कानपुर: शहर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में अभी तक रेटिना से संबंधित असाध्य रोगों वाले जो मरीज आते थे, वह उपकरणों के अभाव में अपना इलाज नहीं करा पाते थे. जब यह बात नेत्र रोग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान को पता लगी तो उन्होंने इसके लिए शोध कार्य करना शुरू कर दिया. डॉ. खान ने अपने नाम से ही एक ऐसी निडिल बेस्ड डिवाइस पीके (सुप्रा खोराइडल निडिल) को तैयार किया, जिससे मरीजों की रेटिना की लेयर (सुप्रा खोराइडल स्पेस) तक दवा आसानी से पहुंचाई जा सकती है.
इस डिवाइस संबंधी शोध कार्य को उन्होंने साल 2018 में पूरा कर लिया था. मंगलवार को उन्हें इस डिवाइस के लिए अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मिल गया. जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में नेत्र रोग विभाग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है. इस डिवाइस का उपयोग अमेरिका, जर्मनी समेत कई अन्य देशों में होता है. हालांकि, अब सूबे के ऐसे मरीजों को जो रेटिना संबंधी असाध्य रोग से पीड़ित होते हैं, उनका इलाज शहर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में हो सकेगा.
अभी इंजेक्शन व दवाई से किया जा रहा था मरीजों का इलाज: डॉ. परवेज खान ने बताया कि अभी तक नेत्र रोग पीड़ित मरीजों का इलाज हम दवाई व इंजेक्शन के माध्यम से कर रहे थे. लेकिन, रेटिना के सुप्रा खोराइडल स्पेस तक दवा पहुंचाने का कोई माध्यम या उपकरण नहीं था. इसी दिक्कत को दूर करने के लिए पीके डिवाइस को तैयार किया है. उन्होंने बताया कि आगामी 26 अगस्त को दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की कॉन्फ्रेंस होगी, जिसमें वह पीके डिवाइस की जानकारी सभी से साझा करेंगे. उन्होंने कहा कि पेटेंट मिलने में पांच साल का समय लग गया.
5000 मरीजों पर किया परीक्षण पूरी तरह से रहा सफल: डॉ. परवेज खान ने बताया कि उन्होंने पीके निडिल से अभी तक एलएलआर अस्पताल में 5000 मरीजों पर परीक्षण किया. इसमें उन्हें पूरी तरह से सफलता मिली. जब दवा रेटिना के अंतिम लेयर तक पहुंच गई तो मरीजों को कुछ ही दिनों में आराम मिल गया.
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