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कानपुर में सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट की खेती, डेढ़ साल में फसल हुई तैयार

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 12, 2023, 8:45 AM IST

कानपुर में सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit in CSA Nursery) की फसल तैयार होने से वैज्ञानिकों के चेहरे पर मुस्कान छा गई है. इस फल का सेवन करने से रक्ताल्पता की समस्या दूर हो जाती है.

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विभागाध्यक्ष प्रो.वीके त्रिपाठी ने बताया.

कानपुर: देश के जिन राज्यों में भी ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाएगी. उसमें कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) का अहम योगदान होगा. यहां सीएसए की नर्सरी में पहली बार ड्रैगन फ्रूट की फसल तैयार हो गई है. वैसे तो फलों का राजा आम को कहा जाता है लेकिन देश भर में एक विशेष प्रकार के फल ड्रैगन फ्रूट की फसल की तैयारी की जा रही थी. जो सीएसए की नर्सरी में डेढ़ साल के अंदर ही पक गई है.

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सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट.

किसानों को बीज होगा उपलब्ध
कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में फसल पक जाने के बाद वैज्ञानिकों के चेहरे पर मुस्कान छा गई है. वैज्ञानिकों ने बताया कि यहां समुद्र के किनारे से लाकर 200 से अधिक पौधों को सीएसए की नर्सरी में लगाया गया था. यह फसल तैयार हो गई है. इसके अलावा भी कई पौधे भी उग गए हैं. अब सीएसए द्वारा इस फसल के बीज को किसानों को मुहैया कराया जाएगा. साथ ही उन्हें फसल तैयार करने की तकनीक भी बताई जाएगी.

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कानपुर में सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट की फसल तैयार.

औषधीय गुणों से होता है भरपूर ड्रैगन फ्रूट
फलों की दुकान पर ड्रैगन फ्रूट को वीआईपी फलों की श्रेणी में रखा जाता है. इस पूरे मामले में सीएसए उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.वीके त्रिपाठी ने बताया कि, यह फल ऊपरी सतह पर गुलाबी और लाल रंग का होता है, जबकि अंदर का भाग पीले रंग का होता है. इसके सेवन से रक्ताल्पता की समस्या दूर होती है. साथ ही फाइबर व विटामिन सी की अच्छी मात्रा होने के चलते इस फल के सेवन से कई और बीमारियों में काफी हद तक निजात मिलती है.

बलुई और दोमन मिट्टी है उपयोगी
प्रो.वीके त्रिपाठी ने कहा कि, एक माह के अंदर इसका फल पक कर तैयार हो जाता है. वहीं, इसके पौधे का जो तना होता है, वह क्षैतिज रूप ले लेता है. इस वजह से ड्रैगन फ्रूट के पौधे को लगाने में बांस का सहारा दे देते हैं. इस फसल को तैयार करने के लिए बलुई और दोमन मिट्टी बहुत ही उपोयगी होती है. यहां पर इन पौधों को तैयार होने में समय नहीं लगता है.

बायोफर्टिलाइजर का किया प्रयोग
ड्रैगन फ्रूट की फसल को तैयार करने को लेकर उद्यान विभाग के शोधार्थी रवि प्रताप ने बताया कि फसल में बायोफर्टिलाइजर का प्रयोग किया गया है. वहीं, कटिंग के माध्यम से कई पौधे भी तैयार कर लिए गए हैं. शोधार्थी ने बताया कि बायोफर्टिलाइजर का उपयोग करने से फसल पूरी तरह से सुरक्षित रहती है.

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विभागाध्यक्ष प्रो.वीके त्रिपाठी ने बताया.

कानपुर: देश के जिन राज्यों में भी ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाएगी. उसमें कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) का अहम योगदान होगा. यहां सीएसए की नर्सरी में पहली बार ड्रैगन फ्रूट की फसल तैयार हो गई है. वैसे तो फलों का राजा आम को कहा जाता है लेकिन देश भर में एक विशेष प्रकार के फल ड्रैगन फ्रूट की फसल की तैयारी की जा रही थी. जो सीएसए की नर्सरी में डेढ़ साल के अंदर ही पक गई है.

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सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट.

किसानों को बीज होगा उपलब्ध
कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में फसल पक जाने के बाद वैज्ञानिकों के चेहरे पर मुस्कान छा गई है. वैज्ञानिकों ने बताया कि यहां समुद्र के किनारे से लाकर 200 से अधिक पौधों को सीएसए की नर्सरी में लगाया गया था. यह फसल तैयार हो गई है. इसके अलावा भी कई पौधे भी उग गए हैं. अब सीएसए द्वारा इस फसल के बीज को किसानों को मुहैया कराया जाएगा. साथ ही उन्हें फसल तैयार करने की तकनीक भी बताई जाएगी.

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कानपुर में सीएसए की नर्सरी में ड्रैगन फ्रूट की फसल तैयार.

औषधीय गुणों से होता है भरपूर ड्रैगन फ्रूट
फलों की दुकान पर ड्रैगन फ्रूट को वीआईपी फलों की श्रेणी में रखा जाता है. इस पूरे मामले में सीएसए उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.वीके त्रिपाठी ने बताया कि, यह फल ऊपरी सतह पर गुलाबी और लाल रंग का होता है, जबकि अंदर का भाग पीले रंग का होता है. इसके सेवन से रक्ताल्पता की समस्या दूर होती है. साथ ही फाइबर व विटामिन सी की अच्छी मात्रा होने के चलते इस फल के सेवन से कई और बीमारियों में काफी हद तक निजात मिलती है.

बलुई और दोमन मिट्टी है उपयोगी
प्रो.वीके त्रिपाठी ने कहा कि, एक माह के अंदर इसका फल पक कर तैयार हो जाता है. वहीं, इसके पौधे का जो तना होता है, वह क्षैतिज रूप ले लेता है. इस वजह से ड्रैगन फ्रूट के पौधे को लगाने में बांस का सहारा दे देते हैं. इस फसल को तैयार करने के लिए बलुई और दोमन मिट्टी बहुत ही उपोयगी होती है. यहां पर इन पौधों को तैयार होने में समय नहीं लगता है.

बायोफर्टिलाइजर का किया प्रयोग
ड्रैगन फ्रूट की फसल को तैयार करने को लेकर उद्यान विभाग के शोधार्थी रवि प्रताप ने बताया कि फसल में बायोफर्टिलाइजर का प्रयोग किया गया है. वहीं, कटिंग के माध्यम से कई पौधे भी तैयार कर लिए गए हैं. शोधार्थी ने बताया कि बायोफर्टिलाइजर का उपयोग करने से फसल पूरी तरह से सुरक्षित रहती है.

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