कन्नौज: प्रति वर्ष 26 जून को 'अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस' मनाया जाता है. नशीली वस्तुओं और पदार्थों के निवारण के लिए 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने 7 दिसंबर 1987 को यह प्रस्ताव पारित किया था. तभी से हर साल लोगों को नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से इसे मनाया जाता है. आइये, जानते हैं कि वह कौन से कारक हैं, जो बच्चों को नशे का सेवन करने को मजबूर करते हैं.
आज पूरे देश में युवा नशे की गिरफ्त में बढ़ते चले जा हैं. नशा कोई भी हो, सेहत के लिए हानिकारक ही होता है. नशा केवल युवाओं की सेहत ही नहीं, बल्कि परिवार व समाज के वातावरण को भी भारी नुकसान पहुंचाता है. इसलिए बेहद जरूरी हो जाता है कि माता-पिता बचपन से ही बच्चे पर ध्यान दें और अभिभावकों को यह ज्ञात हो कि वह कौन सी वजह है जिनके कारण बच्चे इस नशा रूपी राक्षस की गिरफ्त में फंस सकते हैं.
पारिवारिक वातावरण
अगर घर का माहौल सही नहीं है, तो बच्चों का उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अगर माता-पिता ड्रग्स लेते हैं या धूम्रपान करते हैं. आपस में झगड़ा करते हैं या बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते, तो इसका सीधा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है और बच्चों में नशा की तरफ आकर्षित होने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं अगर बच्चों के रिश्ते माता-पिता के साथ मजबूत हों व माता-पिता भी बच्चे की क्रिया-कलापों पर नजर रखें, तो काफी हद तक बच्चे की संगत खराब होने से बचाया जा सकता है.
दोस्तों का प्रभाव
किसी भी बच्चे के जीवन में एक अच्छे और सच्चे दोस्त का बहुत बड़ा रोल होता है. जहां एक अच्छा और सक्सेस दोस्त बच्चों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालता है, तो वहीं दूसरी तरफ नशा का सेवन करने वाले दोस्त बच्चे को भी इसका आदी बना देते हैं. इसलिए बेहद जरूरी है कि अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ-साथ उनके दोस्तों पर भी नजर रखने की आवश्यकता है.
स्कूल में खराब प्रदर्शन
ऐसे बच्चे जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता, खराब प्रदर्शन रहता है, क्लास से गायब रहते हैं, तो ऐसे बच्चों में नशे की गिरफ्त में आने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. तब अभिभावकों को कोशिश करना चाहिए कि बच्चा ज्यादा से ज्यादा अपनी पढ़ाई और करियर के बारे में सोंचे. टीचरों से घुल-मिल सके. इस दौरान अभिभावकों को अपनी इच्छाएं बच्चों के ऊपर थोपने की बजाए उसे प्यार से समझाने की आवश्यकता है.
मानसिक तनाव
धूम्रपान का सबसे बड़ा कारण कहीं न कहीं मानसिक तनाव भी है. आजकल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपनों को समय नहीं दे पाते और एंटी सोशल, गुस्सैल हो जाते हैं. जिसके बात उन्हें लगता है कि नशा ही उनके मर्ज का इलाज है. ऐसे युवाओं को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि नशा इलाज नहीं, बल्कि उनके सोचने और समझने की शक्ति को खत्म कर देने वाला है.
क्या कहते हैं अपर मुख्य चिकित्साधिकारी
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी व तम्बाकू नियंत्रण नोडल डॉ. राम मोहन तिवारी का कहना है कि नशा एक ऐसी बीमारी है, जो युवा पीढ़ी को लगातार अपनी चपेट में लेकर कई तरह से बीमार कर रही है. इस दिन हम सभी नशा से दूर रहने का संकल्प लें. नशा से एक व्यक्ति ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि पूरा परिवार एवं समाज बर्बाद हो जाता है. उन्होंने बताया कि धूम्रपान कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा लगा पाना बहुत कठिन है. यहां तक कि आज का हमारा युवा इसके चक्कर में नपुंसकता तक का शिकार हो रहा है. धूम्रपान शुक्राणुओं की संख्या को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके चलते नपुंसकता का शिकार बनने की सम्भावना बढ़ जाती है.
श्वसन प्रणाली, सांस की नली और फेफड़ों को भारी नुकसान
जिले के तम्बाकू नियंत्रण सलाहकार डॉ. रवि प्रताप ने कहा कि किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य खराब होगा, तो देश का भी विकास नहीं हो सकता. नशा एक ऐसी बुरी आदत है, जो व्यक्ति को तन-मन-धन से खोखला कर देता है. इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है. इस बुराई को समाप्त करने के लिए शासन के साथ ही समाज के हर तबके को आगे आना होगा.
डॉ. रवि का कहना है कि बीड़ी-सिगरेट ही नहीं, बल्कि अन्य तम्बाकू उत्पादों के साथ ही हुक्का, सिगार, ई-सिगरेट भी कोरोना वायरस के संक्रमण को फैला सकते हैं, इसलिए अपने साथ ही अपनों की सुरक्षा के लिए इनसे छुटकारा पाने में ही भलाई है. कोरोना का वायरस छींकने, खांसने और थूकने से निकलने वाली बूंदों के जरिए एक-दूसरे को संक्रमित करता है. इसके अलावा धूम्रपान से श्वसन प्रणाली, सांस की नली और फेफड़ों को भारी नुकसान पहुंचता है. यही कारण है कि फेफड़ों की कोशिकाएं कमजोर होने से संक्रमण से लड़ने की क्षमता अपने आप कम हो जाती है.