झांसी: हर साल 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. पिछले कई सालों से उन्हें भारत रत्न देने की मांग पूरे देश में उठ रही है. इन सबके बीच दद्दा की उपेक्षा उनके परिवार के लोगों के मन में मलाल भी पैदा करती है. इसके बावजूद परिवार के लोगों ने गर्व के साथ दद्दा से जुड़ी स्मृतियों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया.
मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर बहू ने लिखी किताब-
मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर किताब लिखने वाली उनकी पुत्रवधू मीना उमेश ध्यानचंद ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे लिए गर्व की बात है. उन्होंने कहा कि बाबूजी के खेल जीवन के बारे में तो दुनिया जानती है, लेकिन व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन की जानकारी लोगों को कम थी. उन्होंने इस चीज को समझते हुए मेजर ध्यानचंद पर एक किताब लिखी. आज 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' की बात होती है, लेकिन महिलाओं के प्रति सम्मान की बात वे अपने जीवन काल में ही सिखाते रहे और परिवार में भी इसे लागू किया.
देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया-
भारत रत्न न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें जो करना था, वे कर गए. उन्होंने देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया, आर्थिक संकट झेले और देश को रास्ता दिखाया. उन्हें भारत रत्न मिलता है तो समाज और देश पर असर पड़ेगा और उनके संघर्ष के बारे में लोगों को पता चल सकेगा. हो सकता है इससे कोई ध्यानचंद निकल आये.
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मेजर ध्यानचंद की बेटी उषा सिंह कहती हैं कि दो साल पहले उन्हें भारत रत्न देने की बात हुई थी. अब बहुत पॉलिटिक्स हो गई है, जिसे मिलना चाहिए उसे नकार दिया जाता है. दद्दा के संघर्षों को याद करते हुए बेटी का कहना है कि हमारा परिवार बहुत बड़ा था. हम 11 भाई-बहन थे और मां ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं, फिर भी सबको पढ़ाया-लिखाया. उस समय गरीबी ज्यादा थी, अभाव में पूरी जिंदगी निकली.