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ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के लिए आईआईटी कानपुर ने तैयार किया खास केमिकल, चूहों पर परीक्षण सफल - आईआईटी कानपुर

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर ने ऑस्टियोआर्थराइटिस (IIT Kanpur osteoarthritis medicine) के इलाज के लिए खास केमिकल तैयार किया है. बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग ने यह सफलता हासिल की है.

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए खास केमिकल तैयार किया गया है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए खास केमिकल तैयार किया गया है.
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Published : Aug 19, 2023, 8:49 PM IST

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए खास केमिकल तैयार किया गया है.

कानपुर : देश और दुनिया में काफी लोग ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित हैं. इससे स्थायी निजात के लिए अभी तक सर्जरी ही उपाय माना जाता था. बोन रिप्लेसमेंट के जरिए इसका उपचार किया जाता था. अब आईआईटी कानपुर ने इसके इलाज को आसान बना दिया है. बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग (बीएसबीई) के विभागाध्यक्ष प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय ने 100 से अधिक चूहों पर एक केमिकल का परीक्षण किया. परीक्षण में यह केमिकल काफी कारगर साबित हुआ. अब इंसानों पर इसका ट्रायल किया जाएगा. इस केमिकल के जरिए ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारगर इलाज हो सकेगा.

चूहों पर शोध के बाद मिली सफलता : प्रो.अमिताभ बंदोपाध्याय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने इस बीमारी को पूरी तरह से समझा. इसके बाद एक केमिकल का 100 से अधिक चूहों पर शोध किया. इसके बाद पीएचडी छात्र को कनाडा भेजा. वहां चूहों की सर्जरी कराकर उनमें ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण समाहित किए गए. इसके बाद उन पर केमिकल का इस्तेमाल किया गया. जांच में पता चला कि केमिकल के इस्तेमाल के बाद बीमारी का कहीं कोई नामो-निशान नहीं था.

अब केमिकल का इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा.
अब केमिकल का इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा.

इंसानों के लिए काफी कारगर हो सकती है दवा : प्रो.अमिताभ ने बताया कि, चूहों पर तीन माह तक बीमारी का न दिखना, इंसानों में कई सालों तक चल सकता है, क्योंकि चूहों की औसत उम्र ही 18 माह तक है. उन्होंने बताया, कि इस बीमारी से जो लोग ग्रसित होते हैं, उनमें हड्डियों के पास बने कार्टिलेज के अगल-बगल ही फिर से हड्डियां दिखने लगती हैं. इन लक्षणों से ही बीमारी को पहचाना जाता है. शोध में कुल आठ साल का समय लग गया.

केंद्र सरकार ने दी ग्रांट, जल्द शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल : प्रो.अमिताभ बंदोपाध्याय ने बताया, कि जब हम विज्ञान से जुड़ा कोई शोध कार्य करते हैं तो सभी मानकों का ध्यान रखना होता है. चूहों पर जो शोध हुआ, उसका अंतरराष्ट्रीय जर्नल में शोध पत्र प्रकाशित हो चुका है. केंद्र सरकार से ग्रांट भी मिल गई है. नियमानुसार अब हम इस शोध कार्य को एक साल के अंदर किसी बड़े जीव पर करेंगे. उसके बाद इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा.

यह भी पढ़ें : IIT कानपुर ने तैयार किया एसी एयर प्यूरीफायर, धूल के कणों को हटा शुद्ध करता हवा

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ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए खास केमिकल तैयार किया गया है.

कानपुर : देश और दुनिया में काफी लोग ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित हैं. इससे स्थायी निजात के लिए अभी तक सर्जरी ही उपाय माना जाता था. बोन रिप्लेसमेंट के जरिए इसका उपचार किया जाता था. अब आईआईटी कानपुर ने इसके इलाज को आसान बना दिया है. बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग (बीएसबीई) के विभागाध्यक्ष प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय ने 100 से अधिक चूहों पर एक केमिकल का परीक्षण किया. परीक्षण में यह केमिकल काफी कारगर साबित हुआ. अब इंसानों पर इसका ट्रायल किया जाएगा. इस केमिकल के जरिए ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारगर इलाज हो सकेगा.

चूहों पर शोध के बाद मिली सफलता : प्रो.अमिताभ बंदोपाध्याय ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने इस बीमारी को पूरी तरह से समझा. इसके बाद एक केमिकल का 100 से अधिक चूहों पर शोध किया. इसके बाद पीएचडी छात्र को कनाडा भेजा. वहां चूहों की सर्जरी कराकर उनमें ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण समाहित किए गए. इसके बाद उन पर केमिकल का इस्तेमाल किया गया. जांच में पता चला कि केमिकल के इस्तेमाल के बाद बीमारी का कहीं कोई नामो-निशान नहीं था.

अब केमिकल का इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा.
अब केमिकल का इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा.

इंसानों के लिए काफी कारगर हो सकती है दवा : प्रो.अमिताभ ने बताया कि, चूहों पर तीन माह तक बीमारी का न दिखना, इंसानों में कई सालों तक चल सकता है, क्योंकि चूहों की औसत उम्र ही 18 माह तक है. उन्होंने बताया, कि इस बीमारी से जो लोग ग्रसित होते हैं, उनमें हड्डियों के पास बने कार्टिलेज के अगल-बगल ही फिर से हड्डियां दिखने लगती हैं. इन लक्षणों से ही बीमारी को पहचाना जाता है. शोध में कुल आठ साल का समय लग गया.

केंद्र सरकार ने दी ग्रांट, जल्द शुरू होगा ह्यूमन ट्रायल : प्रो.अमिताभ बंदोपाध्याय ने बताया, कि जब हम विज्ञान से जुड़ा कोई शोध कार्य करते हैं तो सभी मानकों का ध्यान रखना होता है. चूहों पर जो शोध हुआ, उसका अंतरराष्ट्रीय जर्नल में शोध पत्र प्रकाशित हो चुका है. केंद्र सरकार से ग्रांट भी मिल गई है. नियमानुसार अब हम इस शोध कार्य को एक साल के अंदर किसी बड़े जीव पर करेंगे. उसके बाद इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा.

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