कानपुर: जन्म के बाद कुछ नवजातों में ब्लाइंडनेस की दिक्कत हो जाती है. कानपुर में इलाज न होने के चलते उन बच्चों को एम्स दिल्ली भेजा जाता था, लेकिन अब इस बीमारी को लेकर कानपुर मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग में 2 साल से चल रहे अध्ययन में चौंकने वाले परिणाम सामने आए हैं. अध्ययन में कानपुर के 3 और फतेहपुर के 1 बच्चे को शामिल किया गया, जिसमें 1 बच्चे की 100 फीसदी तो 3 बच्चों की 50 फीसदी तक रोशनी वापस आ गयी.
नवजात के न रोने से होती है दिक्कत
नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने बताया कि न्यू बॉर्न बेबी को उल्टा लिटाकर पीठ पर थपथपा कर रुलाया जाता है, लेकिन अगर बच्चा रोता नहीं है तो उसके ब्लड सर्कुलेशन में दिक्कत हो जाती है. जिससे कई बार बच्चे या तो दम तोड़ देते हैं या फिर उनके मस्तिष्क तक ऑक्सीजन न मिलने के चलते हुई ब्रेन इंजरी से उनकी आंखों की रोशनी चली जाती है.
दो वर्ष में 4 नवजात पर किया अध्ययन
डॉ. परवेज खान ने बताया कि अभी तक कानपुर में नवजात की ऑक्सीजन की कमी से हुई ब्लाइंडनेस का कोई इलाज नहीं था. इसके लिए जांच की भी कोई व्यवस्था नहीं है. अभी तक ऐसे बच्चों को एम्स दिल्ली भेजा जाता था. वहीं मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग में 2 वर्ष तक 4 नवजात बच्चों पर अध्ययन किया गया. इस दौरान उन्हें खून का संचार बढ़ाने वाली दवा दी गई. डॉ. परवेज खान ने बताया कि जिन बच्चों में ब्लाइंडनेस की समस्या होती है उनका सबसे पहले अध्ययन के दौरान वीईपी टेस्ट कराया गया. जिसमें उनकी जांच रिपोर्ट में नर्व की एक्टिविटी जीरो थी. जिसमें इनको दवा दी गयी और हर छह महीने में जांच में बेहतर परिणाम सामने आए.
डॉ. परवेज खान ने बताया कि अध्ययन के बाद एक बच्चे के पेरेंट्स ने रोशनी लौटने की जानकारी दी, जिसकी वीईपी जांच कराई. जांच में पता चला कि रोशनी 100 फीसदी लौट आयी है. तीन अन्य रिपोर्ट 50 फीसदी तक रहीं, उनका इलाज चल रहा है. इसे वह इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित कराने जा रहे हैं.