जौनपुर: पूरा देश इस बार आजादी की 74 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. इस बार आजादी का यह पर्व कोविड-19 महामारी के चलते बड़े ही सीमित लोगों के साथ मनाया जाएगा. जिसके लिए खास तैयारियां कर ली गई हैं. वहीं जिले में स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने दो बार गांधी जी यहां आ चुके हैं.
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो उस दौर में देश को आजाद कराने के लिए जनपद जौनपुर के कई वीर सपूतों ने भी अपने प्राणों की बाजी लगाई थी. उस दौर के ही एक बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में रामेश्वर प्रसाद सिंह को याद किया जाता है. उन दिनों उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते ही उनका घर आजादी के क्रांतिकारियों का एक बड़ा केंद्र बना हुआ था. 1929 में जनपद दौरे के समय गांधीजी दो बार रामेश्वर प्रसाद सिंह के घर भी आए थे. वहीं जवाहरलाल नेहरू भी दो बार उनके घर आ चुके थे और आंदोलन को गति देने के लिए लोगों को संगठित किया था.
आज रामेश्वर प्रसाद सिंह तो नहीं हैं, लेकिन उनकी पत्नी महारानी देवी आज भी जीवित हैं. जिनकी उम्र लगभग 110 साल पहुंच चुकी है. आज भी आजादी के दिनों की बातों को याद करके वह गर्व महसूस करती हैं और गांधीजी और नेहरू जी की बातों को अपने अंदाज में बताती हैं. उन्होंने आजादी के दौरान महिलाओं का नेतृत्व किया था और गांव में घूम-घूम कर महिलाओं को संगठित करने का काम भी करती थीं.
आजादी के दौरान जनपद निवासी रामेश्वर प्रसाद सिंह एक बड़े स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते थे. उस दौरान आजादी के लिए एक प्रेस भी चलाते थे. उनका घर आजादी के दौरान क्रांतिकारियों का एक अड्डा भी बना हुआ था. आजादी के आंदोलन को गति देने के लिए समय-समय पर देश के महानायकों का उनके घर पर आना जाना लगा रहता था.
स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी महारानी देवी बताती हैं कि महात्मा गांधी उनके यहां आए थे और बाबू जी से प्रेस में मिलकर चले गए थे. उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने महिलाओं की एक सभा को भी संबोधित किया था और अपना साफा भी उन्हें दान दिया था. नेहरू जी भी उनके यहां आते थे जिनके लिए एक कमरा सोने के लिए अलग था और लोगों से बैठक करने के लिए अलग था.
महिला समाज सेवी एवं महारानी देवी की पुत्र वधू विमला सिंह बताती हैं कि उनके ससुर स्वर्गीय रामेश्वर प्रसाद सिंह के साथ उनकी सास भी आजादी के आंदोलनों में भाग लिया है. वह महिलाओं को संगठित करने का काम करती थीं. वह आज भी जीवित है और उस दौर की विस्मृत यादों के साथ आजादी का घटनाक्रम बताती रहती हैं. उनका परिवार आजादी के दौरान पूरे देश में जाना जाता था. उनका घर आजादी का एक केंद्र के रूप में भी बना हुआ था. जहां पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू से लेकर कई लोग आतिथ्य स्वीकार कर चुके हैं.