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'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न न मिलने पर परिवार को मलाल

यूपी के झांसी के रहने वाले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती 29 अगस्त को मनाई जाती है. उनकी जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर ईटीवी भारत ने उनके परिवार के लोगों से बातचीत कर अनुभव साझा किया.

ईटीवी भारत ने मेजर ध्यानचंद के परिवार के लोगों से की बातचीत.
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Published : Aug 29, 2019, 8:23 AM IST

Updated : Aug 29, 2019, 9:48 AM IST

झांसी: हर साल 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. पिछले कई सालों से उन्हें भारत रत्न देने की मांग पूरे देश में उठ रही है. इन सबके बीच दद्दा की उपेक्षा उनके परिवार के लोगों के मन में मलाल भी पैदा करती है. इसके बावजूद परिवार के लोगों ने गर्व के साथ दद्दा से जुड़ी स्मृतियों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया.

ईटीवी भारत ने मेजर ध्यानचंद के परिवार के लोगों से की बातचीत.


मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर बहू ने लिखी किताब-
मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर किताब लिखने वाली उनकी पुत्रवधू मीना उमेश ध्यानचंद ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे लिए गर्व की बात है. उन्होंने कहा कि बाबूजी के खेल जीवन के बारे में तो दुनिया जानती है, लेकिन व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन की जानकारी लोगों को कम थी. उन्होंने इस चीज को समझते हुए मेजर ध्यानचंद पर एक किताब लिखी. आज 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' की बात होती है, लेकिन महिलाओं के प्रति सम्मान की बात वे अपने जीवन काल में ही सिखाते रहे और परिवार में भी इसे लागू किया.


देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया-
भारत रत्न न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें जो करना था, वे कर गए. उन्होंने देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया, आर्थिक संकट झेले और देश को रास्ता दिखाया. उन्हें भारत रत्न मिलता है तो समाज और देश पर असर पड़ेगा और उनके संघर्ष के बारे में लोगों को पता चल सकेगा. हो सकता है इससे कोई ध्यानचंद निकल आये.

पढ़ें:- मऊ: अंतर्जनपदीय पुलिस हॉकी खेल का हुआ शुभारंभ

मेजर ध्यानचंद की बेटी उषा सिंह कहती हैं कि दो साल पहले उन्हें भारत रत्न देने की बात हुई थी. अब बहुत पॉलिटिक्स हो गई है, जिसे मिलना चाहिए उसे नकार दिया जाता है. दद्दा के संघर्षों को याद करते हुए बेटी का कहना है कि हमारा परिवार बहुत बड़ा था. हम 11 भाई-बहन थे और मां ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं, फिर भी सबको पढ़ाया-लिखाया. उस समय गरीबी ज्यादा थी, अभाव में पूरी जिंदगी निकली.

झांसी: हर साल 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. पिछले कई सालों से उन्हें भारत रत्न देने की मांग पूरे देश में उठ रही है. इन सबके बीच दद्दा की उपेक्षा उनके परिवार के लोगों के मन में मलाल भी पैदा करती है. इसके बावजूद परिवार के लोगों ने गर्व के साथ दद्दा से जुड़ी स्मृतियों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया.

ईटीवी भारत ने मेजर ध्यानचंद के परिवार के लोगों से की बातचीत.


मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर बहू ने लिखी किताब-
मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर किताब लिखने वाली उनकी पुत्रवधू मीना उमेश ध्यानचंद ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे लिए गर्व की बात है. उन्होंने कहा कि बाबूजी के खेल जीवन के बारे में तो दुनिया जानती है, लेकिन व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन की जानकारी लोगों को कम थी. उन्होंने इस चीज को समझते हुए मेजर ध्यानचंद पर एक किताब लिखी. आज 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' की बात होती है, लेकिन महिलाओं के प्रति सम्मान की बात वे अपने जीवन काल में ही सिखाते रहे और परिवार में भी इसे लागू किया.


देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया-
भारत रत्न न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें जो करना था, वे कर गए. उन्होंने देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया, आर्थिक संकट झेले और देश को रास्ता दिखाया. उन्हें भारत रत्न मिलता है तो समाज और देश पर असर पड़ेगा और उनके संघर्ष के बारे में लोगों को पता चल सकेगा. हो सकता है इससे कोई ध्यानचंद निकल आये.

पढ़ें:- मऊ: अंतर्जनपदीय पुलिस हॉकी खेल का हुआ शुभारंभ

मेजर ध्यानचंद की बेटी उषा सिंह कहती हैं कि दो साल पहले उन्हें भारत रत्न देने की बात हुई थी. अब बहुत पॉलिटिक्स हो गई है, जिसे मिलना चाहिए उसे नकार दिया जाता है. दद्दा के संघर्षों को याद करते हुए बेटी का कहना है कि हमारा परिवार बहुत बड़ा था. हम 11 भाई-बहन थे और मां ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं, फिर भी सबको पढ़ाया-लिखाया. उस समय गरीबी ज्यादा थी, अभाव में पूरी जिंदगी निकली.

Intro:झांसी. हर साल 29 अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पिछले कई सालों से उन्हें भारत रत्न देने की मांग पूरे देश में उठ रही है। इन सबके बीच दद्दा की उपेक्षा उनके परिवार के लोगों के मन में मलाल भी पैदा करती है। बावजूद इसके परिवार के लोग गर्व के साथ दद्दा से जुड़ी स्मृतियां साझा करते हैं। झांसी में दद्दा के परिवार के लोगों के साथ ईटीवी भारत ने खास बातचीत की।


Body:मेजर ध्यानचंद की जिंदगी पर किताब लिखने वाली उनकी पुत्रवधू मीना उमेश ध्यानचंद बातचीत में बताती हैं कि हमारे लिए फक्र की बात है कि इस परिवार से हमारा सम्बन्ध हैं। बाबूजी के खेल जीवन के बारे में तो दुनिया जानती है लेकिन व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन की जानकारी कम थी। मुझे लगा कि यह लिखना चाहिए। आज बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बात होती है लेकिन महिलाओं के प्रति सम्मान की बात वे अपने जीवन काल में ही सिखाते रहे और परिवार में भी इसे लागू किया। इन सब बातों को मैंने किताब में शामिल किया है।

भारत रत्न न मिलने के सवाल पर मीना कहती हैं कि उन्हें जो करना था, वे कर गए। खेल में उनका कद लोग महसूस कर रहे हैं।उन्होंने देश के लिए प्रलोभन को ठुकराया, आर्थिक संकट झेले, और देश को रास्ता दिखाया। उन्हें भारत रत्न मिलता है तो समाज और देश पर असर पड़ेगा और उनके संघर्ष के बारे में लोगों को पता चल सकेगा। हो सकता है कि इनमें से कोई ध्यानचंद निकल आये।


Conclusion:मेजर ध्यानचंद की पुत्री उषा सिंह कहती हैं कि दो साल पहले उन्हें भारत रत्न देने की बात हुई थी। हमारे पास बहुत फोन आये। अब बहुत पॉलिटिक्स हो गई है। जिसे मिलना चाहिए उसे नकार दिया जाता है। दद्दा के संघर्षों को याद करते हुए कहती हैं कि हमारा परिवार बहुत बड़ा था। हम 11 भाई-बहन थे। चाचा-ताऊ सब साथ रहते थे। मां ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं। फिर भी सबको पढ़ाया लिखाया और पैरों पर खड़ा किया। उस समय गरीबी ज्यादा थी। अभाव में पूरी जिंदगी निकली। उन्होंने अपना पेट काटकर हमें पाला पोसा और हमें पढ़ाया लिखाया।

बाइट - मीना उमेश ध्यानचंद - मेजर ध्यानचंद की पुत्रवधू
बाइट - उषा सिंह - मेजर ध्यानचंद की पुत्री

लक्ष्मी नारायण शर्मा
झांसी
9454013045
Last Updated : Aug 29, 2019, 9:48 AM IST
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