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हाथ ठेली पर परिवार को बिठाकर तय किया गुरुग्राम से कन्नौज तक का सफर

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में एक मजदूर ने अपनी पत्नी और बच्ची को हाथ ठेली पर बिठाकर करीब 500 किमी का सफर तय किया. मजदूर हरियाण के गुरुग्राम में हाथ ठेली चलाकर दिहाड़ी मजदूरी का काम कर रहा था और लॉकडाउन के चलते वहीं फंसा हुआ था.

परिवार के साथ तय किया 500 किमी का सफर.
परिवार के साथ तय किया 500 किमी का सफर.
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Published : May 18, 2020, 3:24 PM IST

कन्नौज: दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के लिए हर रास्ता अपना रहे हैं. कोई पैदल, कोई रिक्शे से तो कोई साइकिल से सैकड़ों किमी का सफर तय कर रहा है. यूपी के कन्नौज से भी एक ऐसी ही तस्वीर सामने आई है जहां एक मजदूर हरियाणा के गुरुग्राम से अपनी पत्नी और बच्चे को हाथ ठेले पर बिठाकर पहुंचा है.

कन्नौज न्यूज
पत्नी और बच्ची को हाथ ठेली पर बिठाकर तय किया सफर.

यूपी के हरदोई जिले के रहने वाले आशाराम हरियाण के गुरुग्राम में हाथ ठेली चलाकर दिहाड़ी मजदूरी का काम कर रहे थे. लॉकडाउन के चलते जब रोजी रोटी पर संकट आया, तो वह अपने परिवार के साथ जैसे-तैसे गुजारा करते रहे लेकिन जब पत्नी और बच्चे को खिलाने के लिए कोई रास्ता न दिखा तो लगा कि घर लौटना ही सही है. इसके बाद वापस घर जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो अपनी पत्नी और छोटे से बच्चे को हाथ ठेली पर बिठाकर अपने घर की ओर निकल पड़े.

जिस दूरी को चार पहिया वाहनों से भी तय करने में लोगों को आसानी नहीं होती है उस दूरी को कोरोना संकट के समय आशाराम ने अपने परिवार की जान बचाने के लिए पैदल ठेली को धकेलते हुए नाप डाला.


ये भी पढ़ें- कन्नौज: एक्सप्रेस-वे से नीचे गिरी बाइक, एक की मौत

कन्नौज: दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर अपने घर जाने के लिए हर रास्ता अपना रहे हैं. कोई पैदल, कोई रिक्शे से तो कोई साइकिल से सैकड़ों किमी का सफर तय कर रहा है. यूपी के कन्नौज से भी एक ऐसी ही तस्वीर सामने आई है जहां एक मजदूर हरियाणा के गुरुग्राम से अपनी पत्नी और बच्चे को हाथ ठेले पर बिठाकर पहुंचा है.

कन्नौज न्यूज
पत्नी और बच्ची को हाथ ठेली पर बिठाकर तय किया सफर.

यूपी के हरदोई जिले के रहने वाले आशाराम हरियाण के गुरुग्राम में हाथ ठेली चलाकर दिहाड़ी मजदूरी का काम कर रहे थे. लॉकडाउन के चलते जब रोजी रोटी पर संकट आया, तो वह अपने परिवार के साथ जैसे-तैसे गुजारा करते रहे लेकिन जब पत्नी और बच्चे को खिलाने के लिए कोई रास्ता न दिखा तो लगा कि घर लौटना ही सही है. इसके बाद वापस घर जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो अपनी पत्नी और छोटे से बच्चे को हाथ ठेली पर बिठाकर अपने घर की ओर निकल पड़े.

जिस दूरी को चार पहिया वाहनों से भी तय करने में लोगों को आसानी नहीं होती है उस दूरी को कोरोना संकट के समय आशाराम ने अपने परिवार की जान बचाने के लिए पैदल ठेली को धकेलते हुए नाप डाला.


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