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दशहरा पर यहां होती है रावण की पूजा

विजयादशमी का त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस दिन हर कोई रावण का पुतला जलाकर राम की रावण पर जीत का जश्न मनाता है. रावण का व्यक्तित्व कुछ ऐसा ही है कि हम रावण को दोषी मानते हैं और उसका पुतला तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जलाते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि रावण का यही व्यक्तित्व उसकी पूजा भी कराता है.

दशहरा पर कानपुर में होती है रावण की पूजा.
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Published : Oct 8, 2019, 7:18 PM IST

कानपुरः अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक विजयादशमी का त्योहार पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. रावण का व्यक्तित्व शायद ऐसा ही है कि हम रावण को दोषी मानते हैं और उसका पुतला तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जलाते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि रावण का यही व्यक्तित्व उसकी पूजा भी कराता है.

विजयादशमी पर होती है रावण की पूजा.

उद्योग नगरी में स्थित है दशानन का मंदिर
प्रदेश में एक शहर ऐसा भी है, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है और पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है, जो केवल दशहरा के मौके पर खोला जाता है. कानपुर महानगर के बीचों-बीच स्तिथ कैलाश मंदिर परिसर में दशानन (रावण) का मंदिर है. विजयादशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधि-विधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रृंगार किया जाता है. उसके बाद पूजन के साथ रावण की पूजा कर आरती की जाती है.

क्या है रावण को पूजने की कहानी
युद्ध के दौरान ब्रह्मबाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की, उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया. यह वह समय था, जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े हो कर सम्मानपूर्वक नीति से ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करों, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा. मान्यता है कि रावण के इसी विद्वता ने रावण को पूज्यनीय बना दिया.

कब बना था यह मंदिर
सन 1868 में कानपुर महानगर के बींचो-बीच बने इस मंदिर में तब से आज तक निरंतर रावण की पूजा होती है. लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और मंदिर खुलने पर यहां बड़े धूम-धाम से पूजा-अर्चना करते हैं. मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती हैं और लोग इसलिए यहां दशहरा पर रावण की विशेष पूजा करते हैं.

कानपुरः अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक विजयादशमी का त्योहार पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. रावण का व्यक्तित्व शायद ऐसा ही है कि हम रावण को दोषी मानते हैं और उसका पुतला तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जलाते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि रावण का यही व्यक्तित्व उसकी पूजा भी कराता है.

विजयादशमी पर होती है रावण की पूजा.

उद्योग नगरी में स्थित है दशानन का मंदिर
प्रदेश में एक शहर ऐसा भी है, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है और पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है, जो केवल दशहरा के मौके पर खोला जाता है. कानपुर महानगर के बीचों-बीच स्तिथ कैलाश मंदिर परिसर में दशानन (रावण) का मंदिर है. विजयादशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधि-विधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रृंगार किया जाता है. उसके बाद पूजन के साथ रावण की पूजा कर आरती की जाती है.

क्या है रावण को पूजने की कहानी
युद्ध के दौरान ब्रह्मबाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की, उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया. यह वह समय था, जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े हो कर सम्मानपूर्वक नीति से ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करों, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा. मान्यता है कि रावण के इसी विद्वता ने रावण को पूज्यनीय बना दिया.

कब बना था यह मंदिर
सन 1868 में कानपुर महानगर के बींचो-बीच बने इस मंदिर में तब से आज तक निरंतर रावण की पूजा होती है. लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते हैं और मंदिर खुलने पर यहां बड़े धूम-धाम से पूजा-अर्चना करते हैं. मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती हैं और लोग इसलिए यहां दशहरा पर रावण की विशेष पूजा करते हैं.

Intro:अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक रावण का व्यक्तित्व शायद ऐसा ही है कि हम सरेआम रावण को दोषी मानते है और उसका पुतला तालियों की गडगडाहट के बीच जलाते है,लेकिन क्या आपने सोचा है कि रावण का यही व्यक्तित्व उसकी पूजा भी कराता है | पूरे देश में विजयदशमी में रावण का प्रतीक रूप में वध कर चाहे उसका पुतला जलाया जाता हो , लेकिन उत्तर प्रदेश में कानपुर एक ऐसी जगह है जहा दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है | इतना ही नहीं यहाँ पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है जो केवल वर्ष में दशहरे के मौके पर खोला जाता है 




Body:रावण का ये मंदिर उद्दोग नगरी कानपुर में मौजूद है | विजयदशमी के दिन इस मंदिर में पूरे विधिविधान से रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है उसके बाद पूजन के साथ रावण की स्तुति कर आरती की जाती है |    

ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया यह वह समय था जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरो की तरफ खड़े हो कर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा,रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है | 




Conclusion:सन 1868 में कानपुर में बने इस मंदिर में तबसे आज तक निरंतर रावण की पूजा होती है लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इन्तजार करते है और मंदिर खुलने पर यहाँ पूजा अर्चना बड़े धूम धाम से करते है पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ रावण की आरती भी की जाती है कानपुर में मौजूद रावण के इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसी लिए यहाँ दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं यहाँ दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था |  

बाईट - विनोद कुमार शुक्ला (पुजारी)

बाईट - सिंपल गुप्ता (श्रद्धालु)

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