झांसी: सूखे और सिंचाई की समस्या से जूझ रहे बुंदेलखंड के किसानों के लिए राहत की खबर है. रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के साइंटिस्टों ने एक ऐसी चने की प्रजाति डिवेलप की है जो कम पानी और कम लागत में तैयार हो जाएगी और इससे किसानों की पैदावार भी डेढ़ गुना बढ़ जाएगी.
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वैज्ञानिकों ने चने की नई प्रजाति डिवेलप की
यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर साइंटिस्ट चने की उन्नतशील प्रजातियां आरएलबीजीके-1, आरएलबीजीके-2 विकसित कर रहे हैं. पिछले साल हुई अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना-चना की बैठक में देशभर से आईं शोध प्रस्तुतियों में इसको भी रखा गया था. बाद में बैठक में मौजूद निदेशक और देश भर के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने जांच-पड़ताल में आरएलबीजीके-1, आरएलबीजीके-2 प्रजातियों को सफल साबित करार दिया था.
अब विश्वविद्यालय इस पर तेजी से काम कर रहा है. ये नई प्रजातियां कम लागत और कम पानी में अधिक पैदावार देने में सक्षम हैं. बतादें कि बुंदेलखंड क्षेत्र अल्प सिंचित और पठारी होने के कारण चने की परंपरागत किस्मों के लिए बहुत उपयुक्त नहीं है. इसलिए यहां की जलवायु के हिसाब से ऐसी किस्म की जरूरत है, जो कम पानी और कम लागत में अधिकाधिक उत्पादन दे सके. कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की जा रही ये प्रजातियां किसानों की इस जरूरत को पूरा करेंगी. ये किस्में कम समय में भी तैयार हो जाती हैं.
चने की उन्नतशील किस्मों के विकास में डॉ. मीनाक्षी आर्या, डॉ. अंशुमान सिंह योगदान कर रहे हैं. वहीं शोध निदेशक डॉ. एआर शर्मा के निर्देश में पिछले साल दलहन एवं तिलहन परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय ने चना, मटर,मसूर, सरसों, गेहूं की उन्नत प्रजातियों का लगभग 650 क्विंटल उत्पादन किया है. उनकी बिक्री अक्तूबर में शुरू होगी. आरएलबीजीके-1, आरएलबीजीके-2 प्रजातियां किसानों की आय दोगुनी करने में काफी मददगार साबित होंगी. इन प्रजातियों से लगभग डेढ़ गुनी उपज मिलेगी. ये कम लागत, कम समय में तैयार हो जाएंगी.
-डॉ. अंशुमन सिंह, साइंटिस्ट जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग