई साहब ने पूछा कि आप बिना बताए कैसे आ गए, तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी याद आ गयी. इससे पता चलता है कि वह अपने साथ पढ़ने वालों और अपने मित्र और परिवार के लोगों से संबंधों का कितना ध्यान रखते थे.

कानपुर में किया था वाल्मीकि बस्ती का दौरा

कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी ने बताया कि अटल बिहारी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो एक बार फर्रूखाबाद आए हुए थे. मुझे सूचना मिली कि कानपुर भी आएंगे. इस पर मैने झकरकटी के पास वाल्मीकि बस्ती में भ्रमण का दौरा रखवाया, जिसपर वह तुरंत तैयार भी हो गए और उन्होंने वाल्मिकी बस्ती का दौरा भी किया. इस दौरान हमारे कार्यकर्ता छवि लाल सुदर्शन की पत्नी ने उनका स्वागत किया. इसके बाद करीब 10 साल बाद वह प्रधानमंत्री बने. वह इतने सहज थे कि किसी के साथ भी घुल मिल जाते थे.

2004 में दिया था लोकसभा का टिकट

सत्यदेव पचौरी ने एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि 2004 में लोकसभा के चुनाव होने थे. इस दौरान मैं भी टिकट चाहता था. मैं 16 लोगों को लेकर अटल जी के निवास दिल्ली पहुंच गया. वहां उन्होंने कहा कि कैसे आना हुआ. तो मैंने कुछ कहा नहीं, बल्कि चुनाव के विषय में बात करने लगा था. उन्होंने वहां पर हम सभी को नाश्ता करवाया. नाश्ते के बाद उन्होंने हम लोगों की पूरी बात सुनी. इस दौरान जब मैंने टिकट के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि अब कानपुर का फैसला मैं करूंगा. इसके बाद ही उन्होंने 2004 में मुझे लोकसभा का टिकट दिया था.

कानपुर: अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में सिद्धान्तों को जितनी तवज्जो देते थे, उतनी ही तवज्जो वह उन्होंने अपने जीवन में संबंधों को भी देते थे. अटल जी अगर एक बार किसी से मिल लें, तो जीवन भर उसको भूलते नहीं थे. वह अटल बिहारी थे, जो हजारों की भीड़ में भी अपने परिचितों को न सिर्फ पहचान लेते थे, बल्कि उनको नाम से बुलाकर उनका हाल जानते थे. संबंधों की मर्यादा का भान अटल जी को हमेशा रहा है.

सत्यदेव पचौरी ने साझा की अटल जी से जुड़ी यादें.

अपने गुरु को लेने खुद गेट पर आए थे अटल जी

एक बार कानपुर के एक शिक्षक उनसे मिलने पहुंचे. अटल जी को जैसे ही इस बात का पता चला तो पीएम होते हुए भी उन्होंने न सिर्फ खुद गेट पर आकर उनको रिसीव किया, बल्कि उनके पैर छूकर अपने साथ ले गए. यह दृश्य देखकर पूरा पीएमओ और खुद वह शिक्षक चकित रह गए. जब उन्होंने देखा कि देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसा व्यवहार है. इस पर अटल जी ने कहा कि मैं देश के लिए तो प्रधानमंत्री हूं, लेकिन आपके लिए मैं सिर्फ आपका शिष्य हूं और आप मेरे गुरु हैं. आपका सम्मान मेरे लिए सर्वोपरि है. अटल जी की यह सहजता उन्हें राजनीति का आदर्श बनाती है. यह कहना है कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी का. जिनको अटल जी ने 2004 में न सिर्फ लोकसभा का टिकट दिया था, बल्कि दोस्त के छोटे भाई होने के नाते उस संबंध को जिंदगी भर माना भी.

बड़े भाई के साथ डीएवी में की पढ़ाई

सांसद सत्यदेव पचौरी ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी जब पढ़ने के लिए कानपुर आए थे, तो उस दौरान उन्होंने मेरे बड़े भाई श्रीनिवास शास्त्री के साथ पढाई पूरी की. इस दौरान उनके पिताजी भी साथ पढ़ने आये थे. वह यहां पर एमए इन पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर रहे थे, जबकि उनके पिताजी यहां से एलएलबी कर रहे थे. इस दौरान दोनों एक ही कमरे में रहते थे, लेकिन अटल जी कभी असहज नहीं हुए. उन्होंने हमेशा अपने पिताजी का ध्यान रखा और वह उनके लिए खुद खाना बनाते थे.

प्रधानमंत्री बनने के बाद बिना बताए आ गए थे घर

सत्यदेव पचौरी आगे बताते हैं कि अटल जी की सहजता और अपने संबंधियों का ख्याल कितना था, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब अटल जी प्रधानमंत्री हुए और उन्होंने 13 दिन और 13 माह की सरकार चलाई. उसके बाद जब प्रधानमंत्री नहीं रहे तो वह लखनऊ आकर रहने लगे थे. एक बार वह बिना किसी को बताए रामप्यारे पांडे के साथ शुक्लागंज मेरे घर चले आए. वह घर के कमरे में आकर लेट गए. कहने लगे श्रीनिवास जी को बुलाओ. जब भाई साहब ने पूछा कि आप बिना बताए कैसे आ गए, तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी याद आ गयी. इससे पता चलता है कि वह अपने साथ पढ़ने वालों और अपने मित्र और परिवार के लोगों से संबंधों का कितना ध्यान रखते थे.

कानपुर में किया था वाल्मीकि बस्ती का दौरा

कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी ने बताया कि अटल बिहारी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो एक बार फर्रूखाबाद आए हुए थे. मुझे सूचना मिली कि कानपुर भी आएंगे. इस पर मैने झकरकटी के पास वाल्मीकि बस्ती में भ्रमण का दौरा रखवाया, जिसपर वह तुरंत तैयार भी हो गए और उन्होंने वाल्मिकी बस्ती का दौरा भी किया. इस दौरान हमारे कार्यकर्ता छवि लाल सुदर्शन की पत्नी ने उनका स्वागत किया. इसके बाद करीब 10 साल बाद वह प्रधानमंत्री बने. वह इतने सहज थे कि किसी के साथ भी घुल मिल जाते थे.

2004 में दिया था लोकसभा का टिकट

सत्यदेव पचौरी ने एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि 2004 में लोकसभा के चुनाव होने थे. इस दौरान मैं भी टिकट चाहता था. मैं 16 लोगों को लेकर अटल जी के निवास दिल्ली पहुंच गया. वहां उन्होंने कहा कि कैसे आना हुआ. तो मैंने कुछ कहा नहीं, बल्कि चुनाव के विषय में बात करने लगा था. उन्होंने वहां पर हम सभी को नाश्ता करवाया. नाश्ते के बाद उन्होंने हम लोगों की पूरी बात सुनी. इस दौरान जब मैंने टिकट के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि अब कानपुर का फैसला मैं करूंगा. इसके बाद ही उन्होंने 2004 में मुझे लोकसभा का टिकट दिया था.

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