झांसी: देश की जिन छोटी नदियों का अस्तित्व इस समय खतरे में है, उनमें से एक बुन्देलखण्ड की सुखनई नदी भी शामिल है. यह नदी मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से निकलती है और झांसी के मऊरानीपुर से होते हुए धसान नदी में मिल जाती है.
मऊरानीपुर कस्बे में इस नदी के दोनों ओर तटबन्ध बनाकर इसके सुंदरीकरण की योजना बनाई गई थी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. तटबन्ध तो बन गए लेकिन पानी न होने के कारण यह नदी कस्बे के कूड़ाघर में तब्दील हो गई. पूरे कस्बे का कचरा इसी नदी में फेंका जाता है. इसके अलावा कस्बे के नालों को इसी नदी में प्रवाहित किया जाता है, जिससे नदी की हालत कीचड़ भरे तालाब जैसी हो गई है.
नदी पर बालू माफियाओं की नजर
सुखनई नदी में पर्याप्त मात्रा में बालू होने के कारण यह नदी बालू माफियाओं के भी निशाने पर रही है. अलग-अलग जगहों पर बालू माफिया और बालू कारोबारी वैध-अवैध तरीके से इस नदी से बालू खनन का काम करते रहे हैं. नदी पर चेकडैम बनाये गए, लेकिन वे भी कारगर साबित नहीं हो सके. मऊरानीपुर क्षेत्र जनपद के उन क्षेत्रों में से है, जहां पानी का संकट सबसे अधिक है. जानकर मानते हैं कि इस नदी का संरक्षण पेयजल संकट को कम करने में मदद कर सकता है.
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नदी में पानी रानीपुर के पास से आता है. इसका पानी चेकडैम में छोड़ दिया गया, जब से चेकडैम बनाया गया, नदी का जलस्तर लगातार घटता गया. नदी की धार बन्द हो गई है. नदी में बस्ती के सभी नाले प्रवाहित हो रहे हैं. नदी के किनारे दलदल जैसी स्थिति है.
-शेखर राज बड़ोनिया, सामाजिक कार्यकर्ता
जनपद में जल संरक्षण अभियान के तहत हम सभी नदी, नाले, तालाब और जीवित व विलोपित हो रहे हैं. जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने में लगे हैं. सुखनई नदी के लिए एक योजना बना रहे हैं ,जिससे हमारा प्रयास होगा कि नदी को 12 महीने पानी से तृप्त किया जाए.
-निखिल टीकाराम फुण्डे, मुख्य विकास अधिकारी