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आजादी की लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई के योगदान पर संगोष्ठी, जुटे इतिहासकार और साहित्यकार - झांसी की रानी

झांसी के बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन 'वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई और स्वाधीन चेतना' पर चर्चा की गई. इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज ने संयुक्त रूप से किया है.

लक्ष्मीबाई के योगदान पर संगोष्ठी आयोजित.
लक्ष्मीबाई के योगदान पर संगोष्ठी आयोजित.
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Published : Mar 2, 2021, 10:38 PM IST

झांसीः बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को 'वीरांगना महरानी लक्ष्मीबाई और स्वाधीन चेतना' विषय पर देश भर से आए वक्ताओं ने अपनी बात रखी. तीन दिनों की इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज ने संयुक्त रूप से किया है. कई विश्वविद्यालयों से आये विद्वानों ने विषय से जुड़े विभिन्न पक्षों पर अपनी राय रखी.

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता बहादुर सिंह परमार ने बुन्देलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि यदि बुन्देलखंड को समझना है तो बुन्देलखंड के गांवों की ओर देखना चाहिए. इतिहासविद मुकुंद मेहरोत्रा ने महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की चर्चा के बहाने बुन्देली इतिहास पर चर्चा की. उन्होंने साम्राज्यवादी हितों को ध्यान में रखकर लिखे भारत के इतिहास पर नवीन शोध कार्य की अनुशंसा की.

इसे भी पढ़ें- गोरखपुर की रजिया सुल्ताना का कमाल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मचाया धमाल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. विनम्र सेन सिंह ने झांसी की रानी की क्रान्ति दर्शिता की चर्चा करते हुए 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्ति चेतना पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि अपने इतिहास से हम स्वयं ही अनभिज्ञ होते जा रहे हैं. आवश्यकता है कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी स्मृद्ध और गौरवमयी इतिहास परम्परा को पढ़े और गुने. इसके लिए वह स्वयं अपनी दृष्टि से देखे.

इस गोष्ठी में प्रतिभागिता कर रहे हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने झांसी की रानी को भारतीय स्वाधीन चेतना का अमिट हस्ताक्षर माना. उन्होंने भारतीय इतिहास में प्रचलित पूर्वाग्रहों पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता पर दिया. उन्होंने घोषणा की कि वीरांगना के बलिदान दिवस पर 18 जून को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महारानी लक्ष्मीबाई पर बड़ा आयोजन किया जाएगा.

झांसीः बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को 'वीरांगना महरानी लक्ष्मीबाई और स्वाधीन चेतना' विषय पर देश भर से आए वक्ताओं ने अपनी बात रखी. तीन दिनों की इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज ने संयुक्त रूप से किया है. कई विश्वविद्यालयों से आये विद्वानों ने विषय से जुड़े विभिन्न पक्षों पर अपनी राय रखी.

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता बहादुर सिंह परमार ने बुन्देलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि यदि बुन्देलखंड को समझना है तो बुन्देलखंड के गांवों की ओर देखना चाहिए. इतिहासविद मुकुंद मेहरोत्रा ने महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की चर्चा के बहाने बुन्देली इतिहास पर चर्चा की. उन्होंने साम्राज्यवादी हितों को ध्यान में रखकर लिखे भारत के इतिहास पर नवीन शोध कार्य की अनुशंसा की.

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. विनम्र सेन सिंह ने झांसी की रानी की क्रान्ति दर्शिता की चर्चा करते हुए 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्ति चेतना पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि अपने इतिहास से हम स्वयं ही अनभिज्ञ होते जा रहे हैं. आवश्यकता है कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी स्मृद्ध और गौरवमयी इतिहास परम्परा को पढ़े और गुने. इसके लिए वह स्वयं अपनी दृष्टि से देखे.

इस गोष्ठी में प्रतिभागिता कर रहे हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने झांसी की रानी को भारतीय स्वाधीन चेतना का अमिट हस्ताक्षर माना. उन्होंने भारतीय इतिहास में प्रचलित पूर्वाग्रहों पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता पर दिया. उन्होंने घोषणा की कि वीरांगना के बलिदान दिवस पर 18 जून को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महारानी लक्ष्मीबाई पर बड़ा आयोजन किया जाएगा.

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