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किसान बना मैराथन धावक, 65 की उम्र में 66 से अधिक मेडल

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Published : Dec 20, 2020, 2:03 PM IST

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के मछलीशहर निवासी सभाजीत यादव 50 साल की उम्र में एथलीट धावक बने. जिसके बाद सभाजीत यादव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 65 की उम्र तक आते-आते उन्होंने 66 से ज्यादा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मैराथन में हिस्सा लेकर जिले का नाम रोशन किया.

स्पेशल रिपोर्ट.
स्पेशल रिपोर्ट.

जौनपुर: 'कहते हैं, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है'. इस बात को जौनपुर के मछलीशहर थाना क्षेत्र के डाबिया बरावन निवासी 65 वर्षीय सभाजीत यादव ने सच कर दिखाया. सभाजीत यादव 50 साल की उम्र में मैराथन धावक बने, 65 साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने 70 इंटरनेशनल एवं नेशनल मेडल अपने नाम किया. सभाजीत का सपना है कि वे एक बार विदेशी धरती पर जीत दर्ज कर भारत का नाम रोशन करें.

कई प्रतियोगिताओं में ले चुके हैं हिस्सा
मछलीशहर तहसील क्षेत्र के अदारी डभिया गांव निवासी सभाजीत यादव पेशे से किसान हैं. उनके पास डेढ़ बीघा भूमि है. शुरू से ही खेलों में रुचि रखने वाले सभाजीत जिला स्तर पर होने वाली कई खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर मेडल जीत चुके हैं. कभी भाला फेंका (जेवलिन थ्रो) तो कभी सौ, दौ सौ और आठ सौ मीटर की दौड़ जीती.

स्पेशल रिपोर्ट.

बचपन से ही उन्हें एथलीट में हिस्सा लेने का मन होता था. उनके हौसलों में उड़ान तब लगी, जब वह अपने बड़े बेटे रोहित को इलाहाबाद में जेब्रालिन थ्रो खेल में हिस्सा दिलाने ले गए. वहां पर शाम के समय सभाजीत दौड़ लगा रहे थे, तभी एक कोच ने उन्हें देख लिया और सलाह दिया कि वे मैराथन में हिस्सा लें, क्योंकि उनके अंदर दौड़ने की प्रतिभा है.

सभाजीत ने कोच की सलाह पर अभ्यास करना शुरू कर दिया. सभाजीत बताते हैं कि उन्होंने पहली बार मुंबई के हाफ मैराथन में हिस्सा लिया. उस प्रतियोगिता में सभाजीत ने दूसरे स्थान पर रहकर 50 हजार का इनाम जीता.

पेशे से किसान हैं सभाजीत यादव.
पेशे से किसान हैं सभाजीत यादव.

हौसलों में पंख लगें
मुंबई में मैराथन जीत के बाद सभाजीत यादव के पंख को हौसला मिल गया. सभाजीत ने घर पर अभ्यास करना शुरू कर दिया. सुविधाओं का अभाव होने के कारण भी सभाजीत यादव को कोई रोक नहीं पाया. पेशे से कृषिक होने के कारण सभाजीत सिंह को अपने खेती-बाड़ी से ही घर का और बच्चों का खर्चा चलाना था. बावजूद इसके वे अपने पथ पर अडिग रहे.

कृषि पर आधारित है जीवन
सभाजीत यादव की आर्थिक हालत अच्छी न होने के बाद भी उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. सभाजीत यादव के तीन बेटे हैं और तीनों स्पोर्ट्स खेलते हैं. खास बात यह है कि तीनों जेम्ब्रालिन थ्रो खेलते हैं. बड़ा बेटा रोहित यादव पटियाला में कैम्प में ट्रेनिंग ले रहा है. इसके बारे में सभाजीत यादव का कहना है कि उनका लड़का 2022 या 2026 में ओलंपिक में हिस्सा लेगा और विश्व में भारत का नाम रोशन करेगा.

कई मेडल अपने नाम कर चुके सभाजीत यादव.
कई मेडल अपने नाम कर चुके सभाजीत यादव.

सभाजीत यादव कहते हैं कि उन्होंने देश की मिट्टी पर दौड़कर बहुत पदक जीते हैं. अब उनका सपना है कि वह विदेश की धरती पर दौड़कर भारत का नाम विश्वपटल पर रोशन करें. सभाजीत यादव ने कहा कि जौनपुर में सुविधाओं का अभाव है, जिससे खेल प्रतिभाएं निखर नहीं पा रही हैं. प्रधानमंत्री खेलो इंडिया के तहत सुविधाएं तो मिल रही हैं, लेकिन जौनपुर में इसका विकास नहीं हो पा रहा है. सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए.

जौनपुर: 'कहते हैं, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है'. इस बात को जौनपुर के मछलीशहर थाना क्षेत्र के डाबिया बरावन निवासी 65 वर्षीय सभाजीत यादव ने सच कर दिखाया. सभाजीत यादव 50 साल की उम्र में मैराथन धावक बने, 65 साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने 70 इंटरनेशनल एवं नेशनल मेडल अपने नाम किया. सभाजीत का सपना है कि वे एक बार विदेशी धरती पर जीत दर्ज कर भारत का नाम रोशन करें.

कई प्रतियोगिताओं में ले चुके हैं हिस्सा
मछलीशहर तहसील क्षेत्र के अदारी डभिया गांव निवासी सभाजीत यादव पेशे से किसान हैं. उनके पास डेढ़ बीघा भूमि है. शुरू से ही खेलों में रुचि रखने वाले सभाजीत जिला स्तर पर होने वाली कई खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर मेडल जीत चुके हैं. कभी भाला फेंका (जेवलिन थ्रो) तो कभी सौ, दौ सौ और आठ सौ मीटर की दौड़ जीती.

स्पेशल रिपोर्ट.

बचपन से ही उन्हें एथलीट में हिस्सा लेने का मन होता था. उनके हौसलों में उड़ान तब लगी, जब वह अपने बड़े बेटे रोहित को इलाहाबाद में जेब्रालिन थ्रो खेल में हिस्सा दिलाने ले गए. वहां पर शाम के समय सभाजीत दौड़ लगा रहे थे, तभी एक कोच ने उन्हें देख लिया और सलाह दिया कि वे मैराथन में हिस्सा लें, क्योंकि उनके अंदर दौड़ने की प्रतिभा है.

सभाजीत ने कोच की सलाह पर अभ्यास करना शुरू कर दिया. सभाजीत बताते हैं कि उन्होंने पहली बार मुंबई के हाफ मैराथन में हिस्सा लिया. उस प्रतियोगिता में सभाजीत ने दूसरे स्थान पर रहकर 50 हजार का इनाम जीता.

पेशे से किसान हैं सभाजीत यादव.
पेशे से किसान हैं सभाजीत यादव.

हौसलों में पंख लगें
मुंबई में मैराथन जीत के बाद सभाजीत यादव के पंख को हौसला मिल गया. सभाजीत ने घर पर अभ्यास करना शुरू कर दिया. सुविधाओं का अभाव होने के कारण भी सभाजीत यादव को कोई रोक नहीं पाया. पेशे से कृषिक होने के कारण सभाजीत सिंह को अपने खेती-बाड़ी से ही घर का और बच्चों का खर्चा चलाना था. बावजूद इसके वे अपने पथ पर अडिग रहे.

कृषि पर आधारित है जीवन
सभाजीत यादव की आर्थिक हालत अच्छी न होने के बाद भी उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. सभाजीत यादव के तीन बेटे हैं और तीनों स्पोर्ट्स खेलते हैं. खास बात यह है कि तीनों जेम्ब्रालिन थ्रो खेलते हैं. बड़ा बेटा रोहित यादव पटियाला में कैम्प में ट्रेनिंग ले रहा है. इसके बारे में सभाजीत यादव का कहना है कि उनका लड़का 2022 या 2026 में ओलंपिक में हिस्सा लेगा और विश्व में भारत का नाम रोशन करेगा.

कई मेडल अपने नाम कर चुके सभाजीत यादव.
कई मेडल अपने नाम कर चुके सभाजीत यादव.

सभाजीत यादव कहते हैं कि उन्होंने देश की मिट्टी पर दौड़कर बहुत पदक जीते हैं. अब उनका सपना है कि वह विदेश की धरती पर दौड़कर भारत का नाम विश्वपटल पर रोशन करें. सभाजीत यादव ने कहा कि जौनपुर में सुविधाओं का अभाव है, जिससे खेल प्रतिभाएं निखर नहीं पा रही हैं. प्रधानमंत्री खेलो इंडिया के तहत सुविधाएं तो मिल रही हैं, लेकिन जौनपुर में इसका विकास नहीं हो पा रहा है. सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए.

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