कानपुर: मंदिरों में चढ़ने वाले फूलों से शोध और अनुसंधान कर के अंकित अग्रवाल ने आईआईटी कानपुर की मदद से एक ऐसा फ्लेदर बनाया है, जो कि लेदर का बहुत अच्छा विकल्प है. इतना ही नहीं अपनी तमाम खूबियों के चलते अंतरराष्ट्रीय फलक में फ्लेदर से बने प्रोडक्ट की धूम मची हुई है. कानपुर के मंदिरों में चढ़ने वाले आस्था के फूलों से तैयार होने वाले फ्लेदर से अब लेदर की जगह बनने वाले बैग, पर्स, जैकेट की जर्मनी, फ्रांस, इटली,समेत कई देशों में खासी डिमांड है. ईटीवी भारत के संवाददाता ने आईआईटी कानपुर की मदद से फूलों से फ्लेदर बनाने वाले अंकित अग्रवाल से बात की. देखिए ये रिपोर्ट...
दो साल की कड़ी मेहनत के बाद बना फ्लेदर
पुणे रीजनल कॉलेज से बीटेक करने के बाद सिम्बिओसिस इंस्टिट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट से पढ़ाई करने के बाद अंकित अग्रवाल आईआईटी कानपुर की मदद से स्टार्टअप स्थापित कर इनोवेशन में जुट गए. उन्होंने दो सालों तक कड़ी मेहनत के साथ ही अत्याधुनिक लैब में कई शोध करने के बाद फूलों के पोषण से बैक्टेरिया को विकसित कर फ्लेदर बनाने में सफलता हासिल की. अब बकायदा कानपुर के पनकी इंडस्ट्रियल एरिया में एक फैक्ट्री लगाई है. जहां बड़े व्यापक पैमाने पर फ्लेदर को विकसित किया जा रहा है. इस फ्लेदर को पेटा यानी पीपुल्स फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल ने सर्टिफिकेट भी दिया है. साथ ही आईआईआरटी (इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंडस्ट्रियल रिसर्च एंड टॉक्सीकोलॉजी) ने भी इस शोध पर अपनी मुहर लगा दी है. अंकित ने इसका पेटेंट भी करवा लिया है.
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फूलों से उत्पाद बढ़ाने का ऐसे आया आइडिया
अंकित अग्रवाल ने बताया कि उनका एक दोस्त चेक गणराज्य से उनसे मिलने कानपुर आया था. वह उसे घुमाने गंगा बैराज लेकर गए थे. तभी उसने मां गंगा नदी में गिरने वाले फूलों को लेकर आइडिया दिया क्यों ना उससे शोध करके किसी प्रोडक्ट को विकसित किया जाए. इससे मां गंगा में होने वाले कचरे में भी कमी आएगी. अंकित ने बताया कि उसकी इसी बात से प्रेरित होकर उन्होंने इस सपने को साकार कर दिखाया.
पर्यावरण के लिए भी है फ्लेदर मुफीद
अंकित अग्रवाल बताते हैं कि एनिमल लेदर से सबसे ज्यादा मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है, वहीं फूलों से बना फ्लेदर पर्यवारण के लिए भी मुफीद है.