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IIT कानपुर ने कैंसर और मस्तिष्क विकारों को दूर करने का खोजा तरीका, आप भी जानिए कैसे?

IIT कानपुर (IIT Kanpur) के शोधकर्ताओं ने जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (GPCR) और केमोकाइन रिसेप्टर D6 के अध्ययन से कैंसर के संभावित उपचार के नये विकल्प की तलाश की है. इसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी मिल गई है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 5, 2024, 7:00 PM IST


कानपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IIT) ने जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (GPCR) और केमोकाइन रिसेप्टर D6 के अध्ययन के साथ बायोमेडिकल अनुसंधान में एक सफलता हासिल की है. जिससे कैंसर और मस्तिष्क संबंधी विकार के संभावित उपचार के नये विकल्प मिले हैं. इससे शोधकर्ताओं ने रिसेप्टर्स के परमाणु विवरण की कल्पना की है.

आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं ने केमोकाइन रिसेप्टर D6 के अध्ययन अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग और सिज़ोफ्रेनिया के संभावित उपचार पर नये विकल्प की तलाश की है. इस प्रमुख प्रगति से मिली जानकारी रोग के स्थितियों के तहत इन रिसेप्टर्स को नियंत्रित करने के लिए नई दवा जैसे अणुओं को डिजाइन करने की संभावना को खोलती है. इस ऐतिहासिक कार्य को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है.

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प्रो.अरुण शुक्ला शोध करने वाले अन्य शोधार्थियों के साथ.

चिकित्सा में एक नए युग के द्वार खोलता यह शोध
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर एस गणेश ने बताया कि यह अनूठा शोध लक्षित चिकित्सा में एक नए युग के द्वार खोलता है, जो दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए कैंसर और न्यूरोलॉजिकल स्थितियों का समाधान प्रदान कर सकता है. जो बीमारियां अत्यधिक पीड़ा और आर्थिक बोझ का कारण बनती हैं. इन निष्कर्षों के आधार पर प्रभावी उपचार का एक नया युग विकसित हो सकता है. इस शोध परियोजना की सफलता दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ हमारे सफल सहयोग का भी प्रमाण है. इस परियोजना में आईआईटी कानपुर की टीम ने जापान, कोरिया गणराज्य, स्पेन और स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं के साथ काम किया. उन्होंने प्रोफेसर अरुण शुक्ला और टीम को हार्दिक बधाई दी है.

छोटे एंटेना की तरह होते जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स
प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने बताया जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (GPCR) मस्तिष्क कोशिकाओं की सतह पर छोटे एंटेना की तरह होते हैं, जो उन्हें संचार करने में मदद करते हैं. साथ ही मस्तिष्क के कई कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब ये रिसेप्टर्स ठीक से काम नहीं करते हैं, तो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संचार में समस्याएं आती हैं, जिससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां होती हैं. इन बीमारियों में लक्षण और प्रगति देखी जाती है. इसी तरह केमोकाइन रिसेप्टर D6 प्रतिरक्षा प्रणाली में कार्य करता है और सृजन की प्रतिक्रिया में शामिल होता है. कैंसर में रिसेप्टर ट्यूमर के वातावरण को प्रभावित कर सकता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं कैसे बढ़ती और फैलती हैं, यह उसे प्रभावित करता है.

रिसेप्टर्स के कामकाज को समझने में मिलेग मदद
आईआईटी कानपुर के नए शोध के निष्कर्षों से इन रिसेप्टर्स के कामकाज को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी और अल्जाइमर जैसी स्थितियों के लिए नए चिकित्सीय दृष्टिकोण और लक्षित उपचार का विकास होगा, जो दुनिया भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है और कैंसर से प्रतिवर्ष 10 मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है. इस शोध के नतीजे अब नई दवा जैसे अणुओं के विकास की सुविधा प्रदान करेंगे, जिन्हें पशु मॉडल में उनकी चिकित्सीय क्षमता के लिए परीक्षण किया जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने रिसेप्टर्स की विस्तृत त्रि-आयामी छवियां बनाने के लिए क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) नामक एक उच्च तकनीक विधि का उपयोग किया. इससे उन्हें आणविक स्तर पर रिसेप्टर्स की 3D छवियों का विस्तार से अध्ययन करने की अनुमति मिली, जिससे रोग की स्थिति पैदा करने वाले इन रिसेप्टर्स के साथ समस्याओं को ठीक करने के लिए नए दवा जैसे अणुओं की पहचान करने और डिजाइन करने में मदद मिली.

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कानपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IIT) ने जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (GPCR) और केमोकाइन रिसेप्टर D6 के अध्ययन के साथ बायोमेडिकल अनुसंधान में एक सफलता हासिल की है. जिससे कैंसर और मस्तिष्क संबंधी विकार के संभावित उपचार के नये विकल्प मिले हैं. इससे शोधकर्ताओं ने रिसेप्टर्स के परमाणु विवरण की कल्पना की है.

आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं ने केमोकाइन रिसेप्टर D6 के अध्ययन अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग और सिज़ोफ्रेनिया के संभावित उपचार पर नये विकल्प की तलाश की है. इस प्रमुख प्रगति से मिली जानकारी रोग के स्थितियों के तहत इन रिसेप्टर्स को नियंत्रित करने के लिए नई दवा जैसे अणुओं को डिजाइन करने की संभावना को खोलती है. इस ऐतिहासिक कार्य को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है.

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प्रो.अरुण शुक्ला शोध करने वाले अन्य शोधार्थियों के साथ.

चिकित्सा में एक नए युग के द्वार खोलता यह शोध
आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर एस गणेश ने बताया कि यह अनूठा शोध लक्षित चिकित्सा में एक नए युग के द्वार खोलता है, जो दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए कैंसर और न्यूरोलॉजिकल स्थितियों का समाधान प्रदान कर सकता है. जो बीमारियां अत्यधिक पीड़ा और आर्थिक बोझ का कारण बनती हैं. इन निष्कर्षों के आधार पर प्रभावी उपचार का एक नया युग विकसित हो सकता है. इस शोध परियोजना की सफलता दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ हमारे सफल सहयोग का भी प्रमाण है. इस परियोजना में आईआईटी कानपुर की टीम ने जापान, कोरिया गणराज्य, स्पेन और स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं के साथ काम किया. उन्होंने प्रोफेसर अरुण शुक्ला और टीम को हार्दिक बधाई दी है.

छोटे एंटेना की तरह होते जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स
प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने बताया जी-प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (GPCR) मस्तिष्क कोशिकाओं की सतह पर छोटे एंटेना की तरह होते हैं, जो उन्हें संचार करने में मदद करते हैं. साथ ही मस्तिष्क के कई कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब ये रिसेप्टर्स ठीक से काम नहीं करते हैं, तो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संचार में समस्याएं आती हैं, जिससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां होती हैं. इन बीमारियों में लक्षण और प्रगति देखी जाती है. इसी तरह केमोकाइन रिसेप्टर D6 प्रतिरक्षा प्रणाली में कार्य करता है और सृजन की प्रतिक्रिया में शामिल होता है. कैंसर में रिसेप्टर ट्यूमर के वातावरण को प्रभावित कर सकता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं कैसे बढ़ती और फैलती हैं, यह उसे प्रभावित करता है.

रिसेप्टर्स के कामकाज को समझने में मिलेग मदद
आईआईटी कानपुर के नए शोध के निष्कर्षों से इन रिसेप्टर्स के कामकाज को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी और अल्जाइमर जैसी स्थितियों के लिए नए चिकित्सीय दृष्टिकोण और लक्षित उपचार का विकास होगा, जो दुनिया भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है और कैंसर से प्रतिवर्ष 10 मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है. इस शोध के नतीजे अब नई दवा जैसे अणुओं के विकास की सुविधा प्रदान करेंगे, जिन्हें पशु मॉडल में उनकी चिकित्सीय क्षमता के लिए परीक्षण किया जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने रिसेप्टर्स की विस्तृत त्रि-आयामी छवियां बनाने के लिए क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) नामक एक उच्च तकनीक विधि का उपयोग किया. इससे उन्हें आणविक स्तर पर रिसेप्टर्स की 3D छवियों का विस्तार से अध्ययन करने की अनुमति मिली, जिससे रोग की स्थिति पैदा करने वाले इन रिसेप्टर्स के साथ समस्याओं को ठीक करने के लिए नए दवा जैसे अणुओं की पहचान करने और डिजाइन करने में मदद मिली.

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