कानपुर: सुर्ख लाल रंग का फल स्ट्रॉबेरी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस फल की पैदावार पहले विदेशो में होती थी, लेकिन अब इसकी पैदावार भारत में होने लगी है. और तो और अब किसान दूसरी फसलों के बजाय इसका उत्पादन करने लगे हैं. कुछ ऐसा ही किया कानपुर के एक किसान ने. वह अपनी दस बिश्वा जमीन पर कैलिफोर्निया में विकसित कैमारोजा प्रजाति स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाकर खेती कर रहे हैं.
दयाशंकर ग्राम प्रधान रह चुके हैं. दयाशंकर पहले अपने खेतों में गेहूं, चावल और अरहर की फसलों को बोते थे. इसमें आमदनी कम और खर्च ज्यादा होता था. कुछ समय पहले दयाशंकर को समाचार पत्रों के माध्यम से स्ट्राबेरी की खेती के विषय में जानकारी मिली, लेकिन गेहूं, चावल और अरहर की खेती करने वाले दयाशंकर को इसके बारे में पता ही नहीं था. फिर एक दिन दयाशंकर की किस्मत पलटी और उनके एक दोस्त ने नेट पर दिखाया कि स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे की जाती है.
दयाशंकर ने दोस्त की बात को माना और उनके दोस्त ने ही उसको कैलिफोर्निया में विकसित कैमारोजा प्रजाति के पौधे खरीद कर दिए. किराए की दस बिश्वा जमीन पर उन्होंने इन पौधों को रोपा और खाद-पानी के जरिए पौधों की सेवा करने लगे. दयाशंकर की मेहनत रंग लाई और उन पौधों में सफेद रंग के फूल खिलने लगे. कुछ दिनों में ही उन फूलों में स्ट्रॉबेरी नजर आने लगी. इसको देखकर दयाशंकर की खुशी दुगनी हो गई.
साढ़ थाना क्षेत्र के सिकहौला गांव के मजरा तेजापुर गांव के रहने वाले दयाशंकर की स्ट्रॉबेरी की खेती करने की चर्चा आम से खास बन गई. उनके गांव व आसपास के रहने वाले लोग दयाशंकर के खेतों में पहुंचकर स्ट्रॉबेरी को निहारने लगे. दयाशंकर उनको मायूस नहीं करते और स्ट्रॉबेरी से उनका मुंह मीठा कराते थे. इसको देखते हुए अब अन्य किसान भी अपनी बाकी जमीन पर स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का विचार कर रहे हैं.
सरकार से नहीं मिली सुविधा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसानों की काफी तारीफ कि थी, लेकिन कानपुर के इस किसान दयाशंकर को कोई सरकारी मदद नहीं मिली. फिर भी उन्होंने कुछ पैसे लगाकर सपने को साकार किया. बहुत से ऐसे किसान हैं, जो इसकी खेती करना चाहते हैं, लेकिन सरकारी मदद न मिलने से वो वंचित हैं. ऐसे किसानों को सरकारी मदद मिले तो विदेशो में पैदा होने वाली स्ट्रॉबेरी का उत्पादन भारत में भी तेजी से होने लगेगा.
कोरोना काल में चौपट हो गया था व्यापार
कोरोना काल में जिस तरह से व्यापारियों का व्यापार चौपट हुआ उसके बाद से वे अपने गांव की ओर रुख कर गए और खेती करने लगे या फिर कोई छोटा-मोटा व्यापार शुरू कर दिया. ऐसे ही कुछ किसानों की मुश्किलों को हल कर उन्हें मुनाफा कमाने का बीड़ा घाटमपुर के दयाशंकर ने उठाया है. उन्होंने अपने खेतों में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. ठंडे प्रदेश हिमाचल, उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में आप सभी ने सुना होगा, जहां किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर अधिक मुनाफा कमा रहे है.
धीरे-धीरे इस व्यापार में किसानों का रुझान काफी बढ़ने लगा है. अब भारत के कई राज्यों में भी इसकी खेती देखने को मिल जाती है. वहीं, अब इसकी खेती उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिल रही है. इसी तरह से कुछ कर गुजरने का जज्बा कानपुर के घाटमपुर रहने वाले किसान दयाशंकर में देखने को मिला. दयाशंकर ने गूगल में सर्च करते-करते और इस खेती का गम्भीर अध्ययन करके स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. साथ ही किसानों को इस खेती की ओर जागरूक भी कर रहे हैं.
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दयाशंकर का कहना है कि स्ट्रॉबेरी को तैयार करने के लिए गहरी जुताई करनी होती है. प्लांटेशन करवाया जाता है. ज्यादा जानकारी नहीं थी फिर भी अपनी ओर से हर जानकारी के साथ लगे रहे और आज 3 महीने में इसमें फल पकने लगे हैं. फल का साइज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा है. इसमें अब तक हजार पौधे में एक लाख की लागत आ चुकी है. साथ ही इसकी देख-रेख बहुत करनी पड़ती है. गंदा पानी नहीं इस खेती पर पड़ना चाहिए. केवल ट्यूबवेल के पानी से ही यह होती है.
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