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मौसम की थी मार, पर स्मार्ट क्लाइमेट विलेज से किसान हो गए खुशहाल

सीएसए के कृषि मौसम वैज्ञानिक ने बिल्हौर के चार अलग-अलग गांवों में 100 से अधिक किसानों की फसलों पर शोध किया जिससे किसानों का खासा फायदा पहुंचा. इसके चलते उनमें खुशी की लहर है.

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तरबूज की फसल
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Published : May 28, 2022, 10:49 PM IST

कानपुर: कहा जाता है कि अगर आप किसी काम को करने की ठान लें तो वह काम जरूर पूरा हो जाता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया, चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विवि (सीएसए) के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने. जी हां, अचानक मौसम में हो रहे बदलाव के चलते बिल्हौर के कई गांवों के किसानों की फसले बर्बाद हो रही है जिसके चलते वह सीएसए पहुंचे और कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. पांडेय से अपनी आपबीती बताई. इसके बाद मौसम वैज्ञानिक डॉ. पांडेय ने तुरंत गांवों का दौरा किया और फसलों का निरीक्षण किया.

कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय

वहीं, लगभग एक साल तक चले शोध कार्य में उन्होंने किसानों को सलाह दी, कि इस फसल की बर्बादी की भरपाई वह खेतों में खरबूजा, तरबूज और खीरा की फसलों को उगाकर करें. फिर क्या था, किसानों ने कृषि मौसम वैज्ञानिक की सलाह से फसलों को लगाया और गेहूं की फसल से हुए नुकसान को उक्त फसलों की खेती से लाभ में परिवर्तित कर लिया. सीएसए के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की एक योजना के तहत स्मार्ट क्लाइमेट विलेज का कांसेप्ट विकसित किया.

सबसे पहले सभी किसानों का एक वाट्सएप ग्रुप बनाया. इसके बाद उन्हें वाट्सएप से ही हर छोटी-बड़ी जानकारी दी. कब किसानों को फसलों में सिंचाई करनी है. कब बीज बोना है, कैसे कीड़े-मकोड़ों से फसलों को बचाना. इस प्रबंधन का नतीजा यह रहा कि एक बीघा जमीन पर किसानों ने करीब 70 से 75 क्विंटल तरबूज, खीरा और खरबूजा तैयार किया.

यह भी पढ़ें- थाने में हेड कॉन्स्टेबल ने महिला सिपाही के साथ की अश्लील करतूत, किया गया निलंबित

कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि अपने स्मार्ट क्लाइमेट विलेज संबंधी प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी सीएसए कुलपति को दी है. साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को भी भेजी है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस कांसेप्ट को शहर और आसपास के सभी गांवों में विकसित करेंगे जिससे मौसम की मार के बावजूद किसान खुशहाल रह सकें.

वहीं, आगे डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि मार्च-अप्रैल के बीच में दिन का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने के चलते किसानों की 40 फीसद गेहूं की फसल बर्बाद हो गई थी. वह सालाना एक बीघा जमीन पर 50 क्विंटल तक गेहूं की पैदावार करते थे. मगर इस साल करीब 30 क्विंटल पैदावार ही सही रही. बाकी फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई.

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कानपुर: कहा जाता है कि अगर आप किसी काम को करने की ठान लें तो वह काम जरूर पूरा हो जाता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया, चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विवि (सीएसए) के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने. जी हां, अचानक मौसम में हो रहे बदलाव के चलते बिल्हौर के कई गांवों के किसानों की फसले बर्बाद हो रही है जिसके चलते वह सीएसए पहुंचे और कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. पांडेय से अपनी आपबीती बताई. इसके बाद मौसम वैज्ञानिक डॉ. पांडेय ने तुरंत गांवों का दौरा किया और फसलों का निरीक्षण किया.

कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय

वहीं, लगभग एक साल तक चले शोध कार्य में उन्होंने किसानों को सलाह दी, कि इस फसल की बर्बादी की भरपाई वह खेतों में खरबूजा, तरबूज और खीरा की फसलों को उगाकर करें. फिर क्या था, किसानों ने कृषि मौसम वैज्ञानिक की सलाह से फसलों को लगाया और गेहूं की फसल से हुए नुकसान को उक्त फसलों की खेती से लाभ में परिवर्तित कर लिया. सीएसए के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) की एक योजना के तहत स्मार्ट क्लाइमेट विलेज का कांसेप्ट विकसित किया.

सबसे पहले सभी किसानों का एक वाट्सएप ग्रुप बनाया. इसके बाद उन्हें वाट्सएप से ही हर छोटी-बड़ी जानकारी दी. कब किसानों को फसलों में सिंचाई करनी है. कब बीज बोना है, कैसे कीड़े-मकोड़ों से फसलों को बचाना. इस प्रबंधन का नतीजा यह रहा कि एक बीघा जमीन पर किसानों ने करीब 70 से 75 क्विंटल तरबूज, खीरा और खरबूजा तैयार किया.

यह भी पढ़ें- थाने में हेड कॉन्स्टेबल ने महिला सिपाही के साथ की अश्लील करतूत, किया गया निलंबित

कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि अपने स्मार्ट क्लाइमेट विलेज संबंधी प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी सीएसए कुलपति को दी है. साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को भी भेजी है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस कांसेप्ट को शहर और आसपास के सभी गांवों में विकसित करेंगे जिससे मौसम की मार के बावजूद किसान खुशहाल रह सकें.

वहीं, आगे डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि मार्च-अप्रैल के बीच में दिन का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने के चलते किसानों की 40 फीसद गेहूं की फसल बर्बाद हो गई थी. वह सालाना एक बीघा जमीन पर 50 क्विंटल तक गेहूं की पैदावार करते थे. मगर इस साल करीब 30 क्विंटल पैदावार ही सही रही. बाकी फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई.

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