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महाभारत कालीन इस मंदिर में आज भी सुबह की पहली पूजा करते हैं अश्वत्थामा - महाभारत कालीन मंदिर कानपुर

यूपी के कानपुर में गंगा नदी के किनारे महादेव का खेरेश्वर मंदिर स्थापित है. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां सुबह की पहली पूजा अश्वत्थामा करते हैं. शाम की आरती के बाद जब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तब सुबह पट खुलने पर रोजाना शिवलिंग पर जंगली फूल और जल चढ़ा हुआ मिलता है.

महाभारत कालीन मंदिर.
महाभारत कालीन मंदिर.
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Published : Dec 21, 2020, 5:33 PM IST

कानपुर: जनपद में गंगा के समीप बने महादेव का खेरेश्वर मंदिर न सिर्फ अनोखा है, बल्कि महाभारत कालीन इस शिवालय में आज भी पहली पूजा के अनसुलझे रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है. इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह पट खुलने पर शिवलिंग पर जंगली फूल चढ़े मिलते हैं. करीब 700 साल पहले खुदाई में मिले शिवलिंग की स्थापना करके मंदिर का निर्माण कराया गया था तब से यह मंदिर खेरेश्वर बाबा के नाम से सुप्रसिद्ध है.

गंगा के किनारे स्थापित है महादेव का प्राचीनतम मंदिर
कानपुर जनपद मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे स्थापित महाभारत कालीन खेरेश्वर मंदिर गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है. शिवालय के पुजारी कमलेश कुमार गोस्वामी ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि महाभारत काल में कौरव-पाण्डव के गुरु द्रोणाचार्य ने स्वयं खेरेश्वर महादेव की तपस्या की थी. खेरेश्वर धाम की मान्यता है कि द्वापर युग में यह क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य का आरण्य वन हुआ करता था. इसी स्थान पर द्रोण ने पांडवों और कौरवों को शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया था. पुजारी यह भी बताते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों की छल से हत्या कर दी थी, तब भीम ने अश्वत्थामा के माथे में लगी मणि निकालकर उसे अशक्त बना दिया था. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वह पृथ्वी लोक में तब तक पीड़ा झेलते हुए जीवित रहेंगे जब तक स्वयं देवों के देव महादेव उसे पापों से मुक्त न कर दें.

जानकारी देते संवाददाता.

आज भी शिवालय में पहली पूजा करते हैं अश्वत्थामा
मान्यता है कि आज भी शिवलिंग की पहली पूजा युगों से अजर-अमर योद्धा अश्वत्थामा ही करते आ रहे हैं. सांय आरती के बाद जब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तब सुबह पट खुलने पर रोजाना शिवलिंग पर जंगली फूल और जल चढ़ा हुआ मिलता है. यह क्रम सैकड़ों सालों से निर्बाध रूप से प्रतिदिन चला आ रहा है.
खेरेश्वर मंदिर के पुजारी कमलेश गोस्वामी ने बताया कि अश्वत्थामा की प्रथम पूजा करने के रहस्य का पता लगाने के लिए बहुत लोगों ने प्रयास किया. इतना ही नहीं देश के कई मीडिया संस्थान पूरी रात मंदिर में कैमरा लगाकर निगरानी करते रहे, लेकिन रात में पहली पूजा की पहेली को नहीं सुलझा पाए.

अटूट आस्था का केंद्र है खेरेश्वर मंदिर
खेरेश्वर मंदिर में पूजन की विशेष मान्यता है. यहां बाबा के दरबार में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. भक्तों का मानना है कि जो भी इस दरबार में सच्ची श्रद्धा से मनोकामना मांगता है, तो देवों के देव महादेव मन की हर मुराद पूरी करते हैं. सावन भर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है.

कानपुर: जनपद में गंगा के समीप बने महादेव का खेरेश्वर मंदिर न सिर्फ अनोखा है, बल्कि महाभारत कालीन इस शिवालय में आज भी पहली पूजा के अनसुलझे रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है. इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह पट खुलने पर शिवलिंग पर जंगली फूल चढ़े मिलते हैं. करीब 700 साल पहले खुदाई में मिले शिवलिंग की स्थापना करके मंदिर का निर्माण कराया गया था तब से यह मंदिर खेरेश्वर बाबा के नाम से सुप्रसिद्ध है.

गंगा के किनारे स्थापित है महादेव का प्राचीनतम मंदिर
कानपुर जनपद मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे स्थापित महाभारत कालीन खेरेश्वर मंदिर गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है. शिवालय के पुजारी कमलेश कुमार गोस्वामी ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि महाभारत काल में कौरव-पाण्डव के गुरु द्रोणाचार्य ने स्वयं खेरेश्वर महादेव की तपस्या की थी. खेरेश्वर धाम की मान्यता है कि द्वापर युग में यह क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य का आरण्य वन हुआ करता था. इसी स्थान पर द्रोण ने पांडवों और कौरवों को शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया था. पुजारी यह भी बताते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों की छल से हत्या कर दी थी, तब भीम ने अश्वत्थामा के माथे में लगी मणि निकालकर उसे अशक्त बना दिया था. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वह पृथ्वी लोक में तब तक पीड़ा झेलते हुए जीवित रहेंगे जब तक स्वयं देवों के देव महादेव उसे पापों से मुक्त न कर दें.

जानकारी देते संवाददाता.

आज भी शिवालय में पहली पूजा करते हैं अश्वत्थामा
मान्यता है कि आज भी शिवलिंग की पहली पूजा युगों से अजर-अमर योद्धा अश्वत्थामा ही करते आ रहे हैं. सांय आरती के बाद जब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तब सुबह पट खुलने पर रोजाना शिवलिंग पर जंगली फूल और जल चढ़ा हुआ मिलता है. यह क्रम सैकड़ों सालों से निर्बाध रूप से प्रतिदिन चला आ रहा है.
खेरेश्वर मंदिर के पुजारी कमलेश गोस्वामी ने बताया कि अश्वत्थामा की प्रथम पूजा करने के रहस्य का पता लगाने के लिए बहुत लोगों ने प्रयास किया. इतना ही नहीं देश के कई मीडिया संस्थान पूरी रात मंदिर में कैमरा लगाकर निगरानी करते रहे, लेकिन रात में पहली पूजा की पहेली को नहीं सुलझा पाए.

अटूट आस्था का केंद्र है खेरेश्वर मंदिर
खेरेश्वर मंदिर में पूजन की विशेष मान्यता है. यहां बाबा के दरबार में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. भक्तों का मानना है कि जो भी इस दरबार में सच्ची श्रद्धा से मनोकामना मांगता है, तो देवों के देव महादेव मन की हर मुराद पूरी करते हैं. सावन भर यहां भव्य मेले का आयोजन होता है.

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