ETV Bharat / state

कन्नौज: किसानों को दिए गए सरसो की पैदावार बढ़ाने के टिप्स

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में सरसो की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को टिप्स दिए गए. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिले में लोग सरसो की खेती बहुत कम करते हैं. इसलिए उन्हें सरसो के उत्पादन के टिप्स दिए गए.

सरसो की पैदावार बढ़ाने के टिप्स
सरसो की पैदावार बढ़ाने के टिप्स
author img

By

Published : Oct 24, 2020, 9:50 AM IST

कन्नौज: कृषि विज्ञान केंद्र अनौगी में किसानों को उन्नत तकनीक से खेती कर सरसो की पैदावार बढ़ाए जाने के टिप्स दिए गए. कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया ने सरसो की खेती आसान, कम उत्पादन लागत और कम उर्वरा शक्ति से अधिक उर्वरा शक्ति वाली भूमि में पैदावार कैसे की जा सकती है, इस पर किसानों को विस्तार से जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि तिलहनी फसलों में सरसो सबसे महत्वपूर्ण फसल है. ऐसे क्षेत्र जहां सिंचाई के साधन कम हैं वहां धान और मक्का की खेती के बाद सरसो की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. उन्होंने बताया कि जनपद में सरसो की खेती बहुत कम क्षेत्रफल पर की जाती है. साथ ही सरसो की खेती को बढ़ावा देने के लिए उमर्दा ब्लॉक के अल्लाहपुर गांव के किसानों को सरसो उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया ने बताया कि सरसो की अनेक उन्नतशील प्रजातियां जैसे- आरएच 749, गिरिराज, उर्वशी, माया, नरेंद्र राई, रोहाणी आदि बुवाई के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं. इन प्रजातियों के लिए चार से पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर स्वस्थ बीज की आवश्यकता होती है. अच्छी फसल के उत्पादन के लिए पंक्ति में बुवाई करें. जिसकी दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधों से पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

फसलों में संतुलित उर्वरकों का करें इस्तेमाल

उन्होंने बताया कि संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए. इसके लिए प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटास दिया जा सकता है. इस मात्रा को उर्वरकों के रूप में देने के लिए बुआई के समय 6 किलोग्राम यूरिया, 10 किलोग्राम डीएपी और 8 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति बीघा की दर से दिया जाना चाहिए. इसके उपरांत पहली सिंचाई के बाद प्रति बीघा 6 किलोग्राम यूरिया और इतनी ही मात्रा का प्रयोग दूसरी सिंचाई के उपरांत किया जाना लाभदायक होता है. उन्होंने कहा कि गंधक के प्रयोग से सरसो में तेल की मात्रा तथा उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग बुवाई के समय किया जा सकता है.

वैज्ञानिक डॉ. जगदीश किशोर ने बताया कि दीमक प्रभावित क्षेत्रों में क्लोरपीरिफॉस 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए. यदि जमाव के बाद आरा मक्खी का प्रकोप हो तो मैलाथियान धूल 5% की दर से 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा डाईक्लोरोवास 76% को 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए.

कन्नौज: कृषि विज्ञान केंद्र अनौगी में किसानों को उन्नत तकनीक से खेती कर सरसो की पैदावार बढ़ाए जाने के टिप्स दिए गए. कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया ने सरसो की खेती आसान, कम उत्पादन लागत और कम उर्वरा शक्ति से अधिक उर्वरा शक्ति वाली भूमि में पैदावार कैसे की जा सकती है, इस पर किसानों को विस्तार से जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि तिलहनी फसलों में सरसो सबसे महत्वपूर्ण फसल है. ऐसे क्षेत्र जहां सिंचाई के साधन कम हैं वहां धान और मक्का की खेती के बाद सरसो की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. उन्होंने बताया कि जनपद में सरसो की खेती बहुत कम क्षेत्रफल पर की जाती है. साथ ही सरसो की खेती को बढ़ावा देने के लिए उमर्दा ब्लॉक के अल्लाहपुर गांव के किसानों को सरसो उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके कनौजिया ने बताया कि सरसो की अनेक उन्नतशील प्रजातियां जैसे- आरएच 749, गिरिराज, उर्वशी, माया, नरेंद्र राई, रोहाणी आदि बुवाई के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं. इन प्रजातियों के लिए चार से पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर स्वस्थ बीज की आवश्यकता होती है. अच्छी फसल के उत्पादन के लिए पंक्ति में बुवाई करें. जिसकी दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधों से पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

फसलों में संतुलित उर्वरकों का करें इस्तेमाल

उन्होंने बताया कि संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए. इसके लिए प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटास दिया जा सकता है. इस मात्रा को उर्वरकों के रूप में देने के लिए बुआई के समय 6 किलोग्राम यूरिया, 10 किलोग्राम डीएपी और 8 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति बीघा की दर से दिया जाना चाहिए. इसके उपरांत पहली सिंचाई के बाद प्रति बीघा 6 किलोग्राम यूरिया और इतनी ही मात्रा का प्रयोग दूसरी सिंचाई के उपरांत किया जाना लाभदायक होता है. उन्होंने कहा कि गंधक के प्रयोग से सरसो में तेल की मात्रा तथा उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग बुवाई के समय किया जा सकता है.

वैज्ञानिक डॉ. जगदीश किशोर ने बताया कि दीमक प्रभावित क्षेत्रों में क्लोरपीरिफॉस 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए. यदि जमाव के बाद आरा मक्खी का प्रकोप हो तो मैलाथियान धूल 5% की दर से 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा डाईक्लोरोवास 76% को 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.