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कानपुर में लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं मां कूष्मांडा देवी, पूरी करती हैं मनोकामना

इन दिनों शारदीय नवरात्र चल रहे हैं. नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. यूपी के कानपुर में मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा देवी का मंदिर स्थित है. मान्यता है कि चौथे दिन यानी आज मां कूष्मांडा देवी के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

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Published : Oct 20, 2020, 12:49 PM IST

Updated : Nov 2, 2020, 12:36 AM IST

लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं मां कूष्मांडा देवी
लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं मां कूष्मांडा देवी

कानपुर: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में स्थित शक्तिपीठ कूष्मांडा देवी का मंदिर एक हजार साल पुराना है. कूष्मांडा देवी इस प्राचीनतम मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं. इतना ही नहीं यहां माता रानी के पिंड से लगातार पानी रिसता रहता है इसलिए माता को जल वाली मैया भी कहा जाता है. शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी के दर्शन का विशेष महत्व है. कोरोना काल में भी दूर-दूर भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं, हालांकि भक्तों को मास्क के साथ ही मंदिर में प्रवेश मिल रहा है.

लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं मां कूष्मांडा देवी.

ऐसे हुई स्थापना
मंदिर के पुजारी बताते है कि जंगलों से घिरे माता के स्थान पर एक ग्वाला गाय चराने आता था. गाय के थन से एक स्थान पर स्वतः दूध की धारा निकलने लगती थी. उस स्थान पर जब गांव वालों ने खुदाई की तो माता कूष्मांडा देवी की पिंडी निकली. इसके बाद गांव वालों ने पिंडी स्थापना उसी स्थान पर कर दी. घाटमपुर में स्थित शक्तिपीठ मां कूष्मांडा देवी का मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है, लेकिन इसकी बुनियाद 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी. मंदिर के गर्भगृह में एक चबूतरे में माता कूष्मांडा विराजमान है. इतिहास के अनुसार 1890 में कारोबारी चंनदीदीन ने इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया था.

जल से कैसे आंखों की ज्योति बढ़ती है
मां कूष्मांडा देवी की पिंडी से अनवरत जल रिसता रहता है. मान्यता है कि जो भी भक्त इस जल को आंखों पर लगता है उसके सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर हो जाते हैं.साथ ही आंखों की ज्योति भी बढ़ जाती है. कई वैज्ञानिक आज भी जल रिसने के रहस्य को शोध के बाद भी नहीं जान सके हैं.

मां कूष्मांडा देवी मंदिर.
मां कूष्मांडा देवी मंदिर.

यहां गिरा था माता सती के शरीर का चौथा अंश
शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं दिया गया था. वहीं यज्ञ स्थल पर सती के सामने भगवान शिव का अपमान दक्ष द्वारा किया गया. इससे आक्रोशित होकर माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इसके बाद आक्रोशित शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर निकल पड़े. इसके बाद शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र छोड़ा. चक्र से कटकर माता सती के शरीर के अंश पूरे देश में 9 अलग-अलग स्थानों गिरे थे. माना जाता है कि 4 चौथा अंश घाटमपुर के इसी स्थान पर गिरा था, तभी से यहां माता कुष्मांडा विराजमान है.

गुड़,चना और नारियल का चढ़ता है प्रसाद
माता के दर्शन करने पहुंच रहे भक्तों ने बताया कि यहां माता को प्रसाद के रूप में गुड़ ,चना और नारियल चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि इससे माता कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और वह भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर देती हैं.

माता के दरबार में सिर्फ माली ही कराते हैं पूजा-अर्चना
माता कुष्मांडा देवी के दरबार में ब्राम्हण पूजा नहीं कराते. नवरात्र हों या अन्य दिन यहां सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करवाते हैं. माली की पीढ़ियां ही इस मंदिर के पुजारी हैं. माली ही यहां सुबह स्नान ध्यान कर माता रानी के पट खोलने से लेकर सभी धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं.

कानपुर: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में स्थित शक्तिपीठ कूष्मांडा देवी का मंदिर एक हजार साल पुराना है. कूष्मांडा देवी इस प्राचीनतम मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं. इतना ही नहीं यहां माता रानी के पिंड से लगातार पानी रिसता रहता है इसलिए माता को जल वाली मैया भी कहा जाता है. शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी के दर्शन का विशेष महत्व है. कोरोना काल में भी दूर-दूर भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं, हालांकि भक्तों को मास्क के साथ ही मंदिर में प्रवेश मिल रहा है.

लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं मां कूष्मांडा देवी.

ऐसे हुई स्थापना
मंदिर के पुजारी बताते है कि जंगलों से घिरे माता के स्थान पर एक ग्वाला गाय चराने आता था. गाय के थन से एक स्थान पर स्वतः दूध की धारा निकलने लगती थी. उस स्थान पर जब गांव वालों ने खुदाई की तो माता कूष्मांडा देवी की पिंडी निकली. इसके बाद गांव वालों ने पिंडी स्थापना उसी स्थान पर कर दी. घाटमपुर में स्थित शक्तिपीठ मां कूष्मांडा देवी का मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है, लेकिन इसकी बुनियाद 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी. मंदिर के गर्भगृह में एक चबूतरे में माता कूष्मांडा विराजमान है. इतिहास के अनुसार 1890 में कारोबारी चंनदीदीन ने इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया था.

जल से कैसे आंखों की ज्योति बढ़ती है
मां कूष्मांडा देवी की पिंडी से अनवरत जल रिसता रहता है. मान्यता है कि जो भी भक्त इस जल को आंखों पर लगता है उसके सभी प्रकार के नेत्र रोग दूर हो जाते हैं.साथ ही आंखों की ज्योति भी बढ़ जाती है. कई वैज्ञानिक आज भी जल रिसने के रहस्य को शोध के बाद भी नहीं जान सके हैं.

मां कूष्मांडा देवी मंदिर.
मां कूष्मांडा देवी मंदिर.

यहां गिरा था माता सती के शरीर का चौथा अंश
शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं दिया गया था. वहीं यज्ञ स्थल पर सती के सामने भगवान शिव का अपमान दक्ष द्वारा किया गया. इससे आक्रोशित होकर माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इसके बाद आक्रोशित शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर निकल पड़े. इसके बाद शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र छोड़ा. चक्र से कटकर माता सती के शरीर के अंश पूरे देश में 9 अलग-अलग स्थानों गिरे थे. माना जाता है कि 4 चौथा अंश घाटमपुर के इसी स्थान पर गिरा था, तभी से यहां माता कुष्मांडा विराजमान है.

गुड़,चना और नारियल का चढ़ता है प्रसाद
माता के दर्शन करने पहुंच रहे भक्तों ने बताया कि यहां माता को प्रसाद के रूप में गुड़ ,चना और नारियल चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि इससे माता कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और वह भक्तों की हर मनोकामना पूरी कर देती हैं.

माता के दरबार में सिर्फ माली ही कराते हैं पूजा-अर्चना
माता कुष्मांडा देवी के दरबार में ब्राम्हण पूजा नहीं कराते. नवरात्र हों या अन्य दिन यहां सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करवाते हैं. माली की पीढ़ियां ही इस मंदिर के पुजारी हैं. माली ही यहां सुबह स्नान ध्यान कर माता रानी के पट खोलने से लेकर सभी धार्मिक अनुष्ठान कराते हैं.

Last Updated : Nov 2, 2020, 12:36 AM IST
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