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देखिए, आचमन लायक भी नहीं बचा कानपुर का गंगाजल, ये है वजह

कानपुर की गंगा एक बार फिर सुर्खियों में हैं. आखिर इसकी वजह क्या है, चलिए जानते हैं इस खास खबर में.

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आचमन तो छोड़िये, कानपुर में गंगा जल अब उपयोग लायक तक नहीं
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Published : Dec 28, 2022, 4:47 PM IST

Updated : Dec 28, 2022, 7:42 PM IST

कानपुर: जब पीएम मोदी (PM Modi) कानपुर आते हैं तो उनकी जुबां पर मां गंगा की अविरलता और निर्मलता का जिक्र जरूर होता है. जब सीएम योगी की जनसभा शहर में होती हो तो उनके संबोधन में भी शहर की गंगा (Ganga of Kanpur) को प्रदूषण मुक्त करने का जिक्र जरूरत होता है. अगर हकीकत की बात करें तो वह पूरी तरह से इसके विपरीत है. शहर में गंगाजल आचमन लायक तो छोड़िये उपयोग लायक तक नहीं बचा है. यह बात सामने आई है उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की ओर से तैयार कराई गयी रिपोर्ट में. इस रिपोर्ट में जो टोटल कॉलीफार्म (सूक्ष्म बैक्टीरिया कण) की मात्रा निकली है वह मानक से कई सौ गुना अधिक है. अब यूपीपीसीबी व जिला प्रशासन के अफसर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कार्ययोजना बनाने में जुट गए हैं.

कानपुर में नालों का पानी गंगा को मैली कर रहा.

ये है गंगा में गंदगी की मुख्य वजह
यूपीपीसीबी के आला अफसरों का कहना है गंगा में जो टोटल कॉलीफार्म पहुंच रहा है, उसका मुख्य कारण गंगा में सीधे गिरने वाले नाले हैं. इनमें मुख्य रूप से कैंट का डबका नाला, गंगा बैराज स्थित परमिया नाला व सीसामऊ का नाला है. इन नालों से रोजाना लाखों लीटर दूषित जल गंगा में अफसरों को सीधा गिरते दिखता है.


रिपोर्ट पर एक नजर

  • 14 नवंबर को लिए गए नमूने
    क्षेत्र व टोटल कॉलीफॉर्म
    बिठूर- 3900
    बैराज- 3800
    शेखपुरी- 13000
  • 22 नवंबर
    बिठूर-3800
    बैराज- 3100
    शेखपुरी- 11000
  • 29 नवंबर
    बिठूर-3400
    बैराज- 2700
    शेखपुरी-9400

ये हैं मानक
यूपीपीसीबी अफसरों के मुताबिक टोटल कॉलीफार्म का मानक प्रति 100 एम एल-एम पी एन में 50 या इससे कम होना चाहिए.

अफसर क्या बोले
इस बारे में नगर आयुक्त शिव शरणप्पा जी एन का कहना है कि "गंगा में जिन नालों का पानी गिर रहा है, उन्हें बायो रेमीडेशन के माध्यम से रोकने की तैयारी है. अधीनस्थ अफसरों को निर्देश दे दिए गए हैं."

यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी अमित मिश्रा का कहना है कि "यूपीपीसीबी जल प्रदूषण को लेकर ज़ब रिपोर्ट तैयार करता है तो करीब एक माह पहले के नमूनों का परीक्षण किया जाता है. नवंबर में जो सैम्पल लिए गए, उनमें टोटल कॉलीफार्म की मात्रा मानक से बहुत ज्यादा है. सीपीसीबी के नॉर्म्स देखें तो यह पानी न तो पीने लायक़ है न इसका उपयोग किया जा सकता है. जब तक नालों का पानी गंगा में जाएगा तब तक बैक्टीरिया मौजूद रहेंगे."

ये भी पढ़ेंः रिमांड पूरी होने पर ईडी ने मुख्तार अंसारी को किया कोर्ट में पेश, भेजा गया बांदा जेल

कानपुर: जब पीएम मोदी (PM Modi) कानपुर आते हैं तो उनकी जुबां पर मां गंगा की अविरलता और निर्मलता का जिक्र जरूर होता है. जब सीएम योगी की जनसभा शहर में होती हो तो उनके संबोधन में भी शहर की गंगा (Ganga of Kanpur) को प्रदूषण मुक्त करने का जिक्र जरूरत होता है. अगर हकीकत की बात करें तो वह पूरी तरह से इसके विपरीत है. शहर में गंगाजल आचमन लायक तो छोड़िये उपयोग लायक तक नहीं बचा है. यह बात सामने आई है उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की ओर से तैयार कराई गयी रिपोर्ट में. इस रिपोर्ट में जो टोटल कॉलीफार्म (सूक्ष्म बैक्टीरिया कण) की मात्रा निकली है वह मानक से कई सौ गुना अधिक है. अब यूपीपीसीबी व जिला प्रशासन के अफसर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कार्ययोजना बनाने में जुट गए हैं.

कानपुर में नालों का पानी गंगा को मैली कर रहा.

ये है गंगा में गंदगी की मुख्य वजह
यूपीपीसीबी के आला अफसरों का कहना है गंगा में जो टोटल कॉलीफार्म पहुंच रहा है, उसका मुख्य कारण गंगा में सीधे गिरने वाले नाले हैं. इनमें मुख्य रूप से कैंट का डबका नाला, गंगा बैराज स्थित परमिया नाला व सीसामऊ का नाला है. इन नालों से रोजाना लाखों लीटर दूषित जल गंगा में अफसरों को सीधा गिरते दिखता है.


रिपोर्ट पर एक नजर

  • 14 नवंबर को लिए गए नमूने
    क्षेत्र व टोटल कॉलीफॉर्म
    बिठूर- 3900
    बैराज- 3800
    शेखपुरी- 13000
  • 22 नवंबर
    बिठूर-3800
    बैराज- 3100
    शेखपुरी- 11000
  • 29 नवंबर
    बिठूर-3400
    बैराज- 2700
    शेखपुरी-9400

ये हैं मानक
यूपीपीसीबी अफसरों के मुताबिक टोटल कॉलीफार्म का मानक प्रति 100 एम एल-एम पी एन में 50 या इससे कम होना चाहिए.

अफसर क्या बोले
इस बारे में नगर आयुक्त शिव शरणप्पा जी एन का कहना है कि "गंगा में जिन नालों का पानी गिर रहा है, उन्हें बायो रेमीडेशन के माध्यम से रोकने की तैयारी है. अधीनस्थ अफसरों को निर्देश दे दिए गए हैं."

यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी अमित मिश्रा का कहना है कि "यूपीपीसीबी जल प्रदूषण को लेकर ज़ब रिपोर्ट तैयार करता है तो करीब एक माह पहले के नमूनों का परीक्षण किया जाता है. नवंबर में जो सैम्पल लिए गए, उनमें टोटल कॉलीफार्म की मात्रा मानक से बहुत ज्यादा है. सीपीसीबी के नॉर्म्स देखें तो यह पानी न तो पीने लायक़ है न इसका उपयोग किया जा सकता है. जब तक नालों का पानी गंगा में जाएगा तब तक बैक्टीरिया मौजूद रहेंगे."

ये भी पढ़ेंः रिमांड पूरी होने पर ईडी ने मुख्तार अंसारी को किया कोर्ट में पेश, भेजा गया बांदा जेल

Last Updated : Dec 28, 2022, 7:42 PM IST
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