झांसी: शौर्य और वीरता की धरती झांसी में भगवान शिव का एक अनोखा मंदिर स्थित है. ये मंदिर न केवल धर्म बल्कि कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का गवाह है. हर साल सावन के महीने में झांसी शहर में स्थित मढ़िया महाकालेश्वर मंदिर पर श्रद्धालुओं की भीड़ जलाभिषेक के लिए उमड़ती है. इस मंदिर के बारे में स्थानीय बताते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई सावन के महीने में हर सोमवार को इस मंदिर में जलाभिषेक के लिए आती थीं. इतना ही नहीं मढिया महाकालेश्वर मंदिर बुन्देलखण्ड में गुसाई सन्तों के प्रभाव का जीवंत प्रमाण माना जाता है.
स्थानीयों के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण चौदहवीं से सोलहवीं सदी के बीच टीकमगढ़ के महाराज के आदेश पर नागा साधुओं द्वारा करवाया गया था. 16वीं सदी के आसपास झांसी में काफी संख्या में मराठा साम्राज्य के लोग आकर बस गए. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भी इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं. सावन में भी वह हर सोमवार को यहां जलाभिषेक करने आती थीं. स्वतंत्रता आंदोलन के समय में यह मंदिर कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का गवाह बना. स्थानीयों के मुताबिक, अंग्रेजों ने रानी को इस मंदिर से गिरफ्तार करने की योजना बनाई थी, लेकिन रानी को इस बात की भनक लग गई और उन्होंने अंग्रेजों की मंशा को नाकाम कर दिया.
मराठों के शासन के बाद झांसी में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया.साल 1950-60 के बीच मुस्लिम समुदाय के लोग यहां आकर रहने लगे.
मंदिर के सेवक प्रदीप कुमार त्रिवेदी बताते हैं कि सावन में यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. यह बहुत प्राचीन मंदिर है और काफी दूर-दूर से लोग यहां आते हैं. स्थानीय निवासी हरीश झा कहते हैं कि मंदिर बहुत प्रसिद्ध और प्राचीन है.
मंदिर के महंत रामेश्वर प्रसाद उपाध्याय बताते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सावन के महीने में हर सोमवार को इस मंदिर में पूजन-अर्चन करने आती थीं. अंग्रेजों ने यह योजना बनाई कि रानी इस मंदिर में बिना सैनिकों के आती हैं तो क्यों न उन्हें यहीं से गिरफ्तार कर लिया जाए. रानी को इस बात की गुप्तचरों से जानकारी लग गई तो उन्होंने यहां आना बंद कर दिया. जब उन्होंने यहां आना बंद कर दिया तब अंग्रेजों ने किले पर चढ़ाई की और अंग्रेजों से रानी का युद्ध हुआ. मंदिर के पीछे से अंग्रेज किले पर तोप चला रहे थे. बचाव में रानी की सेना ने जो तोप चलाया उनमें से एक गोला आकर मंदिर की प्राचीर में लगा, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं.