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...जहां नालियों से भी आती थी इत्र की खुशबू - itra nagri

कन्नौज जिसका नाम जुबां पर आते ही खुशबूदार नेचुरल इत्र की याद आ जाती है. फ्रांस के बाद कन्नौज ही ऐसा स्थान है, जहां नेचुरल खुशबू का इत्र तैयार किया जाता है, लेकिन कन्नौज का यह सुगंध उद्योग आज कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है.

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इत्र नगरी कन्नौज.
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Published : Mar 7, 2020, 6:53 PM IST

कन्नौज: यूपी में एक ऐसा जिला, जो इत्र की राजधानी के नाम से विश्व विख्यात है. इत्र के साथ-साथ इतिहास की नगरी कन्नौज में घर-घर कुटीर उद्योग के तहत इत्र का कारोबार होता है. इत्र के इतिहास की बात करें तो मुगल बादशाह जहांगीर का कहना था, 'यह टूटे दिलों को जोड़ता है और सुकून देता है'. माना जाता है कि एक जमाने में कन्नौज की नालियों से भी इत्र की खुशबू आती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से इत्र की सुगंध कन्नौज से लुप्त होती जा रही है.

देखें खास रिपोर्ट.

कन्नौज में नेचुरल खुशबू के लिए इत्र तैयार किया जाता है. गुलाब, गेंदा, मेंहदी, बेला, चमेली, खस जैसी खुशबुओं के अलावा यहां अब खानपान व रोजमर्रा की जरूरत में काम आने वाली चीजों के लिए भी खुशबू तैयार की जाने लगी है, जिसमें लेमन ग्रास का तेल मुख्य है. इसका उपयोग शीतल पेय से लेकर साबुन और कपड़े धोने के पाउडर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.

ऐसे बनती है नेचुरल इत्र
यह सारी खुशबुएं कन्नौज में लगभग 600 साल पुरानी देसी तकनीकि से बनाई जाती है, जिसमें फूल, जड़ या पेड़ के तने को एक तांबे की डेग में डाल दिया जाता है. फिर उसमें मानक के हिसाब से पानी भरकर भट्टी के ऊपर चढ़ा दिया जाता है. इस तरह आसवन विधि से पकने के बाद फूल का तेल लकड़ी की एक लम्बी नली से होता हुआ एक सुराहीनुमा बर्तन में आकर जमा होता है, जिसे भभका कहते हैं. यह भभका ठंडे पानी में डुबाकर रखा गया होता है. इसमें से निकले तेल को कई चरणों में फिल्टर कर इत्र तैयार किया जाता है.

ये भी पढ़ें- कन्नौज: बैंक से नहीं मिला लोन, युवक ने परिवार समेत आत्महत्या करने की कोशिश की

पर्यटकों को आकर्षित करता है इत्र नगरी
इत्र नगरी की खुशबू से पर्यटक भी अछूते नहीं हैं. देश का एक ऐसा इकलौता इत्र उद्योग है, जिसने देश की सुगन्ध विदेशों मे महकाकर देश की ओर पर्यटकों को आकर्षित किया है. आज काफी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक कन्नौज के इत्र और इतिहास से रूबरू होने आते हैं.

कठिन परिस्थितियों में इत्र नगरी
इत्र का प्रोफेशन इस्तेमाल बढ़ा तो सरकारों को इसमें कुछ कमाई का जरिया नजर आया. इस पर टैक्स लगने शुरू हो गए. इत्र निर्माताओं की मानें तो दो फीसदी से शुरू हुआ टैक्स का सिलसिला बढ़ता ही चला गया. जीएसटी लगने से इत्र व्यापरियों को सबसे ज्यादा नुकशान होने लगा, जिसका असर आज भी देखने को मिल रहा है. कन्नौज का यह सुंगध उद्योग आज कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है. जरूरी है इस उद्योग को बचाए रखने के लिए सरकारें गम्भीरता से कदम उठाएं. नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब इत्र नगरी की दास्तान इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाएगी.

ये भी पढ़ें- वाराणसी: कोरोना को लेकर रेलवे अलर्ट, स्टेशन पर अनाउंसमेंट कर किया जा रहा जागरूक

डिमांड में कमी
कन्नौज का इत्र व्यापार पूरे भारत में फैला हुआ है. यूके, यूएस, सउदी अरब, इरान, इराक, ओमान आदि जगहों पर भी इत्रों का निर्यात होता है, लेकिन आज बाजार में परफ्यूम की मांग बढ़ने से इत्र का कारोबार गिरता जा रहा है. कन्नौज में इत्र बनाने की करीब 200 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. इत्र का प्रयोग पूजा, खान-पान, इलाज और खास मेहमानों के स्वागत में होता था, लेकिन अब इसे गुटखे, जर्दा, कॉस्मेटिक्स और पान मसाले में सुगन्ध के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

नेचुरल इत्र पर भारी पड़ रहा रसायनिक विकल्प
पारंपरिक इत्र के उत्पादन में उच्च लागत के कारण कन्नौज में इत्र तेजी से हार रहा है. वहीं रसायनिक विकल्प और पैराफिन आधारित परफ्यूम को बनाना सस्ता पड़ता है. कन्नौज के इत्र के दाम की शुरुआत जहां हजारों से होती है, वहीं अल्कोहल निर्मित डियोड्रेंट्स इनसे काफी सस्ते मिलते हैं. हालांकि राज्य सरकार ने इत्र व्यापारियों की परेशानी को देखते हुए अब इत्र व्यवसाय को वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के अंतर्गत चुना है, ताकि इत्र व्यापार को बढ़ावा मिले.

कन्नौज: यूपी में एक ऐसा जिला, जो इत्र की राजधानी के नाम से विश्व विख्यात है. इत्र के साथ-साथ इतिहास की नगरी कन्नौज में घर-घर कुटीर उद्योग के तहत इत्र का कारोबार होता है. इत्र के इतिहास की बात करें तो मुगल बादशाह जहांगीर का कहना था, 'यह टूटे दिलों को जोड़ता है और सुकून देता है'. माना जाता है कि एक जमाने में कन्नौज की नालियों से भी इत्र की खुशबू आती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से इत्र की सुगंध कन्नौज से लुप्त होती जा रही है.

देखें खास रिपोर्ट.

कन्नौज में नेचुरल खुशबू के लिए इत्र तैयार किया जाता है. गुलाब, गेंदा, मेंहदी, बेला, चमेली, खस जैसी खुशबुओं के अलावा यहां अब खानपान व रोजमर्रा की जरूरत में काम आने वाली चीजों के लिए भी खुशबू तैयार की जाने लगी है, जिसमें लेमन ग्रास का तेल मुख्य है. इसका उपयोग शीतल पेय से लेकर साबुन और कपड़े धोने के पाउडर में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.

ऐसे बनती है नेचुरल इत्र
यह सारी खुशबुएं कन्नौज में लगभग 600 साल पुरानी देसी तकनीकि से बनाई जाती है, जिसमें फूल, जड़ या पेड़ के तने को एक तांबे की डेग में डाल दिया जाता है. फिर उसमें मानक के हिसाब से पानी भरकर भट्टी के ऊपर चढ़ा दिया जाता है. इस तरह आसवन विधि से पकने के बाद फूल का तेल लकड़ी की एक लम्बी नली से होता हुआ एक सुराहीनुमा बर्तन में आकर जमा होता है, जिसे भभका कहते हैं. यह भभका ठंडे पानी में डुबाकर रखा गया होता है. इसमें से निकले तेल को कई चरणों में फिल्टर कर इत्र तैयार किया जाता है.

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पर्यटकों को आकर्षित करता है इत्र नगरी
इत्र नगरी की खुशबू से पर्यटक भी अछूते नहीं हैं. देश का एक ऐसा इकलौता इत्र उद्योग है, जिसने देश की सुगन्ध विदेशों मे महकाकर देश की ओर पर्यटकों को आकर्षित किया है. आज काफी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक कन्नौज के इत्र और इतिहास से रूबरू होने आते हैं.

कठिन परिस्थितियों में इत्र नगरी
इत्र का प्रोफेशन इस्तेमाल बढ़ा तो सरकारों को इसमें कुछ कमाई का जरिया नजर आया. इस पर टैक्स लगने शुरू हो गए. इत्र निर्माताओं की मानें तो दो फीसदी से शुरू हुआ टैक्स का सिलसिला बढ़ता ही चला गया. जीएसटी लगने से इत्र व्यापरियों को सबसे ज्यादा नुकशान होने लगा, जिसका असर आज भी देखने को मिल रहा है. कन्नौज का यह सुंगध उद्योग आज कठिन परिस्थितियों से गुजर रहा है. जरूरी है इस उद्योग को बचाए रखने के लिए सरकारें गम्भीरता से कदम उठाएं. नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब इत्र नगरी की दास्तान इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाएगी.

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डिमांड में कमी
कन्नौज का इत्र व्यापार पूरे भारत में फैला हुआ है. यूके, यूएस, सउदी अरब, इरान, इराक, ओमान आदि जगहों पर भी इत्रों का निर्यात होता है, लेकिन आज बाजार में परफ्यूम की मांग बढ़ने से इत्र का कारोबार गिरता जा रहा है. कन्नौज में इत्र बनाने की करीब 200 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. इत्र का प्रयोग पूजा, खान-पान, इलाज और खास मेहमानों के स्वागत में होता था, लेकिन अब इसे गुटखे, जर्दा, कॉस्मेटिक्स और पान मसाले में सुगन्ध के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

नेचुरल इत्र पर भारी पड़ रहा रसायनिक विकल्प
पारंपरिक इत्र के उत्पादन में उच्च लागत के कारण कन्नौज में इत्र तेजी से हार रहा है. वहीं रसायनिक विकल्प और पैराफिन आधारित परफ्यूम को बनाना सस्ता पड़ता है. कन्नौज के इत्र के दाम की शुरुआत जहां हजारों से होती है, वहीं अल्कोहल निर्मित डियोड्रेंट्स इनसे काफी सस्ते मिलते हैं. हालांकि राज्य सरकार ने इत्र व्यापारियों की परेशानी को देखते हुए अब इत्र व्यवसाय को वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के अंतर्गत चुना है, ताकि इत्र व्यापार को बढ़ावा मिले.

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