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इस्लामिक न्यू ईयर के साथ ही झांसी में मुहर्रम की तैयारियां शुरू

हिजरी कैलेंडर का सबसे पहला महीना मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. यह रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है. इस महीने को शोक का महीना भी कहा जाता है.

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पवित्र महीना मुहर्रम
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Published : Aug 1, 2022, 3:01 PM IST

झांसी: पिछले साल मुहर्रम का त्योहार भारत में 20 अगस्त 2021 को मनाया गया था. इस साल यह त्योहार 9 अगस्त को मनाया जाएगा. इसी कड़ी में जिले के इमामबाड़ों को सजाने के लिए लोग घरों में भी ताजिये बना रहे हैं. झांसी के पुराने शहर के रहने वाले शिया समुदाय के बाशिंदे मोहर्रम को लेकर इमामबाड़ों की साफ सफाई और सजावट के लिए दिन रात लगे हुए हैं. मुहर्रम के चांद का दीदार होने के बाद से ही बच्चे, बूढ़े, नौजवान सब मिलकर इमामबाड़े में होने बाली मजलिस और मातम में एहतराम के साथ शामिल होकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करके गम में शामिल हो रहे हैं.

मौलाना मुजफ्फर हसन जैदी ने दी जानकारी

शिया मौलाना मुजफ्फर हसन जैदी का कहना है कि इमाम हुसैन की शहादत 10 मुहर्रम को हुई है. झांसी में मजलिशों का दौर शुरू हो चुका है. इमाम हुसैन ने हक के लिए अपनी कुर्बानी दी थी. सारी इंसानियत को पैगामे इंसानियत दिया जाए और ये पैगाम सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है, हर उस शख्स के लिए है, जिसका ताल्लुक इंसानियत से है. मौलाना ने कहा कि हमें सभी के धर्मों का आदर करना चाहिए. लोगों से गुजारिश है कि हम मुहर्रम का त्यौहार इस तरीके से मनाएं की किसी को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो. सरकार द्वारा दी गई गाइडलाइन का पालन करते हुए जुलूस में शामिल हो. किसी भी प्रकार की कोई भी ऐसी बात ना हो जिससे हमारे मुल्क का और झांसी शहर का माहौल खराब हो.

शिया मौलाना मुजफ्फर का कहना है कि इस माह में इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है. यह हमारे लिए एक गम का महीना है. इसलिए इस माह में मुबरकबाद देने की रिवायत ही नहीं है. इस पवित्र माह में हम शिया समुदाय के सभी लोग 10 दिन बड़े एहतराम के साथ पुराने कपड़े पहनते हैं और किसी तरह का ऐसा कोई काम नहीं करते जिसमे कहीं न कहीं किसी भी तरह की कोई खुशी का इजहार हो.


इसे भी पढ़े-मोहर्रम पर यूपी सरकार की नई गाइडलाइन, ताजिया जुलूस पर रोक

354 दिन काही होता है इस्लामिक कैलेंडर
बता दें कि इस्लामिक न्यू ईयर की शुरुआत 31 जुलाई से हो चुकी है. इसके साथ ही इस्लामिक कैलेंडर के नए महीने मुहर्रम की शुरुआत हो गई है. हर साल इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत की तारीख बदलती रहती है. इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है. यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से करीब 11 दिन छोटा होता है. इसमें 365 दिन के बजाय केवल 354 दिन ही होते हैं. हिजरी कैलेंडर का सबसे पहला महीना मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. यह रमजान के महीने के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है. इस महीने को शोक का महीना भी कहा जाता है. क्योंकि इस महीने में इमाम हुसैन जो की पैगंबर मोहम्मद के पोते थे उनकी शहादत हुई थी. ऐसे में इस शहादत को याद करते हुए ज्यादातर मुस्लिम मुहर्रम के दिन जुलूस और ताजिया निकालते हैं. इस दिन मातम मनाते हुए लोग खुद को पीटते हैं और अंगारों तक पर नंगे पांव चलते हैं.

आशूरा किसे कहते हैं?
मुहर्रम के दसवें दिन को आशूरा कहते हैं. आशूरा के दिन ही भारत में मुहर्रम मनाया जाता है. आशूरा को इस्लामिक इतिहास में सबसे शोक भरे दिनों में से एक माना जाता है. ये एक प्रकार से मातम का पर्व होता है. इस दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में भारत समेत पूरी दुनिया में शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और उनके पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं. हुसैन ने इस्लाम और मानवता की रक्षा के लिए के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी. ऐसे में इस दिन को आशूरा यानी मातम का दिन के रूप में आज भी मनाया जाता है. इस दिन उनकी कुर्बानी को याद किया जाता है और ताजिया निकाला जाता है.

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झांसी: पिछले साल मुहर्रम का त्योहार भारत में 20 अगस्त 2021 को मनाया गया था. इस साल यह त्योहार 9 अगस्त को मनाया जाएगा. इसी कड़ी में जिले के इमामबाड़ों को सजाने के लिए लोग घरों में भी ताजिये बना रहे हैं. झांसी के पुराने शहर के रहने वाले शिया समुदाय के बाशिंदे मोहर्रम को लेकर इमामबाड़ों की साफ सफाई और सजावट के लिए दिन रात लगे हुए हैं. मुहर्रम के चांद का दीदार होने के बाद से ही बच्चे, बूढ़े, नौजवान सब मिलकर इमामबाड़े में होने बाली मजलिस और मातम में एहतराम के साथ शामिल होकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करके गम में शामिल हो रहे हैं.

मौलाना मुजफ्फर हसन जैदी ने दी जानकारी

शिया मौलाना मुजफ्फर हसन जैदी का कहना है कि इमाम हुसैन की शहादत 10 मुहर्रम को हुई है. झांसी में मजलिशों का दौर शुरू हो चुका है. इमाम हुसैन ने हक के लिए अपनी कुर्बानी दी थी. सारी इंसानियत को पैगामे इंसानियत दिया जाए और ये पैगाम सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं है, हर उस शख्स के लिए है, जिसका ताल्लुक इंसानियत से है. मौलाना ने कहा कि हमें सभी के धर्मों का आदर करना चाहिए. लोगों से गुजारिश है कि हम मुहर्रम का त्यौहार इस तरीके से मनाएं की किसी को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो. सरकार द्वारा दी गई गाइडलाइन का पालन करते हुए जुलूस में शामिल हो. किसी भी प्रकार की कोई भी ऐसी बात ना हो जिससे हमारे मुल्क का और झांसी शहर का माहौल खराब हो.

शिया मौलाना मुजफ्फर का कहना है कि इस माह में इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है. यह हमारे लिए एक गम का महीना है. इसलिए इस माह में मुबरकबाद देने की रिवायत ही नहीं है. इस पवित्र माह में हम शिया समुदाय के सभी लोग 10 दिन बड़े एहतराम के साथ पुराने कपड़े पहनते हैं और किसी तरह का ऐसा कोई काम नहीं करते जिसमे कहीं न कहीं किसी भी तरह की कोई खुशी का इजहार हो.


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354 दिन काही होता है इस्लामिक कैलेंडर
बता दें कि इस्लामिक न्यू ईयर की शुरुआत 31 जुलाई से हो चुकी है. इसके साथ ही इस्लामिक कैलेंडर के नए महीने मुहर्रम की शुरुआत हो गई है. हर साल इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत की तारीख बदलती रहती है. इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है. यह ग्रेगोरियन कैलेंडर से करीब 11 दिन छोटा होता है. इसमें 365 दिन के बजाय केवल 354 दिन ही होते हैं. हिजरी कैलेंडर का सबसे पहला महीना मुहर्रम के नाम से जाना जाता है. यह रमजान के महीने के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है. इस महीने को शोक का महीना भी कहा जाता है. क्योंकि इस महीने में इमाम हुसैन जो की पैगंबर मोहम्मद के पोते थे उनकी शहादत हुई थी. ऐसे में इस शहादत को याद करते हुए ज्यादातर मुस्लिम मुहर्रम के दिन जुलूस और ताजिया निकालते हैं. इस दिन मातम मनाते हुए लोग खुद को पीटते हैं और अंगारों तक पर नंगे पांव चलते हैं.

आशूरा किसे कहते हैं?
मुहर्रम के दसवें दिन को आशूरा कहते हैं. आशूरा के दिन ही भारत में मुहर्रम मनाया जाता है. आशूरा को इस्लामिक इतिहास में सबसे शोक भरे दिनों में से एक माना जाता है. ये एक प्रकार से मातम का पर्व होता है. इस दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में भारत समेत पूरी दुनिया में शिया मुसलमान काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालते हैं और उनके पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं. हुसैन ने इस्लाम और मानवता की रक्षा के लिए के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी. ऐसे में इस दिन को आशूरा यानी मातम का दिन के रूप में आज भी मनाया जाता है. इस दिन उनकी कुर्बानी को याद किया जाता है और ताजिया निकाला जाता है.

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