कानपुर : 'अगर कोई युवा एक अच्छा कवि बनना चाहता है, तो उसे सबसे पहले एक अच्छा व्यक्ति बनना होगा. दूसरों के कष्ट को समझना होगा. संवेदनाओं को जीना होगा. जो बात वह दिल से कह सकता है, उसे दिल से ही कहनी होगी. निश्चित तौर पर फिर वह युवा अच्छा कवि बन सकता है.' गुरुवार को ईटीवी भारत संवाददाता से एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान उक्त बातें विशेष सचिव उच्च शिक्षा डा.अखिलेश मिश्रा ने साझा कीं. वह छत्रपति शाहू जी महाराज विवि में हिंदी दिवस पर आयोजित कवि सम्मेलन कार्यक्रम में शामिल होने आए थे और बात कर रहे थे. उन्होंने कहा, जब कोई बात दिल से कही जाती है तो वह ही कविता हो जाती है.
'सोशल मीडिया के चलते श्रोता कवि सम्मेलनों से हो रहे दूर' : जब विशेष सचिव उच्च शिक्षा से यह सवाल किया गया, कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि अब श्रोता कवि सम्मेलनों से दूर हो रहे हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 'सोशल मीडिया इसका एक बड़ा कारण बन चुका है. क्योंकि, कविता में जो तत्सम और तद्भव का सामंजस्य पहले देखने को मिलता था, वह अब के दौर में नहीं है. अब अगर तत्सम है तो तद्भव का अर्थ बदला हुआ है. लोग दो-दो लाइनें लिखकर ही खुद को कवि मानने लगे हैं. अब जो मंचीय कवि सम्मेलन हैं, उनमें क्वांटिटी तो दिख जाती है, लेकिन क्वालिटी काफी हद तक प्रभावित हो गई है. किताबों से लोगों का वह जुड़ाव नहीं रहा, जो वर्षों पहले हुआ करता था. बोले, अगर हम किताबें पढ़ेंगे तो निश्चित तौर पर कविता के प्रति हमारा लगाव बढ़ेगा.'
'साहित्य से युवाओं को जुड़ना है तो हिंदी भाषा को समझना होगा, पढ़ना होगा' : युवा साहित्य से कैसे जुड़ सकते हैं? जैसे ही विशेष सचिव उच्च शिक्षा डा. अखिलेश मिश्रा से यह प्रश्न किया गया तो जवाब में उन्होंने कहा कि 'साहित्य से जुड़ने के लिए युवाओं को हिंदी भाषा को समझना होगा, पढ़ना होगा. जब देश को सर्वोपरि मानेंगे तो हिंदी की बात खुद सामने आ जाएगी. आगे कहा, कि जब हम राष्ट्रीयता की बात करते हैं तो उसमें भाषा, क्षेत्र और संस्कृति का समावेश होता है. अंतरराष्ट्रीय फोरम पर जब यह कहा जाता है, कि हम उन्नत राष्ट्र हैं तो खुद ब खुद यह बात सामने आती है कि हम भाषा, वेदों और श्लोकों की वजह से मजबूत हैं. यहां यही समझना होगा कि हमारी हिंदी जितनी मजबूत होगी, अधिक से अधिक हिंदी का प्रयोग होगा तो लाजिमी है कि हमारा रुझान साहित्य की ओर होगा.