जौनपुर: जिले में लॉकडाउन के दौरान भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के पहुंचने के कारण सरकारी क्वारंटाइन सेंटरों में मजदूरों के रहने की जगह कम पड़ने लगी है. जिसके बाद गांव के ही प्राइमरी स्कूलों को क्वारंटाइन सेंटर के रूप में बदल दिया गया है. यहां तक कि बहुत से गांव में पेड़ों के नीचे प्रवासी मजदूरों को रखा जा रहा है.
पेड़ों के नीचे रहने पर मजबूर मजदूर
जनपद के सभी गांव में प्राइमरी स्कूल से लेकर खुलेआम पेड़ों के नीचे भी लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है. 14 दिनों तक प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन रहना है, वह भी अपने खर्चे पर. क्योंकि यहां पर सरकार की तरफ से किसी तरह की खानपान की सुविधा नहीं है. इन लोगों को घर से ही अपनी सुविधाएं भी मंगानी पड़ रही हैं.
प्रवासी मजदूरों ने बयां किया दर्द
दिल्ली से लौटे मन भूषण प्रजापति बताते हैं कि स्कूल में व्यवस्था ना होने के कारण वह पेड़ों के नीचे लेटे हुए हैं. वह ट्रेन के माध्यम से दिल्ली से लौटे थे. अब उन्हें 14 दिन तक यहीं रहना है. खाना पानी भी घर से ही आ रहा है. सरकार की तरफ से उन्हें राशन भी दिया गया है.
मुंबई से लौटे मुरली बताते हैं कि वह ट्रकों के माध्यम से घर लौटे हैं. गांव आने पर उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया है. वह पेड़ों के नीचे ही रहने को मजबूर हैं, क्योंकि स्कूल में किसी तरह की व्यवस्था नहीं है.
जौनपुर: क्वारंटाइन सेंटर फुल, पेड़ के नीचे रहने को मजबूर प्रवासी मजदूर - jaunpur news
जौनपुर जिले में दूसरे राज्यों से भारी संख्या में पहुंचे प्रवासी मजदूर पेड़ के नीचे रहने को मजबूर हैं. दरअसल, प्रवासी मजदूरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि सरकार की तरफ से बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में जगह कम पड़ गई. जिसके बाद गांव में प्राइमरी स्कूल से लेकर खुलेआम पेड़ों के नीचे भी लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है.
जौनपुर: जिले में लॉकडाउन के दौरान भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है. भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के पहुंचने के कारण सरकारी क्वारंटाइन सेंटरों में मजदूरों के रहने की जगह कम पड़ने लगी है. जिसके बाद गांव के ही प्राइमरी स्कूलों को क्वारंटाइन सेंटर के रूप में बदल दिया गया है. यहां तक कि बहुत से गांव में पेड़ों के नीचे प्रवासी मजदूरों को रखा जा रहा है.
पेड़ों के नीचे रहने पर मजबूर मजदूर
जनपद के सभी गांव में प्राइमरी स्कूल से लेकर खुलेआम पेड़ों के नीचे भी लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है. 14 दिनों तक प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन रहना है, वह भी अपने खर्चे पर. क्योंकि यहां पर सरकार की तरफ से किसी तरह की खानपान की सुविधा नहीं है. इन लोगों को घर से ही अपनी सुविधाएं भी मंगानी पड़ रही हैं.
प्रवासी मजदूरों ने बयां किया दर्द
दिल्ली से लौटे मन भूषण प्रजापति बताते हैं कि स्कूल में व्यवस्था ना होने के कारण वह पेड़ों के नीचे लेटे हुए हैं. वह ट्रेन के माध्यम से दिल्ली से लौटे थे. अब उन्हें 14 दिन तक यहीं रहना है. खाना पानी भी घर से ही आ रहा है. सरकार की तरफ से उन्हें राशन भी दिया गया है.
मुंबई से लौटे मुरली बताते हैं कि वह ट्रकों के माध्यम से घर लौटे हैं. गांव आने पर उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया है. वह पेड़ों के नीचे ही रहने को मजबूर हैं, क्योंकि स्कूल में किसी तरह की व्यवस्था नहीं है.